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मुंबई : ग्रामीण जीवनशैली और इसकी राजनीति को सहजता से दिखाती वेब सीरीज ‘पंचायत 3’ इस सप्ताह स्ट्रीम होगी अमेजन प्राइम वीडियो पर। इसमें ग्राम प्रधान की भूमिका में नीना गुप्ता और पंचायत सचिव के किरदार में जितेंद्र कुमार नजर आने वाले हैं। ऐसे में पंचायत सीजन 3 की रिलीज से पहले इन दोनों कलाकारों ने कई अहम मुद्दों पर खुलकर बात की है।
आप मेट्रो सिटी में ग्लैमर की दुनिया में रहते हैं। ‘पंचायत’ ने किन जमीनी चीजों को वापस सिखाया?
नीना : सादगी और ईमानदारी। ये दो चीजें हमारी पंचायत की शक्ति हैं। आम तौर पर लोग भटक जाते हैं। ग्लैमर को लेकर अतिनाटकीय हो जाते हैं, लेकिन ‘पंचायत’ ने उस शक्ति को संजोकर रखा है। इसी वजह से शो के पिछले संस्करणों को काफी पसंद किया गया।
जितेंद्र : मैं भी इससे सहमत हूं। आप मुंबई में रहते हैं तो आपको सभी सुख-सुविधाएं चाहिए। सब समय पर होना चाहिए। जब आप गांव जाते हैं, वहां की जिंदगी देखते हैं तो लगता है कि कम जरूरतों में भी काम हो जाता है। आप उसमें भी खुश रह सकते हैं। गांव में कुछ समय शूट करके शहर लौटने के बाद उन बातों को खुद पर लागू करता हूं तो लगता है कि कम में भी खुश हूं ।
लौकी का इस शो से खास नाता रहा है। असल जिंदगी में कितनी पसंद है?
नीना: गर्मी के दिन हैं तो लौकी-तरोई के दिन हैं।
जितेंद्र : बचपन में तो मुझे यह सब्जी बिल्कुल पसंद नहीं थी। जैसा शो में दिखाया है कि मेरे पात्र को लौकी पसंद नहीं है, वैसा ही मेरे साथ रहा है। अब कुछ सालों से मैं खाने लगा हूं।
नीना: ऐसे बोलेगा तो लगेगा कि तू बूढ़ा हो गया है क्योंकि जवानी में कोई लौकी पसंद नहीं करता है और बुढ़ापे में तो सब लौकी-तरोई खाते हैं।
इंडस्ट्री की ऐसी कौन सी बातें रहीं जो आप लोगों को बहुत चुभीं?
नीना: वो तो बहुत रहीं। उनकी संख्या इतनी ज्यादा है कि अभी बता नहीं सकती। आप तो यह पूछो कि मलहम कब आया!
जितेंद्र : मैं तो स्वयं को बहुत लकी एक्टर मानता हूं कि मैं उस जेनरेशन से आया हूं जब यूट्यूब आरंभ हुआ और एंटरटेनमेंट को नई दिशा मिली। जब मैं पहले दिन आया तो यूट्यूब पर स्केच शूट कर रहा था। बहुत कम ऐसे आर्टिस्ट होते हैं जिन्हें पहले दिन काम मिल जाता है तो मुझे तो कोई शिकायत नहीं रही है। निश्चित रूप से इस सफर में कुछ उतार-चढ़ाव जरूर रहे।
जिस तरह की लांग फार्मेट वाली चीजें करनी हैं वो कब इस स्तर पर लोकप्रिय होंगी कि मुझे बेहतर अवसर मिलें, उन सबका इंतजार और मेहनत हमेशा से की है। मैं शुक्रगुजार हूं कि मुझे ऐसी कोई चीज चुभी नहीं है। इस मुंबई शहर ने बहुत प्यार से रखा है।
लेकिन आपका एक्सपोजर मीडिया में बहुत कम होता है, जबकि नीना का काम बैक टू बैक आ रहा है
नीना : यह (जितेंद्र) मुझसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं।
जितेंद्र : नहीं, ऐसा नहीं है। मैं अपनी गति से चलने वाला इंसान हूं। जो चीजें मेरी गति से बाहर होती हैं या लगता है कि मैं उनमें खो जाऊंगा उन्हें छोड़ देता हूं। वरना मेरे पास जितनी भी दिलचस्प कहानियां या मौके आते हैं, मैं सबके लिए बहुत उत्साहित रहता हूं। मैं देखता हूं कि अगर एक-दो सीन अच्छे हैं तो बहुत जल्दी हां भी कर देता हूं। पर चीजें कब आती हैं, कैसे आती हैं, उसमें अपना-अपना समय लगता है।
नीना : मैंने तो बहुत साल की दूरी रखी थी (हंसते हुए) अभी और कितना रखूंगी। अब दबाकर काम आया है तो ले लो। कल को फिर नहीं आएगा, तो! हमारा पेशा ऐसा है कि आज काम है फिर नहीं आएगा न जाने कितने साल। तो काम आ रहा है तो मेहनत करते जाओ।
आप सशक्त महिला मानी जाती रही हैं। पहले आपको प्रयोगात्मक किरदार नहीं मिले, अब इसमें कितना बदलाव पाती हैं?
ऐसा कुछ नहीं है। मुझे मीडिया ने स्ट्रांग बना दिया। यहां स्ट्रांग मतलब निगेटिव। तो निगेटिव रोल मिलते थे। उस दौर की फिल्मों में निगेटिव रोल बहुत बुरे लिखे जाते थे, खास तौर पर महिलाओं के लिए। उनमें कुछ खास था नहीं। अब फिल्म ‘बधाई हो’ के बाद मेरी छवि बदल गई। उसके बाद से मुझे सामान्य रोल मिलते हैं जैसे ‘पंचायत’ में मंजू देवी। वह एक आम महिला है। ‘बधाई हो’ में भी मैं आम महिला थी। अब एक छवि बनाई है तो चलने दो, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
कलाकार अपने लिए एक छवि का बनना अच्छा नहीं मानते क्या ये सही?
नीना : गलत छवि बनती है तो मुश्किल होती है। धारावाहिक ‘खानदान’ में मुझे स्ट्रांग महिला दिखाया तो मुझे निगेटिव किरदार मिलने लगे। मैंने कामेडी धारावाहिक किया तो उसके बाद कामेडी शो मिलने शुरू हो गए, उसके बाद और भी बुरे-बुरे रोल!
कई बार कलाकारों के लिए मुफ्त में काम करने की चीजें भी होती हैं
जितेंद्र : मेरे साथ मुफ्त वाला काम कभी नहीं हुआ। शुरुआत में नवोदित होने की वजह से थोड़ा आत्मविश्वास कम होता है तो ज्यादा चीजें सीखने को मिल जाती हैं। वो भी एक तरह से कमाई हो जाती है। आपको सीखने को मिलता है कि सेट पर कैसे काम होता है, आप कैसे परफार्म करेंगे, क्या तकनीकी चीजें होती हैं। पर हां मुझसे किसी ने मुफ्त में काम नहीं कराया। बल्कि हर बार ज्यादा ही दिया है।
नीना : मेरा तो बहुत शोषण किया गया है। हमको तब पैसों की जरूरत थी, फिर भी फ्री में बहुत काम किया। बुरा यह लगा कि जिन लोगों के लिए फ्री में काम किया, जब उन लोगों ने दूसरी फिल्म बनाई तो हमें नहीं लिया। हमने इस उम्मीद में फ्री में काम किया कि जब वह व्यक्ति अगली फिल्म बनाएगा तो हमें लेगा। फिर हमको पैसे भी मिल जाएंगे।
उनकी फिल्म हिट हो गई तो उनको अगली फिल्म में स्टार मिल गए। तब लगा कि क्यों मुफ्त में काम करें? यह मेरे साथ बहुत हुआ है। उसके बावजूद मुफ्त में काम करना बंद नहीं किया। फिर टीवी आ गया, उससे मुझे बहुत सहूलियत हो गई। टीवी पर मैंने काफी अच्छा काम किया।
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Apurva Srivastav
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