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गुलजार आज मनाएंगे अपना 89वां जन्मदिन, पढ़ें इनकी कुछ ऐसी कविताएं

Tara Tandi
18 Aug 2023 6:48 AM GMT
गुलजार आज मनाएंगे अपना 89वां जन्मदिन, पढ़ें इनकी कुछ ऐसी कविताएं
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गुलज़ार को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। जुंबा पर उनका नाम आते ही लोग कई दिल छू लेने वाले गाने गुनगुनाने लगते हैं. मशहूर लेखक, शायर, पटकथा लेखक, गीतकार, शायर गुलज़ार ने एक से बढ़कर एक गीत लिखे हैं। कविताएं रची गई हैं, जो लोगों के दिलो-दिमाग में बस गईं। आज गुलज़ार साहब का जन्मदिन है. आज वह अपना 89वां जन्मदिन मना रहे हैं. पाकिस्तान में जन्मे गुलज़ार को बचपन से ही कविताएँ लिखने का शौक था। उनकी रचनाएँ मुख्यतः हिन्दी, पंजाबी, उर्दू में हैं। हालाँकि, उन्होंने कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी रचनाएँ लिखी हैं। उनकी निजी जिंदगी की बात करें तो एक्ट्रेस राखी के साथ उनकी शादी ठीक नहीं रही और 1 साल के अंदर ही दोनों अलग हो गए। हालाँकि, गुलज़ार ने राखी को तलाक नहीं दिया और तब से अकेले ही रह रहे हैं। शायद यही वजह है कि उनकी कई कविताओं में टूटने-बिखरने का दर्द और प्यार, प्यार की खुशबू महसूस होती है। उनके जन्मदिन पर आप भी पढ़ें गुलजार की रिश्तों पर आधारित कुछ मशहूर कविताएं.
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं
कुछ इक पल के
कुछ दो पल के
कुछ परों से हल्के होते हैं
बरसों के तले चलते-चलते
भारी-भरकम हो जाते हैं
कुछ भारी-भरकम बर्फ़ के-से
बरसों के तले गलते-गलते
हल्के-फुल्के हो जाते हैं
नाम होते हैं रिश्तों के
कुछ रिश्ते नाम के होते हैं
रिश्ता वह अगर मर जाए भी
बस नाम से जीना होता है
बस नाम से जीना होता है
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं .
ज़िंदगी यूं हुई बसर तन्हा
ज़िंदगी यूं हुई बसर तन्हा
क़ाफिला साथ और सफ़र तन्हा
अपने साये से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
रात भर बोलते हैं सन्नाटे
रात काटे कोई किधर तन्हा
दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा
हमने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर न जाने गए किधर तन्हा.
प्यार वो बीज है
प्यार कभी इकतरफ़ा होता है, न होगा
दो रूहों के मिलन की जुड़वां पैदाइश है ये
प्यार अकेला नहीं जी सकता
जीता है तो दो लोगों में
मरता है तो दो मरते हैं.
प्यार इक बहता दरिया है
झील नहीं कि जिसको किनारे बांध के बैठे रहते हैं
सागर भी नहीं कि जिसका किनारा नहीं होता
बस दरिया है और बह जाता है.
प्यार एक ज़िस्म के साज़ पर बजती गूंज नहीं है
न मन्दिर की आरती है न पूजा है
प्यार नफा है न लालच है
न कोई लाभ न हानि कोई
प्यार हेलान हैं न एहसान है.
बीते रिश्ते तलाश करती है
बीते रिश्ते तलाश करती है
ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है
जब गुज़रती है उस गली से सबा
ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है
अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
पीले पत्ते तलाश करती है
एक उम्मीद बार-बार आ कर
अपने टुकड़े तलाश करती है
बूढ़ी पगडंडी शहर तक आ कर
अपने बेटे तलाश करती है.
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