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एक वक़्त स्नूकर खेलकर अपनी गुज़र बसर करते थे सुपरस्टार 'फ़िरोज़ खान'

Shantanu Roy
1 Nov 2021 1:57 PM GMT
एक वक़्त स्नूकर खेलकर अपनी गुज़र बसर करते थे सुपरस्टार फ़िरोज़ खान
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फ़िरोज़ खान का नाम फिल्म इंडस्ट्री के पहले काओबॉय के तौर पर लिया जाता है। उन्हें बॉलीवुड का क्लिंट ईस्टवुड भी कहा जाता था। फ़िरोज़ खान का जन्म 25 सितम्बर 1939 में हुआ था।

जनता से रिश्ता। फ़िरोज़ खान का नाम फिल्म इंडस्ट्री के पहले काओबॉय के तौर पर लिया जाता है। उन्हें बॉलीवुड का क्लिंट ईस्टवुड भी कहा जाता था। फ़िरोज़ खान का जन्म 25 सितम्बर 1939 में हुआ था। उनके पिता पठानी थे तो उनकी माँ इरानी और वह सब रहते बैंगलोर में थे। इसी कारण फ़िरोज़ खान बचपन से ही पढ़ने में बहुत तेज़ थे और आलम ये भी था कि उन्हें दो स्कूल से सिर्फ इसलिए निकलने के लिए कह दिया गया ताकि वो किसी बेहतर स्कूल में तालीम ले सकें। इतना ही नहीं, फ़िरोज़ खान कई भाषाओँ में निपुर्ण थे। उन्हें पश्तो, फ़ारसी, उर्दू, अंगेज़ी, हिन्दी और कन्नड़ भी बोलनी आती थी।

उनके शौक भी उनकी पर्सनालिटी से मैच करते हुआ करते थे। उन्हें घुड़सवारी का शौक था। बंदूकें चलाने में उन्हें बहुत मज़ा आता था। उनके अन्य शौक में स्नूकर खेलना, हॉलीवुड की फिल्में देखना शामिल था। हॉलीवुड की फिल्में वह बहुत देखते थे। उनको वेस्टर्न स्टाइल की वो काओ बॉय वाली फिल्में बहुत रास आती थीं। बड़े होने के बाद उन्होंने फिल्मों में ट्राई करना चाहा। वो मुम्बई आए, कुछ दिन रहे पर बात नहीं तो वापस बंगलौर लौट गये।
साल भर बाद वह फिर मुंबई गये और फिर किस्मत अजमाई, लेकिन इस बार भी बात नहीं बनी। उन्होंने यूपीएससी का एग्जाम समझ फिर तीसरी बार ट्राई मारा और इस बार उन्हें स्टंट मैन की जॉब मिल गयी। उन्होंने 'हम सब चोर हैं' से कैमरा फेस करना शुरु किया। लेकिन उनका मकसद तो हीरो बनना था। यह बात 1956 की है।
स्टंट्स रोल के चलते फ़िरोज़ खान को कम से कम इंडस्ट्री में घुसने का मौका तो मिला। उस वक़्त एक्टर्स को ही कोई बहुत पैसा नहीं मिलता था तो स्टंट आर्टिस्ट्स को कहाँ से मिलता। इसलिए अपना ख़र्च चलाने के लिए फ़िरोज़ खान क्लब्स में जाकर स्नूकर खेला करते थे और उस दौर में '500' (आज के 5 लाख के बराबर) रूपए की शर्तें लगाया करते थे। उन्हें अपने पैशन के चलते बहुत फायदा होता था लेकिन कई बार यूँ भी हुआ है कि गेम हार जाने की वजह से वो रात में भूखे ही सो गए।
अपने गर्दिशों के दौर में भी फ़िरोज़ खान के शौक और ठस्कों में कोई कमी नहीं आई। उन्हें सही ब्रेक फिल्म 'दीदी' (1960) में मिला।
इसके बाद उन्होंने कई बी और सी ग्रेड फिल्में कीं, जिसमें रिपोर्टर राजू उनकी पसंदीदा में से एक थी क्योंकि उस फिल्म में वह लीड एक्टर थे।
फ़िरोज़ खान ने तबतक सिर्फ एक हिन्दी फिल्म देखी थी, अशोक कुमार अभिनीत किस्मत (1943), वर्ना वह सिर्फ वेस्टर्न फ़िल्में ही देखा करते थे।
पर किस्मत देखने के बाद से ही फ़िरोज़ खान की इच्छा थी कि वह कभी अशोक कुमार के साथ काम करें। उनकी यह इच्छा पूरी हुई फिल्म ऊंचे लोग (1965) से जिसमें उनके साथ राज कुमार और अशोक कुमार थे। वह इन दोनों के छोटे भाई बने थे। यह फिल्म अच्छी हिट हुई और फ़िरोज़ खान को इंडस्ट्री ने बिना किसी शर्त के अपना लिया।
इन्हीं दिनों फ़िरोज़ खान ने एक एयर होस्टेस से शादी भी कर ली। उस होस्टेस का नाम था 'सुन्दरी'। सुंदरी के साथ उनके दो बच्चे हुए, एक लैला और दूसरे उनके जानशीन, फरदीन खान। हालाँकि इसी बीच उनके और उनकी फेवरेट एक्ट्रेस मुमताज़ के लव अफेयर के चर्चे भी ख़ूब सुने जाते थे।
कुछ समय बाद फ़िरोज़ खान ने बीआर चोपड़ा बैनर तले एक मल्टीस्टारर फिल्म की आदमी और इंसान (1969), इसमें फ़िरोज़ खान के साथ सुपर स्टार धर्मेंद्र,
जिन दिनों वह फिल्मों में एक्टिंग करते थे, तब वह सिनेमेटोग्राफर और डायरेक्टर के पास चले जाते थे और उनसे पूछते थे कि आप ये लेंस बदल रहे हो तो क्यों बदल रहे हो? इससे क्या होता है? शॉट यहाँ से लेने से क्या होगा? आदि इस तरह के सवाल वह करते रहते थे, उन्हें पता था कि वह बहुत जल्द फिल्म डायरेक्शन में ज़रूर आयेंगे। उनके आने के कुछ साल बाद उनके भाई 'संजय खान' (शाह अब्बास खान) भी फिल्मों में आ गये थे। इन दोनों भाइयों ने साथ में कई फिल्मों में काम किया जिसमें उपासना नामक फिल्म खासी पॉपुलर हुई।


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