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सेक्शुअल असॉल्ट की खबरें मुझे रात भर सोने नहीं देतीं: भूमि पेडनेकर

Neha Dani
3 Feb 2022 5:18 AM GMT
सेक्शुअल असॉल्ट की खबरें मुझे रात भर सोने नहीं देतीं: भूमि पेडनेकर
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बहुत लोगों तक हम पहुंच पाए और कई लोगों का आशीर्वाद पाया हमने।

बॉलिवुड में तकरीबन 7 साल बिता चुकीं भूमि पेडनेकर (Bhumi Pednekar)अपनी फिल्मों के जरिए हर बार किसी न किसी मुद्दे को मुखर करती नजर आती हैं। 'बधाई दो' (Badhaai Do) उनके करियर की दसवीं फिल्म है और इसके जरिए वे गे-लेस्बियन मुद्दे को उठाने जा रही हैं। भूमि का मानना है कि फिल्म हंसते-खेलते ढंग से एलजीबीटीक्यू समुदाय के मुद्दों पर समझ पैदा करने की पहल है। इस मुलाकात में वे अपने अभिनय के सफर, महिला मुद्दों, एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी की चुनौतियों, कोरोना काल, पर्यावरण, सलमान-शाहरुख जैसे मुद्दों पर अनकही बातें शेयर करती हैं।

मैं बहुत ही खुशकिस्मत हूं। सात सालों में 'बधाई दो' मेरी दसवीं फिल्म है। मेरी यह फिल्म उसी महीने रिलीज हुई थी, जिस महीने मेरी पहली फिल्म आई थी। दिलचस्प बात यह है कि 'बधाई दो' की शूटिंग भी उन्हीं लोकेशनों पर हुई है, जहां मेरी पहली फिल्म 'दम लगा के हईशा' शूट हुई थी। भाग्यवान हूं, जो ऐसी दमदार और अलग-अलग तरह की कहानियों का हिस्सा बनी हूं। दर्शकों ने मेरे काम को भी सराहा और मेरी गलतियों को अपनाया। मुझे यकीन नहीं होता कि 27 फरवरी को मेरे करियर के सात साल पूरे हो जाएंगे। मेरे अंदर हर स्क्रिप्ट को लेकर नर्वसनेस और एक्साइटमेंट उतना ही है, जितना अपनी पहली फिल्म की स्क्रिप्ट को लेकर था।
कोशिश यही रहती है कि लोगों तक अपनी बात पहुंचा पाऊं। आप सही कह रही हैं कि मेरी फिल्मों में वो मुद्दा होता ही है। मुझे लगता है सिनेमा में वह ताकत है कि मनोरंजन के जरिए आप लोगों का ह्रदय परिवर्तन कर पाएं। मैं मुद्दों को मनोरंजन जरिए पेश करती हूं उनकी सोच को बदल पाएं। 'बधाई दो' से इस साल इसकी शरुआत हो रही है।
महिलाओं से जुड़ा कौन-सा मुद्दा आपको सबसे ज्यादा विचलित करता है?
मुद्दे तो कई हैं, मगर मुझे सेक्शुअल असॉल्ट वाला मुद्दा सबसे ज्यादा विचलित कर देता है। उस विषय पर मैं अपने सोशल मीडिया हैंडल पर कई बार आवाज उठा चुकी हूं। महिलाओं के साथ होने वाली सेक्शुअल असॉल्ट की खबरें मुझे रात भर सोने नहीं देतीं।
शुभ मंगल सावधान, शुभ मंगल ज्यादा सावधान में आप जैसे कलाकारों ने मर्द-औरत की सेक्शुएलिटी का मुद्दा उठाने की पहल की और उसके बाद ओटीटी पर एलजीबीटीक्यूआई कम्यूनिटी के मुद्दों को मुखरता मिली? वरना उससे पहले तक इस समुदाय को नीची निगाह या कॉमिक एलिमेंट पेश करने के लिए रखा जाता था।
मैं आपकी बात से सहमत हूं। ओटीटी पर पाथ ब्रेकिंग काम हो रहा है और ऐसी कहानियां कही जा रही हैं, जिनको कहना जरूरी है। मगर 'बधाई दो' जैसी एक फिल्म जो आपको हंसते-हंसते गंभीर मुद्दों कह जाए, उसका इम्पैक्ट अलग पड़ता है ऑडियंस पर। असल में इसका मूल विचार क्या है? जो संवाद आप खुले में नहीं कर सकते थे, उसे आप परिवार के बीच बैठकर देख सकें, आप उसे नॉरमलाइज कर सकें और वो तभी मुमकिन है, जब आप चेहरे पर मुस्कान के साथ उस सीख को अपना सकें। हम यही उम्मीद कर रहे हैं कि फिल्म के आखिर तक दर्शक का नजरिया बदले। ट्रेलर के बाद भी हमें बहुत ही कमाल के रिएक्शन मिले हैं। सालों से समाज में जो सोशल कॉन्ट्रैक्ट बना हुआ है, हम उसे हंसते-गाते ब्रेक करना चाहते हैं। इससे पहले की बधाई दो भी तो एक असहज विषय पर बात करने वाली फिल्म थी, मगर उसे दर्शकों ने हाथों-हाथ लिया था।
अपनी पहली फिल्म 'दम लगा के हईशा' में वजन बढ़ाने की बात हो या सांड की आंख में बुजुर्ग महिला का अवतार धारण करने की, आपने हमेशा किरदार को आगे रखा, मगर क्या बधाई दो में आपके किरदार में लेस्बियन एंगल होने के नाते आपको किसी तरह की हिचक या असुरक्षा थी?
बिल्कुल भी नहीं। निजी जिंदगी में भी इंसान को इंसान के रूप में देखती हूं। मेरे लिए किसी का सेक्शुअल प्रेफरेंस उसके चरित्र का निर्धारण नहीं करता। मेरे लिए ये नॉर्मल है। मेरे कई फ्रेंड्स और परिचित एलजीबीटीक्यूआई कम्यूनिटी से हैं और वो भी स्कूल-कॉलेज के समय से। मैंने उनकी जर्नी देखी है। मैंने उनसे फ्लेक्सिबिलिटी सीखी। इस फिल्म को करने की मेरी निजी वजह भी यही थी कि मैं चाहती थी कि मैं उनका सही तरीके से प्रतिनिधित्व कर सकूं। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो किससे प्यार करते हैं? ट्रांस मैन हैं या ट्रांस वुमन? ये कहानी उन लोगों के लिए हैं, जिनके लिए ये बातें मायने रखती हैं। मेरे लिए तो ये बहुत बड़ी बात थी कि मैं इस कहानी का हिस्सा बन पाऊं,जो इन चीजों से गुजरते हैं।
बिल्कुल। ये तो अभी शुरुआत है। बहुत जरूरी है ये। हमने इस मुद्दे को ह्यूमरस अंदाज में दर्शाया है। हमने कहीं भी इस कम्युनिटी का मजाक नहीं उड़ाया। अभी ऐसी कई फिल्में बनेंगीं और फिर एक पॉइंट ऐसा आएगा, जब फिल्म गे मैन या लेस्बियन वुमन के बारे में न होकर दो किरदारों के बारे में होगी। बधाई दो की खूबसूरती यही है। यह एक जॉय राइड है। आप इसे परिवार के साथ थिएटर में इंजॉय करते नजर आएंगे। हमारी कोशिश यही है कि अगर कोई बच्चा या टीनेजर खुद को इस तरह के हालात में पाता है और पर्दे पर राजकुमार राव और भूमि पेडनेकर को देखता है, तो उसे थोड़ा बेटर फील हो। वो खुद को दोषी न समझे। हमारे किरदारों से उनको खुद को स्वीकार करने की ताकत मिले।
आप लगातार पर्यावरण के मुद्दों पर भी काम करती आ रही हैं?
हां और मैं यही कहती हूं कि आप अगर अपने परिवार को बचाना चाहते हैं, तो पहले अपने प्लैनेट को बचाइए। आपने देखा ही होगा कि कैसे महामारी ने पूरे विश्व को बता दिया कि पर्यावरण को संजोना कितना जरूरी है? आप अगर 50 मग्गे पानी से नहा रहे हैं, तो ये समझना जरूरी है कि हो सकता है कल को आपको एक बूंद पानी न मिले।
कोरोना की पहली-दूसरी लहर के दौरान आपके करीबी भी पीड़ित थे, मगर आपने अपने सोशल मीडिया और सिलेब्रिटी स्टेटस का इस्तेमाल कर कोरोना वॉरियर के रूप में अनगिनत लोगों की मदद की। आपने क्या सीखा?
मुझे पता भी नहीं चला कि कब मैं इसका हिस्सा बन गई। मैं भाग्यवान हूं कि भगवान ने मुझे जो ओहदा दिया, मैं उसका सही ढंग से इस्तेमाल कर पाई। हालांकि ऐसी नौबत दोबारा न आए, मगर यह भी बड़ी बात है कि मैं लोगों की मददगार बनी। जिंदगी को बदल कर रख देने वाले अनुभव थे। मैं ऐसे लोगों से जुड़ी, जिनसे कभी मिली नहीं थी। आज भी जुड़ी हूं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक परिवार बन गया है। मैंने यह सफर अकेले शुरू किया था, मगर धीरे-धीरे इसमें मेरे साथ 700 वालियंटर्स जुड़ गए। एक ऐसा समय था, जब दिन में 400-450 कॉल्स आते थे। बहुत लोगों तक हम पहुंच पाए और कई लोगों का आशीर्वाद पाया हमने।

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