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पंकज त्रिपाठी: मैं बातों को अपने ईगो पर नहीं लेता हूं, शूटिंग पर पानी भी घर से ले जाता हूं

Neha Dani
9 Sep 2022 2:05 AM GMT
पंकज त्रिपाठी: मैं बातों को अपने ईगो पर नहीं लेता हूं, शूटिंग पर पानी भी घर से ले जाता हूं
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कभी ऐसा नहीं होता कि किसी असिस्टेंट को मुझे बुलाने कि लिए दो बार आना पड़े.

आप मिर्जापुर के थर्ड सीजन की शूटिंग कर रहे हैं. क्रिमिनल जस्टिस का सीजन थ्री एयर हो रहा है. क्या आप महसूस करते हैं कि पहले एक्टर की फिल्मों का इंतजार होता था, अब वेब सीरीज का लोग इंतजार करते हैंॽ


-हां बिल्कुल. दर्शकों को अब सिनेमा हॉल तक जाने की मजबूरी नहीं है. सिनेमा ही उनकी सुविधाजनक स्क्रीन तक पहुंच रहा है. वे अपने समय से इसे देख सकते हैं. ओटीटी की पहुंच बड़ी है.

-लेकिन इससे फिल्म इंडस्ट्री मुश्किल में आ गई है. एक घबराहट है फिल्मवालों में कि लोग थियेटरों में नहीं जा रहे. इसे किस तरह से देख रहे हैं आपॽ
-यह इस बात पर निर्भर होता है कि दर्शक किन फिल्मों को देखने सिनेमा हॉल में आते हैं. कंटेंट देखने की स्वतंत्रता तो है ही उनके पास. फिलहाल हिंदी इंडस्ट्री के लोग अच्छा कंटेंट डिलीवर नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में दर्शकों का उनसे जुड़ाव नहीं बन रहा है.

-पारंपरिक रूप से मेकर्स या एक्टर बड़े पर्दे के लिए काम करते रहे हैं. अब पॉकेट साइज मोबाइल आ गया है. क्या आप इस छोटे स्क्रीन पर खुद को देख कर संतुष्ट होते हैं या बड़े पर्दे का आकर्षण रहता हैॽ
-मैं तो अभिनय में आनंद लेता हूं. वह अभिनय कितने बड़े या कितने छोटे स्क्रीन पर आएगा, यह मेरे लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं है. सिनेमा और ओटीटी में अंतर सामुदायिक और व्यक्तिगत व्यूइंग का है. दोनों तरह से देखने का अनुभव अलग-अलग होता है. बाकी अभिनय का सुख तो हमें शूटिंग के दरमियान मिलता है. मुझे पता भी नहीं होता कि कैमरे लैंस कौन-सा लगा है. शॉट वाइड है या क्लोज. मैं तो मॉनिटर भी नहीं देखता हूं. मेरे लिए सुख अभिनय करने में है. उसे कैसे और कितने बड़े स्क्रीन के लिए कैप्चर किया जा रहा है, वह मायने नहीं रखता.

-आप सामुदायिक रूप से फिल्म देखने का आनंद कितना ले पाते हैंॽ
-अब तो पहले से भी कम लेता हूं. पहले भी कम जाता था मैं. दसवीं-ग्यारहवीं तक जरूर यह था कि कोई फिल्म आई और जेब में पैसे रहे तो देखने चला गया. मेरे बचपन में सिनेमा का एक्सपोजर नहीं था क्योंकि गांव में न बिजली थी और न टीवी था. सिनेमा के प्रति वैसा आकर्षण नहीं रहा. जब एक्टर भी बना तो कमर्शियल के बजाय आर्ट हाऊस और मीनिंगफुल सिनेमा ज्यादा देखा. उन्हें ही देखने जाया करता था.

-आम तौर पर एक्टर नाम-दाम पाने के बाद स्क्रिप्ट में हस्तक्षेप करते हैं, निर्देशक को भी सीन समझाते हैं. आप क्या करते हैंॽ
-मैं राइटिंग में नहीं पड़ता. मेरा काम एक्टिंग है. एक्टिंग करते हुए भी मैं थोड़ा बहुत अगर इंप्रोवाइज करता हूं तो डायरेक्टर से पूछ लेता हूं क्या ऐसा कर सकते हैं. साथ ही कह देता हूं कि अगर आप कहेंगे तभी करूंगा. मैं बातों को अपने ईगो पर नहीं लेता. डायरेक्टर मुझसे खुश रहते हैं. प्रोडक्शनवाले भी खुश रहते हैं क्योंकि मैं डिमांडिंग नहीं हूं. पानी भी अपना ले जाता हूं घर से. क्रिमिनल जस्टिस की शूटिंग के समय में अपनी वैन के छोटे किचन में खिचड़ी बना कर खाता था. कभी कभी अपने को-एक्टर्स को भी निमंत्रण देता था. क्रिमिनल जस्टिस में लगभग सभी एक्टरों ने मेरी खिचड़ी खाई है.

-लेकिन खिचड़ी अचानक क्योंॽ
-क्योंकि यह सुपाच्य भोजन है. अगर आपके गले में या पेट में किसी भी तरह की तकलीफ हो जाए तो अभिनय नहीं हो सकता. मैं शूटिंग के दौरान बहुत सात्विक ढंग से रहता हूं कि पेट की पवित्रता बनी रहे. फोकस काम पर रहे.

-आपकी इस बात से लगता है कि एक्टिंग कोई ग्लैमरस जॉब नहीं है. बहुत नॉन ग्लैमरस और सात्विक सी चीज है!
-जी बिल्कुल. मेरे लिए तो कतई ग्लैमरस नहीं है. नॉन ग्लैमरस है. अध्यात्म है. मेडिटेशन है एक्टिंग. इसके साथ-साथ यह श्रमिक वाला काम है. हम बारह घंटे के श्रमिक हैं. जिन्हें काम पर बुलाया गया है कि बीच में आधे घंटे या 40 मिनिट का ब्रेक मिलेगा. कभी ऐसा नहीं होता कि किसी असिस्टेंट को मुझे बुलाने कि लिए दो बार आना पड़े.


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