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जोगी का भी जुगाड़ फेल
नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui) और नेहा शर्मा (Neha Sharma) स्टारर फिल्म ‘जोगीरा सारा रा रा’ (Jogira Sara Ra Ra) आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. नेहा और नवाज की जोड़ी को साथ में देखने के लिए फैंस काफी एक्साइटेड हैं और ऐसे में इस फिल्म को लेकर उत्साह और भी बढ़ जाता है. दर्शक सिनेमाघरों में नहीं जा रहे और ये बात हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री को डराए हुए है. ऐसे में सवाल बड़ा है कि क्या निर्देशक कुषाण नंदी की ये कॉमेडी से भरपूर फिल्म दर्शकों को थिएटर्स तक खींच पाएगी… ? चलिए बताते हैं इस रिव्यू में.
कहानी क्या कहती है: ये कहानी है जोगी भैया (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) की, जो शादियां कराते हैं. ये इनका बिजनेस है, लेकिन इनकी असली हुनर है जुगाड़ का. ये पूरी फिल्म में कहते हैं, ‘जोगी का जुगाड़ कभी फेल नहीं होता…’ और इसी जोगी को शादी करानी है डिंपल चौबे (नेहा शर्मा) की. वहीं डिंपल हैं, जो शादी करना नहीं चाहती. अब इसी डिंपल के कहने पर जोगी उसी शादी को कैंसिल कराने के जुगाड़ करता है, जिसे कराने के लिए उसे पैसे मिल रहे हैं. इस बीच डिंपल किडनैप होती है, फिर आती है और आगे क्या होता है, ये देखने के लिए आपको थिएटर्स तक जाना होगा.
सबसे पहले बात करें फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी की तो वह है कहानी. फिल्म के पहले सीन से ही आपको समझ आ जाता है कि कहानी में आगे क्या होगा. एक-दो मिनट का नहीं, बल्कि हर सीन के बाद ही आप ये अंदाजा लगा सकते हैं कि कहानी में अगले आधे घंटे में क्या होगा. दरअसल ‘तनु वेड्स मनु’, ‘बरेली की बर्फी’, ‘बहन होगी तेरी’ हो या फिर खुद नवाज की फिल्म ‘मोजीचूर चकनाचूर’. ऐसे बोल्ड और बिंदास करेक्टर वाली छोटे शहरों की लड़कियां और उनके प्यार में पड़ता लड़का.. कहानी का ये प्लॉट हम कई फिल्मों में देख चुके हैं. ऐसे में नेहा के करेक्टर में सप्राइज फैक्टर पूरी तरह खत्म है. इन बिंदास लड़कियों के मजबूर और परेशान पिता, रोती-सुबकती मां… ये सब आपको इतनी पुराना लगता है कि कहानी में कहीं भी समझ नहीं आता कि नया क्या है. यही इस फिल्म का ड्रॉ बैक है, जो बार-बार आपको इस फिल्म से डिटैच कर देता है. क्योंकि पर्दे पर घट रहा कुछ भी नया नहीं है. और पुराने को देखने थिएटर में कौन जाएगा…?
वहीं इस फिल्म की अच्छी बात करें तो वो है परफॉर्मेंस और कॉमेडी. नवाजुद्दीन सिद्दीकी, उनकी बहनें बनी लड़कियां, नेहा शर्मा, हों या फिर संजय मिश्रा सभी अपने-अपने किरदार में मजेदार लगे हैं. नवाज ने जोगी के किरदार को इतने मजेदार अंदाज में फिल्माया है कि आपको कहानी बोरिंग लगने के बाद भी हंसी आती रहेगी. उनका पर्दे पर नजर आ रहा फ्रस्टेशन, आपके लिए ह्यूमर का काम करेगा. अगर आप एक घिसी-पिटी कहानी के साथ भी नवाजुद्दीन सिद्दीकी की परफॉर्मेंस देखना चाहते हैं तो ये फिल्म आप हंसते-हंसते देख (झेल) जाएंगे. परफॉर्मेंस इतनी मजेदार है कि आपको खूब हंसी आएगी.
इस फिल्म को लिखा है गालिब असद भोपाली ने. वो इससे पहले ‘बाबुमोशाय बंदूकबाज’ जैसी दिलचस्प फिल्म लिख चुके हैं. उस फिल्म में भी नवाजुद्दीन ही नजर आए थे. लेकिन इस बार वो अपनी कलम उस पैने अंदाज में नहीं चला पाए हैं. वहीं निर्देशन की बात करें तो कुशाण नंदी भी उतना प्रभावित नहीं कर पाए. दरअसल ओटीटी के इस दौर में हम इतने नए तरह की कहानियां देख रहे हैं कि ऐसे में पुरानी कहानी पर समय बर्बाद करने का शायद ही किसी का मन हो. मेरी तरफ से इस फिल्म को 2.5 स्टार.
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Rani Sahu
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