मनोरंजन

मनोरंजन के नाम पर फिल्मों में परोसी जाती है अश्लीलता

Nilmani Pal
17 Dec 2022 10:45 AM GMT
मनोरंजन के नाम पर फिल्मों में परोसी जाती है अश्लीलता
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(नारी के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के साथ हो रहा खिलवाड़)

(सुशील शर्मा)

लोनी। मॉर्डन जमाने के नाम पर फिल्मों व अनेक सीरियलों में अश्लीलता परोसे जाने के साथ-साथ विज्ञापनों की भरमार में भी अधिकांशत: नारी की जो छवि प्रस्तुत की जा रही है वह किसी से छिपी नहीं है जिसका विरोध भी हमेशा शून्य के समान ही रहा है। यदि समय रहते इन अश्लील विज्ञापनों, पोस्टरों, पत्रिकाओं व फिल्मी सीनों पर लगाम कसने के प्रयासों की किसी ने पहल नहीं की तो आने वाले कुछ वर्षों में महिला जाति को और कैसे रूप में पेश किया जा सकता है इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है जो वास्तव में एक गंभीर सोच का विषय है।

आज के इस दौर में मनोरंजन के नाम पर फिल्मों में रेप, प्यार-मोहब्बत व सुहागरात आदि विषय पर किस अश्लीलता भरे सीनों को परोसा जा रहा है, किसी से छुपा नहीं है। अफसोस तो इस बात का है कि यह सब कुछ हर किसी के जेहन में भी है मगर संदर्भ में अपनी आवाज मुखर करने वाला कोई नहीं है या यह मान लिया जाए कि तमाम राजनीतिक या सामाजिक संगठन के जनप्रतिनिधियों को इस सबसे कोई परहेज ही नहीं है और इसके समर्थक हैं! हालांकि सब जानते हैं कि उक्त क्रियारत सीन देखकर बच्चों, युवाओं व बुजुर्गों के मस्तिक पर वह एक गहरा असर डाल रहे हैं, यही कारण है कि कुछ प्रतिशत युवा पीढ़ी तो इस सबको अपने वास्तविक जीवन में अपनाते हुए देखने में आने लगी है। हालात यह बन चुके हैं कि यौवन की दहलीज पर पैर रखने से ही लड़कियां मेकअप, ब्यूटीशन में ढ़लना, बदन दिखाऊ कपड़े पहनना, सेक्सी दिखना, बॉयफ्रेंड बनाकर उनकी बाहों में बाहें डालकर घूमना एक फैशन समझने लगी है जिन्हें खुलेआम धुआं उड़ाते हुए भी देखा जा सकता है जिनमे नाबालिको की संख्या भी कुछ कम नहीं है। जिसके लिए उनके मॉडल माता-पिता को भी कोई आपत्ति नहीं होती या कुछ एक युवा पीढ़ी अपने अभिभावकों की आंखों धूल झोंककर यह अपना घटिया शोक पूरा करने में लगी है। ऐसी सोच रखने वाली नई पीढ़ी व उनके बदलते अभिभावक मॉर्डन जमाने की बात कहकर घटिया संस्कृति के अंधेरे में लुप्त होने का काम कर रहे हैं जिनकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। यह सेक्स को बढ़ावा देने वाली मनोवृति का ही नतीजा है कि आज देशभर में चारों तरफ यौन अपराध दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। हालात यह बन चुके हैं कि ऐसे अपराधों के मामले में रिश्तो को भी तार-तार कर देने वाली अनेक घटनाएं घटित हो रही है, पिछले दिनों आफताब नामक युवक द्वारा अपनी प्रेमिका श्रद्धा की हत्या कर उसके 35 टुकड़े कर देने वाली चर्चित घटना उसी का एक जीता जागता उदाहरण है। हर कोई जानता है कि अश्लीलता दर्शाने वाले वस्त्र पहनने की शिक्षा न हीं कोई माता-पिता अपने बच्चों को देता है और ना ही कोई गुरु अपने शिष्य को. बल्कि इसकी पहल केवल फिल्मों से हुई है जिनके निर्माता मनोरंजन के नाम पर दर्शकों के बीच अश्लीलता परोसने का काम करते आ रहे है जिसे हाल ही में आने वाली फिल्म पठान की हीरोइन पर दर्शाए गए बोल्ड सीन एक बार फिर इस बात को उजागर करने का काम कर रहे हैं। माना कि देश में कुछ स्थानों पर इसका विरोध हो रहा है मगर यह ना काफी है इसके लिए सरकार व सेंसर बोर्ड को गंभीर होने की जरूरत है। सच तो यह है कि इसका कोई विरोध नहीं होने पर हमारी युवा पीढ़ी भी मॉडर्न दिखने के नाम पर इस अश्लीलता की दलदल में निरंतर फंसती जा रही है। आज अश्लीलता का जो व्यापार हो रहा है जिसके विरुद्ध कोई आवाज उठाने वाला अभी भी दूर तक नजर नहीं आ रहा है। स्पष्ट है कि अश्लीलता ने धीरे-धीरे अपने पैर पसार लिए हैं जिसकी जड़ लगातार फैलती जा रही है। हालात ऐसे बन चुके हैं कि आज इसके विरुद्ध लड़ना भी कोई आसान बात नहीं रह गई है।

मजे की बात तो यह है कि यदि किसी निर्माता द्वारा उसकी फिल्म में अश्लील सीन परोसे जाते हैं तो वह इन सीनो को फिल्म की कहानी के मध्यनजर और उसकी मांग के अनुसार उन्हें उचित ठहराता है। उक्त विषय के बढ़ते चलन की बात करें तो लचर कानून एवं पुलिस की लापरवाही भी अश्लीलता को बढ़ावा देने में मददगार है। क्योंकि जब सार्वजनिक स्थानों पर अश्लीलता फैलाने वालो और अश्लील पत्रिका बेचने वालों के विरुद्ध कार्रवाई हो सकती है तो सिनेमाघरों में अश्लील फिल्म दिखाने वाले उनके मालिकों के विरुद्ध क्यों नहीं हो सकती ? अनेक सार्वजनिक स्थानों पर खुलेआम अश्लीलता का प्रदर्शन करने वाली युवा पीढ़ी के विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं अमल में लाई जाती ?..कहीं ना कहीं पुलिस-प्रशासन की कार्यप्रणाली भी इस मामले में संदिग्ध हैं। अश्लील फिल्म, अश्लील आर्ट या अश्लील लेखन लिखने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि हर विषय पर स्वतंत्रता की एक सीमा होती है, उसके लिए एक मर्यादा के दायरे की जरूरत होती है।

आज आधुनिक समाज में हमारी संस्कृति के विरुद्ध कुछ लोगों ने सेक्स उद्योग व सेक्स पर्यटन को विकसित कर दिया है जिनकी संख्या लगाकर बढ़ती जा रही हैं। सेक्स के बढ़ते प्रभाव की ही देन है कि देश में एड्स जैसी घातक बीमारी से पीड़ितों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसलिए आने वाली भयावह स्थिति से निपटने के लिए जहां सरकार को भी गहनता से विचार करते हुए आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है वही हम भारतीयों को इस फैलती अश्लीलता के विरुद्ध अपनी कमर कसनी होगी। ताकि हर युवा-युवती की सोच बदले और वह भारतीय संस्कृति के दायरे को अपनाकर उसे हरा-भरा कर सके।




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