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Mohammed Rafi Birthday : प्रसिद्ध गायक मोहम्मद रफी का आज जन्मदिन है, जाने उनके बारे में
Bhumika Sahu
24 Dec 2021 2:21 AM GMT
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मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) का जन्म पंजाब के अमृतसर के कोटला सुल्तानसिंह में 1924 को हुआ था. कुछ समय बाद ही इनके पिता लाहौर जाकर बस गए थे उस समय भारत का विभाजन नहीं हुआ था.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अपनी सुरीली आवाज के जरिए पूरे हिंदुस्तान के लोगों के दिलों में अपनी अलग जगह बनाने वाले प्रसिद्ध गायक मोहम्मद रफी (Mohammed Rafi) का आज जन्मदिन है. शादी में 'आज मेरे यार की शादी है' जबतक न बजे तब तक लोगों को लगता है कि कुछ अधूरा है. जिंदगी की परिस्थिति के लिए मोहम्मद रफी ने गाना गाया है. 'बाबुल की दुआएं लेती जा' से लेकर 'कर चले हम फिदा जान ओ तन साथियों' तक मोहम्मद रफी ने अपनी गायकी से पर्दे की कहानी को लोगों के दिलों में उतार दिया.
मोहम्मद रफी का जन्म पंजाब के अमृतसर के कोटला सुल्तानसिंह में 1924 को हुआ था. कुछ समय बाद ही इनके पिता लाहौर जाकर बस गए थे उस समय भारत का विभाजन नहीं हुआ था. मोहम्मद रफी घर में फीको के नाम से भी पुकारा जाता था. रफी गली में आने जाने वाले फकीरों को गाते हुए सुना करते थे. इन्हीं फकीरों को सुनकर रफी ने गाना गाना शुरू किया. एक फ़क़ीर ने रफी से कहा था कि एक दिन तुम बहुत बड़े गायक बनोगे.
बिजली गुल हो जाने पर मिला गाने का मौका
1942 में रफी के ज़िद करने पर परिवार ने उन्हें मुंबई जाने की इजाजत दे दी. रफी मुंबई के भिंडी बाजार इलाके में 10 बाई 10 के कमरे में रहा करते थे. एक बार की बात है कि ऑल इंडिया रेडियो लाहौर में उस समय के प्रख्यात गायक और अभिनेता कुन्दन लाल सहगल गाने के लिए आए हुए थे. रफी साहब और उनके बड़े बाई भी सहगल को सुनने के लिए गए थे. लेकिन अचानक बिजली गुल हो जाने की वजह से सहगल ने गाने से मना कर दिया. उसी समय रफी के बड़े भाई साहब ने आयोजकों से निवेदन किया की भीड़ को शांत करने के लिए रफी को गाने का मौका दिया जाए. यह पहला मौका था जब मोहम्मद रफी ने लोगों के सामने गाया था.
13 साल के उम्र में दिया पहला परफॉर्मेंस
मात्र 13 साल की उम्र में रफी ने अपना पहला परफॉर्मेंस दिया था. आकाशवाणी लाहौर के लिए भी उन्होंने गाने गाए. उन्होंने अपना पहला हिंदी गाना 1944 में गाया था फ़िल्म का नाम था 'गांव की गोरी' हालांकि इस गाने से रफी को कोई पहचान नहीं मिली. रफी ने उस्ताद अब्दुल वहीद खां, पंडित जीवन लाल मट्टू और फिरोज निजामी से शास्त्रीय संगीत सीखा. रफी को लेकर तमाम किस्से हैं, जिनसे उनकी शख्सियत का अंदाजा लगता है.
पतंग उड़ाने के शौकीन थे रफी
आरडी बर्मन का कहना था कि जब भी मेरे गाने रिकॉर्ड होते, रफी साब भिंडी बाजार से हलवा लाते थे. रफी साहब हर सुबह तीन बजे उठ जाते थे. रियाज शुरू हो जाता था. ढाई घंटे संगीत का रियाज करने के बाद वो बैडमिंटन खेलते थे. उन्हें पतंग उड़ाने का बड़ा शौक था. फ़िल्म बैजू बावरा का भजन ' मन तड़पत हरि दर्शन को' काफी मशहूर हुआ. इस भजन के लिए उन्हें संस्कृत भाषा बोलने में काफी दिक्कत हुई इसके लिए नौशाद साहब ने बनारस से संस्कृत के एक विद्वान को बुलाया ताकि रफी के उच्चारण में कोई अशुद्धि न हो.
रफी साहब की भाषा पंजाबी और उर्दू थी इसीलिए उन्हें संस्कृत बोलने में दिक्कत हुई. इसके अलावा 'ओ दुनिया के रखवाले', 'मधुबन में राधिका नाची रे', 'मन रे तू काहे न धीर धरे', 'मेरे मन में हैं राम मेरे तन में हैं राम', 'सुख के सब साथी दुख में न कोई', 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम', 'बड़ी देर भई नंदलाला जैसे तमाम भजन हैं', जो रफी साहब ने गाए हैं. आज भी मंदिरों में उनके सुर गूंजते हैं. 31 जुलाई 1980 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया.
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