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Entertainment: नेवी में जाना चाहता था ये सुपरस्टार लेकिन बन गया एक्टर, गांधी जी ने की थी तारीफ, लगा शराब, जुए का आदी, हुई मौत..
Ritik Patel
18 Jun 2024 7:25 AM GMT
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Entertainment:1955 में रिलीज हुई दिलीप कुमार स्टारर Devdas से मोतीलाल के करियर को नई ऊंचाई मिली। इस फिल्म में उन्होंने चुन्नी बाबू का किरदार निभाया था, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था। दिलीप कुमार की फिल्म 'पैगाम' हो, 'देवदास' हो या राज कपूर की 'जागते रहो', इन सभी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले अभिनेता मोतीलाल राजवंश थे, जिनका जून 1965 में निधन हो गया था। मोतीलाल ने करीब तीन दशक तक हिंदी फिल्मों में काम किया। इस दौरान उन्होंने करीब 60 फिल्मों में काम किया और 1955 में आई फिल्म 'देवदास' में चुन्नी बाबू का किरदार निभाकर खूब लोकप्रियता हासिल की।
अपने बेहतरीन हुनर के लिए उन्हें हिंदी फिल्मों का पहला नेचुरल एक्टर कहा जाता था। शिमला के मूल निवासी मोतीलाल बाद के सालों में नौसेना में शामिल होने के लिए मुंबई (तब बॉम्बे) चले गए, हालांकि किस्मत उन्हें फिल्मों में ले आई। उन्होंने 1940 में आई फिल्म 'अछूत' में एक अछूत की भूमिका निभाई थी, जिसके लिए उन्हें महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल से प्रशंसा मिली थी।मोतीलाल राजवंश हमेशा अपने स्टाइल और निजी जीवन की वजह से चर्चा में रहे। वह बहुत अमीर परिवार से ताल्लुक रखते थे, लेकिन अंत में अपनी कुछ गलतियों की वजह से वह गरीबी में ही मर गए। उनके निजी जीवन की बात करें तो मोतीलाल राजवंश की अपने समय की दिग्गज अभिनेत्री शोभना समर्थ के साथ प्रेम कहानी काफी मशहूर रही।
आपको बता दें कि Motilal राजवंश का जन्म दिसंबर 1910 में शिमला में हुआ था। उनके पिता एक जाने-माने शिक्षाविद् थे, जिनकी मृत्यु तब हो गई थी, जब मोतीलाल केवल एक वर्ष के थे। मोतीलाल का पालन-पोषण उनके चाचा ने किया, जो उत्तर प्रदेश के जाने-माने सर्जन थे।कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद मोतीलाल बॉम्बे आ गए। वह नौसेना में भर्ती होना चाहते थे, लेकिन आखिरी समय में वह इतने बीमार पड़ गए कि वह परीक्षा नहीं दे पाए। एक दिन जब वे बॉम्बे के सागर स्टूडियो में एक फिल्म की शूटिंग देखने गए, तो फिल्म के निर्देशक केपी घोष मोतीलाल के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुए।
केपी घोष ने मोतीलाल को एक फिल्म ऑफर की। 1934 में (24 साल की उम्र में) उन्हें 'शहर का जादू' (1934) में हीरो की भूमिका ऑफर की गई। यहीं से मोतीलाल के फिल्मी करियर की शुरुआत हुई। 1940 के आसपास मोतीलाल ने अपने किरदारों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया। जहां दूसरे अभिनेता रोमांटिक छवि वाली भूमिकाएं चुन रहे थे, वहीं मोतीलाल ने बोल्ड भूमिकाएं चुननी शुरू कर दीं, जिन्हें करने में दूसरे अभिनेता झिझकते थे। 1940 में आई फिल्म 'अछूत' में एक अछूत की भूमिका निभाकर मोतीलाल ने सबको चौंका दिया। सामाजिक संदेश देने वाली इस फिल्म में मोतीलाल ने इतना बेहतरीन काम किया कि महात्मा गांधी और वल्लभभाई पटेल ने उनकी सराहना की। इस फिल्म के बाद मोतीलाल का नाम Film Industry के बड़े अभिनेताओं की सूची में शामिल होने लगा।
1955 में रिलीज़ हुई दिलीप कुमार स्टारर 'देवदास' से मोतीलाल के करियर को नई ऊंचाइयों का शिखर मिला। इस फिल्म में उन्होंने चुन्नी बाबू का किरदार निभाया था, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। मोतीलाल ने फिल्म इंडस्ट्री में पैसा कमाने के लिए कदम नहीं रखा था। वह एक अमीर परिवार से ताल्लुक रखते थे, इसलिए उनके पास पैसों की कोई कमी नहीं थी। उनकी लाइफ़स्टाइल भी इस बात की गवाही देती थी। मोतीलाल को हाई-क्लास सोसाइटी में घुलना-मिलना पसंद था। वह अपने बेफिक्र स्वभाव के लिए पूरी फिल्म इंडस्ट्री में मशहूर थे। हमेशा सूट-बूट में सबसे अलग दिखने वाले मोतीलाल को हैट पहनने का भी बहुत शौक था। मोतीलाल को तेज रफ्तार से कार चलाने, घुड़सवारी करने और क्रिकेट खेलने का भी बहुत शौक था।
मोतीलाल की बेफिक्र लाइफ़स्टाइल से कई अभिनेत्रियाँ भी प्रभावित थीं, लेकिन पूरी फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ़ दो अभिनेत्रियाँ ही मोतीलाल का दिल जीत पाईं। ये थीं शोभना समर्थ और नादिरा। मोतीलाल नादिरा के साथ रिलेशनशिप में थे, लेकिन उन्होंने शादी नहीं की और फिर brake up हो गया। नादिरा से अलग होने के बाद मोतीलाल को शोभना समर्थ से प्यार हो गया। शोभना की शादी निर्देशक और सिनेमेटोग्राफर कुमारसेन समर्थ से हुई थी। उनकी तीन बेटियाँ नूतन, तनुजा और चतुरा और एक बेटा जयदीप था। दोनों ने सौहार्दपूर्ण तरीके से तलाक ले लिया जिसके बाद शोभना का नाम मोतीलाल राजवंश से जुड़ गया। मोतीलाल ने अपना ज़्यादातर जीवन ऐशो-आराम में बिताया, लेकिन अपने अंतिम दिनों में वे परेशान थे। शराब और जुए की लत ने उन्हें बर्बाद कर दिया। उन्होंने घुड़दौड़ पर भी बहुत सारा पैसा दांव पर लगाया और हार गए। अत्यधिक शराब पीने की वजह से 1960 के आसपास मोतीलाल की तबीयत खराब होने लगी, जिसके कारण उन्होंने फिल्मों में काम करना कम कर दिया। एक इंटरव्यू में मोतीलाल ने खुद बताया था कि उन्हें तीन बार दिल का दौरा पड़ा था। इस दौरान मोतीलाल ने फिल्मों में अभिनय करने के बजाय स्क्रिप्ट राइटिंग, डायरेक्शन और प्रोडक्शन की ओर रुख किया। उन्होंने फिल्म 'छोटी छोटी बातें' लिखी, प्रोड्यूस की और निर्देशित की, लेकिन इसके रिलीज होने से पहले ही उनकी मौत हो गई। इस फिल्म के लिए उन्हें मरणोपरांत दो राष्ट्रीय पुरस्कार दिए गए। 1965 में मोतीलाल ने 'सोलह सिंगार करे दुल्हनिया' नाम की एक भोजपुरी फिल्म में भी काम किया। यह फिल्म उनकी मृत्यु से ठीक पहले रिलीज हुई थी। 17 जून 1965 को मोतीलाल का निधन हो गया।
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