दिल्ली क्राइम, स्कैम 1992 और रॉकेट बॉयज जैसे शो की लोकप्रियता के कारण डिजिटल प्लेटफार्म पर ऐसी कहानियों का जोर सत्य में तीक्ष्णता होती है, पर उसका एक अलग आकर्षण है। वास्तविक घटनाओं या व्यक्ति विशेष पर बनी कहानियों को डिजिटल प्लेटफार्म पर विश्वसनीयता के साथ विस्तार से दिखाने का अवसर मिलता है, इसलिए मेकर्स भी इन्हें बनाने में रुचि ले रहे हैं। 'दिल्ली क्राइम', 'स्कैम 1992- द हर्षद मेहता स्टोरी', 'राकेट ब्वायज', 'मुंबई डायरीज 26/11' और 'स्टेट आफ सीज- 26/11' जैसे शोज की लोकप्रियता इसकी बानगी है। ऐसी कहानियों की स्वीकार्यता व निर्माण की चुनौतियों की पड़ताल कर रहे हैं प्रियंका सिंह व दीपेश पांडेय
भारत-पाकिस्तान युद्ध की पृष्ठभूमि में कई फिल्में बनी हैं। अब डिजिटल प्लेटफार्म भी इस युद्ध की पृष्ठभूमि में अपनी कहानियां लाने की तैयारी में है। फिल्म 'नाम शबाना' के निर्देशक शिवम नायर इन दिनों 'मुखबिर' वेब सीरीज पर काम कर रहे हैं। यह सीरीज साल 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित मलय कृष्ण धर द्वारा लिखी गई किताब 'मिशन टू पाकिस्तान- एन इंटेलिजेंस एजेंट इन पाकिस्तान' पर बन रही है। इस सीरीज की कहानी युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भारतीय जासूस के इर्द-गिर्द होगी। शिवम कहते हैं कि लोग वास्तविक कहानियां विस्तार से देखना चाहते हैं। हम लोग भी ऐसी कहानियां और किरदार ढूंढ़ते रहते हैं। किसी भी घटना को लेकर बहुत सी चीजें टीवी और अखबारों के माध्यम से खबरों में आ जाती हैं, जबकि बहुत सी इनसाइड कहानियां बची रहती हैं। अगर निर्माता-निर्देशक को लगता है कि उस कहानी की बारीकी में जाकर उसमें कुछ हीरोइक चीजें जोड़कर उसे किसी खास नजरिए से बनाया जा सकता है तो निर्माता उस कहानी को बनाते हैं। एक ही घटना को हर निर्देशक अलग-अलग तरीके से देखते हैं। निर्देशक कहानी को किस नजरिए से पकड़ता है, यह उसकी व्यक्तिगत पसंद होती है।
दौर का रखना पड़ता है खयाल: 'राकेट ब्वायज', 'मुंबई डायरीज 26/11' शो बना चुके निर्देशक-निर्माता निखिल आडवाणी अब 'मुंबई डायरीज' का दूसरा सीजन लाने की तैयारी में हैं। दूसरा सीजन वर्ष 2005 में मुंबई में आई बाढ़ पर आधारित होगा। जो बीत चुका है, उन वास्तविक कहानियों को दर्शाना निर्माता पसंद कर रहे हैं, लेकिन उन कहानियों को शूट करना भी चुनौतीपूर्ण होता है। इस बारे में निखिल कहते हैं कि सोचा-समझा निर्णय था कि मैं वह कहानियां दिखाऊं, जिनमें सच्चाई हो। जैसे 'राकेट ब्वायज' में विक्रम साराभाई और होमी जहांगीर भाभा की महत्वाकाक्षाओं, उनके संघर्ष और उनके संबंधों पर फोकस रखा गया था। मैंने जो भी कहानियां बनाई हैं, वे एक अलग दौर की बात करती हैं। इन वास्तविक कहानियों को लिखना, उनकी तरह दिखने वाले एक्टर्स की कास्टिंग आसान नहीं होती है। आज से 30-40 साल पहले की कहानियों की शूटिंग भी चुनौतीपूर्ण होती है। देश इतने सालों में आधुनिक हुआ है। ऐसे में फ्रेम लगाते वक्त स्विच बोर्ड से लेकर, वायरिंग तक का खयाल रखना पड़ता है। 'राकेट ब्वायज' में तो राकेट लांच को दिखाना सबसे खर्चीला था।
हर कहानी की एक ही भाषा: पिछली सदी के आठवें दशक के पूर्वांचल की अपराध और सियासत की कहानी को वेब सीरीज 'रक्तांचल' और 'रक्तांचल 2' में दिखाया गया था। वास्तविक घटनाओं की स्क्रिप्ट लिखने को लेकर लेखक संजय मासूम कहते हैं कि जो दौर बीत चुका है, उस पर कहानियां लिखने में लेखकों की दिलचस्पी होती है। मेरी थोड़ी ज्यादा है, मैं उस दौर और उत्तर प्रदेश से हूं, जहां की घटना को इस सीरीज में दिखाया गया है। एक दौर की जब बात होती है तो उस वक्त किरदार कैसे बात करते थे, कैसा माहौल था, वह सब लेखन में होना चाहिए। रियलिटी पर आधारित कहानियों में थोड़ी बहुत कल्पनाओं को जोड़कर बेहतर बनाने के मौके डिजिटल प्लेटफार्म पर बेहतर मिलते हैं। वहां सच्चाई से उसे दिखाने पर पाबंदी नहीं है। हर कहानी की अपनी भाषा होती है, जैसे हम पूर्वांचल के गैंगवार की बात शो में कर रहे हैं। अमेरिका हो, मैक्सिको हो या उत्तर प्रदेश, गैंगवार की भाषा एक ही है, हिंसा। हमने 'गाडफादर' और 'नार्कोस' जैसी कहानियां पसंद की हैं। जिस तरह से हम एंज्वाय करते हैं, विदेशी भी करते हैं।
कल्पनाओं का तड़का: कई बार वास्तविक कहानियों के साथ प्रयोग भी करने पड़ते हैं। निखिल कहते हैं कि 'मुंबई डायरीज 26/11' के सारे किरदार काल्पनिक थे, लेकिन घटना वास्तविक थी। हर वास्तविक शो में ड्रमैटाइजेशन और फिक्शनलाइजेशन होता ही है। हमने 'मुंबई डायरीज 26/11' में ताज होटल की मैनेजर की उस बहादुरी को दिखाया था, जिसने तीन बार होटल के भीतर जाकर गेस्ट को बाहर निकाला था, लेकिन बाकी के किरदार काल्पनिक थे। इस संबंध में शिवम कहते हैं कि थोड़ी क्रिएटिव लिबर्टी लेना जरूरी है, क्योंकि दर्शकों को सीधी-सपाट कहानी देखने में दिलचस्पी नहीं आएगी। हालांकि कहानी कहने में लिबर्टी लेते समय सावधानियां बरतनी पड़ती हैं कि कहीं किरदार डैमेज न हो जाए, उसकी हरकतें उल्टी सीधी न हो जाएं। मेरा शो 'मुखबिर' पूरी तरह से वास्तविक घटना पर आधारित नहीं है, इसमें बहुत सी कल्पनाएं जोड़ी गई हैं।
मिमिक्री न लगने का खयाल: वास्तविक घटनाओं पर आधारित कहानियों को पेश करना चुनौती होती है। 'द वर्डिक्ट- स्टेट वर्सेस नानावटी' और '1962- द वार इन द हिल्स' में अभिनय कर चुके सुमित व्यास कहते हैं कि किरदार का मान बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है। 'द वर्डिक्ट- स्टेट वर्सेस नानावटी' में मैंने प्रसिद्ध वकील राम जेठमलानी की युवावस्था का किरदार निभाया था। हमने उनके हाव-भाव की नकल नहीं की। हमारी रिसर्च उनकी मानसिक स्थिति, रणनीति और खूबियों पर केंद्रित रही। इस केस में वह मुख्य वकील चंदू त्रिवेदी को सपोर्ट कर रहे थे। हालांकि केस के पीछे दिमाग उनका था। '1962- द वार इन द हिल्स' की घटना वास्तविक थी। उस युद्ध में सिर्फ तीन-चार लोग ही बच पाए थे। मेरा किरदार राम कुमार तीन-चार सिपाहियों की जिंदगी का मिला-जुला चित्रण था। इसके लिए हमने बेसिक आर्मी की ट्रेनिंग की। 'स्कैम 1992- द हर्षद मेहता स्टोरी' वेब सीरीज में हर्षद का किरदार निभाने वाले अभिनेता प्रतीक गांधी कहते हैं कि मैंने हर्षद मेहता जैसा दिखने की बजाय, उनके व्यक्तित्व में जाने की कोशिश की।
'भौकाल' और 'भौकाल 2' में आईपीएस अफसर नवीन सिकेरा का किरदार निभा चुके मोहित रैना कहते हैं कि आपको किरदार के भीतर उतरना पड़ता है। जो घटनाएं हुई हैं, उनको महसूस करना पड़ता है, जैसे मैं शो की टीम से कहता था कि मेरी पुलिस की कास्ट्यूम को ज्यादा प्रेस न करें, क्योंकि वह फिल्मी नहीं, रियल पुलिस अधिकारी हैं। मैं नवीन सिकेरा से मिलने के लिए लखनऊ भी गया था। वह सुबह फोन पर अपनी मां से बात करते हैं कि क्या खाया, लंच में क्या खाएंगी। उसके बाद अपनी कार से उतरते ही वह सिर्फ अपना जाब करते हैं।
फिल्म फार्मेट में चित्रण: डिजिटल प्लेटफार्म पर वास्तविक घटनाओं को केवल सीरीज फार्मेट में ही नहीं, बल्कि फिल्म फार्मेट में भी ढाला जा रहा है। उन फिल्मों को सिनेमाघरों में न लाकर डिजिटल प्लेटफार्म पर रिलीज करने को लेकर मेकर्स की अपनी वजहें हैं। कानपुर के कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे पर आधारित वेब फिल्म 'हनक' रिलीज के लिए तैयार है। फिल्म के निर्देशक मनीष वात्सल्य कहते हैं कि विकास दुबे बचपन से ही गलत इंसान था। उसके कारनामों का महिमामंडन हम नहीं कर रहे हैं। किरदार को वास्तविकता के करीब रखना डिजिटल प्लेटफार्म पर आसान हो जाता है। मुझे इस कहानी के लिए फिल्म फार्मेट सही लगा।
असल कहानियों का चित्रण: आईसी 814- 24 दिसंबर 1999 को नेपाल के काठमांडू से दिल्ली आ रही फ्लाइट आईसी 814 को पांच आतंकियों ने हाईजैक कर लिया था। इस प्लेन के पायलट कैप्टन देवी शरण की किताब 'फ्लाइट इन टू फीयर- द कैप्टंस स्टोरी' पर यह शो आधारित होगा। साकेत चौधरी शो का निर्देशन करेंगे।