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'राष्ट्रपत्नी' कहने के मायने

Rani Sahu
29 July 2022 6:58 PM GMT
राष्ट्रपत्नी कहने के मायने
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लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी की जुबान कितनी बार फिसलेगी?

By: divyahimachal

लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी की जुबान कितनी बार फिसलेगी? यदि कांग्रेस के दो और सांसद जीत कर आ जाते, तो अधीर को सदन में 'नेता प्रतिपक्ष' का ओहदा मिल जाता, जो एक कैबिनेट मंत्री के समान होता है। अधीर नौसीखिया सांसद नहीं हैं। संसद में उनका अनुभव पुराना हो चुका है। वह सभी कायदे-कानून और मर्यादाओं को अच्छी तरह जानते हैं, लेकिन उनकी जुबान फिसलती है, तो वह देश के प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को 'घुसपैठिया' बोल देते हैं। स्वामी विवेकानंद का बचपन में नाम नरेंद्र देव था। उनके किसी संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आ जाता है, तो अधीर तुलना करते हैं-'कहां मां गंगा और कहां गंदी नाली…।' ऐसे कई उदाहरण हैं कि अधीर की जुबान फिसली है अथवा वह 'बंगाली हूं, हिंदी अच्छी नहीं…' की आड़ में छिपते रहे हैं। देश ने उनके अमर्यादित और अभद्र शब्दों को सहन किया है, बल्कि नजरअंदाज किया है, लेकिन वह सार्वजनिक तौर पर देश की आदिवासी महिला राष्ट्रपति को 'राष्ट्रपत्नी' कहें और टोकने के बावजूद उसी शब्द को दोहराते रहें, तो इसे जुबान की फिसलन अथवा हिंदी ज्ञान की कमी नहीं मान सकते। अधीर रंजन 'विजय चौक' पर कांग्रेस सांसदों के साथ धरने पर बैठे थे। एक टीवी रिपोर्टर ने जानना चाहा कि क्या सांसद आज राष्ट्रपति से मिलने जाएंगे? सवाल पर अधीर रंजन ने दो बार 'राष्ट्रपति' शब्द कहा और फिर बोले-'हिंदुस्तान की राष्ट्रपत्नी जी सबके लिए हैं, हमारे लिए क्यों नहीं हैं?' हम अपने संसदीय कवरेज के अनुभव के आधार पर दावा कर सकते हैं कि अधीर ने जानबूझ कर अथवा तंज कसते हुए 'राष्ट्रपत्नी' शब्द का इस्तेमाल किया था।
यह उनका 'पुरुषवादी' और कांग्रेसी अहंकार भी हो सकता है, क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कांग्रेस नेताओं ने द्रौपदी मुर्मू के लिए 'कठपुतली', 'राक्षसी मनोवृत्ति की प्रतीक' और 'ज़हरीली मानसिकता की प्रतिनिधि' सरीखे आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था। अधीर इतने भोले और मासूम नहीं हैं कि पति और पत्नी शब्दों का फर्क न जानते हों! कुछ भी हो, महामहिम राष्ट्रपति का अपमान अस्वीकार्य होना चाहिए, क्योंकि यह किसी की निजी प्रतिष्ठा और गरिमा का सवाल नहीं है, यह देश का वैश्विक अपमान भी है। अधीर रंजन ने 'चूक या गलती' तो कबूल की है, लेकिन यह भी कहा है कि वह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिल कर 'माफी' मांगेंगे, लेकिन 'पाखंडियों' से माफी नहीं मांगेंगे। उन्होंने भाजपा नेताओं के लिए 'पाखंडी' शब्द कहा है। क्या यह भी कोई फिसलन है? इस मुद्दे पर भाजपा की महिला सांसदों, खासकर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, का बेहद आक्रामक होना हमें उचित लगा, क्योंकि सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति की पैरोकारी और हिफाजत करना तथा हमलावर रुख अख्तियार करना तर्कसंगत है। महिला सांसदों ने इस आपत्तिजनक शब्द के लिए देश से, गरीबों से, आदिवासियों से और औरतों से माफी मांगने का लगातार आग्रह किया। स्मृति ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी लपेटते हुए जिम्मेदार माना और माफी मांगने को कहा। सदन की कार्यवाही स्थगित होने के बाद लोकसभा में ही सोनिया-स्मृति के बीच जो नोंकझोंक हुई, वह अभूतपूर्व और अप्रत्याशित थी। उस दृश्य को हम शब्दश: दोहराना नहीं चाहते, लेकिन राजनीति की यह सोच और मानसिकता हमारे लोकतंत्र के लिए बेहतर नहीं है। हमारा मानना है कि भाजपा संसदीय दल के महिला प्रतिनिधियों को स्पीकर से मिलकर आग्रह करना चाहिए कि अधीर रंजन को कमोबेश इस शेष सत्र के लिए निलंबित किया जाए। कांग्रेस समेत विपक्षी वैसे भी सदन में लगातार हंगामा मचा रहे हैं। भाजपा विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव भी पेश कर सकती है। इस संदर्भ में नोटिस देने की बात हुई है। यह महज एक शब्द नहीं है, अधीर रंजन ने हमारे लोकतंत्र, संविधान और गणतांत्रिक परंपराओं को भी गाली दी है, कालिख पोतने का दुस्साहस किया है, लिहाजा उन्हें दंडित तो जरूर किया जाना चाहिए। इस तरह के मसले उछलने के कारण देशहित के मसलों पर चर्चा नहीं हो पाती है। यह सत्ता पक्ष तथा विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है कि देशहित के मसलों पर चर्चा जरूर हो। सदन में चर्चा के लिए आवश्यक माहौल तैयार किया जाना चाहिए। अनावश्यक मसले उछलने से सदन का बहुमूल्य समय नष्ट होता है। इससे अंतत: देश तथा आम लोगों को ही क्षति उठानी पड़ती है। बार-बार सदन में अनावश्यक बहसबाजी भारतीय लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है। सत्ता पक्ष तथा विपक्ष, दोनों को परिपक्वता दिखाते हुए लोकतंत्र के हित में काम करना चाहिए।


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