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Narendra Chanchal: एक आवाज़ जो नवरात्रि पर्व में सभी धार्मिक स्थलों पर सुनने को मिलती है, जिसके आवाज़ के बिना अधूरा सा लगता यह पर्व

Nilmani Pal
13 Oct 2020 3:04 PM GMT
Narendra Chanchal: एक आवाज़ जो नवरात्रि पर्व में सभी धार्मिक स्थलों पर सुनने को मिलती है, जिसके आवाज़ के बिना अधूरा सा लगता यह पर्व
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नवरात्रि के 9 दिन एक आवाज़ के बिना हमेशा ही अधूरे रहते, वो आवाज है भजन सिंगर नरेंद्र चंचल की

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कुछ ही दिनों में नवरात्रि का त्यौहार शुरू होने वाला है. जैसे ही इस त्यौहार की शुरुआत होती है तो पूरे उत्तर भारत में माता के नाम के जयकारें लगने लगते हैं. लेकिन ये 9 दिन एक आवाज़ के बिना हमेशा ही अधूरे रहते हैं और वो आवाज है भजन सिंगर नरेंद्र चंचल (Narendra Chanchal) की. उनकी आवाज सीधे दिल तक जाते हैं. फिर चाहे वो 'चलो बुलावा आया है' हो या फिर 'ओ जंगल के राजा मेरी मैया को लेके आजा.' नरेंद्रे चंचल के भजनों के बिना नवरात्रि का त्यौहार पूरा नहीं होता.

नरेंद्रे चंचल वो हैं, जिन्होंने माता के जगराते को अलग दिशा दी. उन्होंने ना सिर्फ शास्त्रीय संगीत में अपना नाम बनाया बल्कि लोक संगीत में भी उनकी कहीं बराबरी नहीं है. हालांकि नरेंद्रे चंचल का बॉलीवुड फिल्मों से गहरा नाता नहीं रहा लेकिन फिर भी उन्होंने संगीत की दुनिया में अपनी अलग और मज़बूत पहचान बनाई है. उन्होंने जागरण को एक बड़ी इंडस्ट्री बना दिया. लेकिन नरेंद्र चंचल का नाम यूं ही नहीं बना, इसके पीछे उनकी कड़ी मेहनत छिपी है.


नरेंद्र चंचल ने बचपन से ही अपनी मां कैलाशवती को मातारानी के भजन गाते हुए सुना. मां के भजनों को सुन-सुन कर उन्हें भी संगीत का चस्का लग गया. सूत्रों के मुताबिक, नरेंद्र बचपन में बहुत शैतान थे. उनका मन पढ़ने-लिखने में बिल्कुल नहीं लगता था इसीलिए स्कूल ना जाकर वो घंटों ताश खेला करते थे. खबरें तो ये ही हैं कि उनके शरारती स्वभाव और चंचलता की वजह से उनके हिंदी टीचर उन्हें 'चंचल' कहकर बुलाते थे. बाद में नरेंद्र ने अपने नाम के साथ हमेशा के लिए चंचल जोड़ लिया.

नरेंद्र चंचल की पहली गुरू थीं उनकी मां, जिसके बाद चंचल ने प्रेम त्रिखा से संगीत सीखा. फिर वो भजन गाने लगे थे. लेकिन इस दौरान कुछ समय के लिए उनकी आवाज चली गई. जब आवाज़ ठीक हुई तो वो बॉलीवुड सुपरस्टार राज कपूर (Raj Kapoor) से मिले. उस वक्त राज कपूर अपनी आने वाली फिल्म 'बॉबी' के लिए एक नई आवाज की ख़ोज कर रहे थे. राज कपूर इससे पहले एक बैसाखी के मेले में नरेंद्र चंचल को गाते हुए सुन चुके थे और उन्हें चंचल की आवाज इतनी पसंद आई थी कि उन्होंने तभी फैसला कर लिया था कि अपनी फिल्म 'बॉबी' में उनसे गाना गवाएंगे. फिर जब राज कपूर ने साल 1973 में फिल्म 'बॉबी' बनाई तो उसमें नरेंद्र चंचल ने गाना गाया– 'बेशक मंदिर मस्जिद तोड़ो'.

'बॉबी' के बाद नरेंद्र ने कई फिल्मों में गाने गाए, लेकिन उन्हें पहचान मिली फिल्म 'आशा', में गाए माता के भजन 'चलो बुलावा आया है' से जिसने रातों रात उन्हें मशहूर बना दिया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक बार नरेंद्र चंचल ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि- 'एक समय था जब माता का जगराता दरी पर हुआ करता था, लेकिन आज ये एक इंडस्ट्री बन चुकी है.' आपको बता दें कि अपने करियर के शुरुआती दौर में आर्थिक तंगी की वजह से नरेंद्रे चंचल ने कुछ समय तक ड्राई क्लीनर की शॉप पर भी काम किया था. वहां अच्छे और महंगे कपड़े देखकर उन्हें लगता था कि किसी दिन उनके पास भी महंगे कपड़े होंगे. भले ही आज नरेंद्र चंचल के पास पैसे की कोई कमी नहीं है लेकिन उनका रहन-सहन बिल्कुल साधारण हैं. उन्हें बाहर का खाना खाना बिल्कुल पसंद नहीं है. यहां तक कि फ्लाइट में भी वो अपनी पत्नी के हाथ का बना खाना ही खाते हैं.

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