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सबसे पहले स्टेट ऑफ़ सीज़ – टेंपल अटैक का डिस्केलमर पढ़ लीजिए कि सत्य घटनाओं पर आधारित है
सबसे पहले स्टेट ऑफ़ सीज़ – टेंपल अटैक का डिस्केलमर पढ़ लीजिए कि सत्य घटनाओं पर आधारित है, सत्य घटना नहीं है। गुजरात के अहमबाद में अक्षरधाम पर 2002 में हुए आतंकवादी हमले की कहानी से ये ओटीटी फिल्म इंस्पायर्ड ज़रूर है। मंदिर का नाम – कृष्णाधाम मंदिर है, चीफ़ मिनिस्टर का नाम मनीष चौकसी है और सिचुएशन थोड़ी फिल्मी है। क्योंकि ये फिल्म ही तो है। वैसे भी सेंसर की मार और कॉन्ट्रोवर्सीज़ की तलवार से बचने के लिए फिल्म मेकर किसी भी सच्ची कहानी को बताने और दिखाने की हिम्मत ज़रा कम ही करते हैं। इसलिए -–स्टेट ऑफ़ सीज़ – टेंपल अटैक को रीयल अटैक के चश्मे से नहीं, बल्कि एक टेटर स्ट्राइक और एनएसजी ऑपरेशन वाली फिक्शनल फिल्म की नज़र से ही देखिए।
ये कहानी शुरु होती है, जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में एक ऑपरेशन से, जहां एक मिनिस्टर की बेटी को आंतकवादियों ने अगवा कर लिया है। मेज़र हनूत सिंह ऑफिशियल ऑर्डर को इग्नोर करके आगे बढ़ते हैं, लड़की को बचाते हैं मगर फिर टेरेरिस्ट लीडर अबु हमजा और बिलाल नाइको को देखकर उन्हे ज़िंदा पकड़ने की कोशिश करते हैं। यहां ऑपरेशन में ज़रा सी चुक होती है, बिलाल नाइको तो पकड़ा जाता है लेकिन अबु हमजा भाग निकलता है।
अब अबु हमजा को जेल से बाहर निकालने के लिए कृष्णाधाम मंदिर पर अटैक की प्लानिंग होती है। दूसरी ओर कुपवाड़ा में अपने साथी की मौत से टूटे मेजर हनूत सिंह को गुजरात भेजा जाता है ताकि वो चीफ़ मिनिस्टर को इन्वेस्टर मीट में प्रोटेक्ट करें, जहां एक टेरेरिस्ट अटैक का इनपुट इंटेलिजेंस को मिला है। इन्वेस्टर मीट के दौरान ही टेरेरिस्ट कृष्णाधाम मंदिर पर अटैक करते हैं और काफ़ी खून खराबा करने के बाद बाकी लोगों को होस्टेज बना लेते हैं साथ ही बिलाल नाइको को रिहा करने की डिमांड रखते हैं। अब बिलाल नाइको के पीओके पहुंचने से पहले एनएसजी को टेरेरिस्टों को ख़त्म करना है और बंदी लोगों को छुड़ाना है। कहानी परफेक्ट है, लेकिन लिखी परफेक्ट तरीके से नहीं गई है। फॉरेन राइटर्स विलियम बोर्थविक और साइमन फैनराज़ो ने ये कहानी लिखी है, तो इसमें एक खूबी है कि इंटरनेशनल फिल्मों की तरह इस सीरीज़ में कोई हीरो नहीं है, जो सुपरहीरो बनकर सबको बचा लाए। बल्कि इसे एनएसजी ऑपरेशन की तरह दिखाया गया है, जो मेजर हनूत सिंह यानि अक्षय खन्ना के इर्द-गिर्द घुमती है। ऐसे में बॉलीवुड फिल्मों के शौकीनों को ज़रा झटका लग सकता है कि हीरो यहां सुपरहीरो नहीं है। गोली उसे भी लगती है, दर्द उसे भी होता है। और कहानी में खामी ये है कि ये एक एनएसजी मिशन की कहानी बनकर रह गई है। होस्टेजेज़ के उपर कहानी घूमती ही नहीं, उनका इमोशन बाहर आता ही नहीं। और बीच में जबरदस्ती सामाजिक संदेश देने के लिए घुसाए गए सीन – एनएसजी ऑपरेशन के फ्लो को भी तोड़ देते हैं
दो सीन ख़ास तौर पर, जहां कृष्णाधाम मंदिर का सफाई कर्मचारी मंदिर से बाहर निकलने का मौका होने के बावजूद आतंकवादियों के सामने खड़ा होकर उन्हे इस्लाम और मुसलमान होने का पाठ पढ़ाने लगता है... और ऑपरेशन के बाद मंदिर के पुजारी का हिंसा और शांति को लेकर मैसेज देने की नाकाम कोशिश। ख़ास तौर पर इंटेंस क्लाइमेक्स के दौरान घुसाए गए ये सीन अचानक से आपको ऐसा झटका देते हैं कि आप फिल्म मे दोबारा दाखिल ही नहीं हो पाते। डायरेक्टर केएन घोष ने जानबूझ कर स्टेट ऑफ़ सीज़ टेंपल अटैक में ऐसे सिंबोलिक शॉट्स डाले हैं, जो उन्हे लगता है कि फिल्म के ज़रिए मैसेज देने के काम आएगी, लेकिन वो फिल्म के नरेटिव को कमज़ोर करती है। सिनेमैटोग्राफ़ी अच्छी है और सबसे अच्छी बात है कि ये फिल्म 1 घंटे 50 मिनट में ही ख़त्म हो जाती है। तो सेक्वेंस तेजी से बदल रहे हैं। एनएसजी ऑपरेशन बहुत अच्छे से दिखाया गया है, जो आपको कहीं-कहीं चौंकाता भी है। परफॉरमेंस की बात करें, तो अक्षय खन्ना ने अपने कैरेक्टर पर बखूबी काम किया है, वो कहीं भी ओवर द टॉप नहीं लगते। हां, एक बात ज़रूर है कि अपने साथी मेजर समर बने गौतम रोडे से वो उम्र में काफ़ी बड़े नज़र आते हैं। विवेक दहिया का काम भी शानदार है। मंजरी फड़नीस का रोल ज़रूरत से ज़्यादा छोटा है, लेकिन उन्हे जितना करने को मिला उससे बढ़कर उन्होने किया है। प्रवीण डबास कर्नल नागर के कैरेक्टर में जंचे हैं। जबकि सीएम के कैरेक्टर में समीर सोनी पूरी तरह से मिस फिट हैं। टेरेरिस्ट अबु हमजा बने अभिमन्यू सिंह के कैरेक्टर को कोई ख़ास स्पेस नहीं मिला है। स्टेट ऑफ़ सीज़ – टेंपल अटैक को अगर आप एनएसजी ऑपरेशन की तरह देखते हैं, तो अच्छा है। लेकिन अगर आप उससे बहुत ज़्यादा कुछ उम्मीद लगाकर बैठे हैं, तो वाह क्या बात है वाली फीलिंग तो नहीं आने वाली।
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Gulabi
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