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भिवानी। हरियाणा में रोहतक की पंडित लखमीचंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफार्मिंग एंड विजुअल आर्टस के कुलपति गजेन्द्र चौहान ने गुरुवार को कहा कि अच्छी फिल्म और सीरियल समाज को जोड़ने का काम करते हैं।गजेंद्र ने कहा कि टीवी धारावाहिक महाभारत में युधिष्ठिर की भूमिका निभाने के बाद उनको लोगों से अपार स्नेह मिला है तथा वह जहां भी जाते हैं, लोग उनको प्यार से सिर-आंखों पर बैठाते हैं। उन्होंने कहा कि सीरियल में युधिष्ठिर की भूमिका निभाते वक्त उनको अनेकों-अनेक अनुभव हुए, जो उनको जीवन भर याद रहेंगे। उन्होंने भी अपनी उन यादों को संजो पर रखा हुआ है।
कभी समय आने पर वह अपनी सीरियल के समय की यादों को सांझा करेंगे। यह पूछे जाने पर कि वह शूटिंग के समय पात्र की भूमिका में अपने को ढाल कर पुन: अपने मूल स्वरूप में कैसे आ पाते हैं , उन्होंने बहुत ही सरलता से जबाव दिया कि यह सब बिजली के स्विच आन-ऑफ जैसा है। यह सब एक कलाकार को बताया और समझाया जाता है। जब यह सब एक कलाकार के समझ आ जाती है तो इसके बाद पात्र का जोन बदलने में कोई दिक्कत नहीं आती है। महाभारत सीरियल के दौरान और वर्तमान में फिल्म मेकिंग में बदलाव के बारे में उन्होंने कहा कि तकनीकी बदलाव कम मायने रखता है।
किसी भी फिल्म या सीरियल के हिट होने में कहानी, उसकी स्क्रिप्ट, प्रस्तुतीकरण, निर्देशन और पिक्चराइजेशन की बड़ी अहमियत होती है। उन्होने खेद जताया कि आज चैनलों पर चल रहे अधिकांश टीवी सीरियल हिट नहीं हो रहे हैं। उन्होने कहा कि पुराने सीरियलों में आत्मा जुड़ी होती थी परन्तु आज के सीरियलों में आत्मा नहीं होती क्योकि उनमें एक संदेश होता था। इसलिए नई पीढ़ी को पुराने सीरियल और फिल्मों से जुड़ कर रहना चाहिए। नई पीढ़ी में फिल्मों के लिए आकर्षण होता है लेकिन फिल्म लाइन में मेहनत और किस्मत दोनों काम करती है। बाहर से फिल्म लाइन की चकाचौंंध से युवा पीढ़ी को भ्रमित नहीं होना चाहिए।
अभिनेता ने बताया कि हरियाणा उनके लिए नया प्रदेश नहीं है क्योंकि वें सोनीपत सेे हैं और हरियाणा की संस्कृति और बोली से पूरी तरह परिचित हैं। वें लम्बे समय से मुम्बई में रह रहे हैं और वहीं केे वातावरण में रच-बस गए हैं और कलाकार होने के नाते उनका पहनावा भी बदल गया है पर वें अब भी बहुत भले से हरियाणवी बोल सकते हैं। गजेंद्र ने कहा कि हरियाणा में किसी भी कार्यक्रम में उनको बुलाया जाता है तो उनका भरसक प्रयास रहता है कि वह उसमें शामिल हों क्योंकि अपनों के बीच जाकर उनको अपार आनंद मिलता है।
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