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निगेटिविटी से बचने के लिए सोशल मीडिया पर नहीं आना चाहता: सैफ अली खान

Neha Dani
17 Jan 2022 11:07 AM GMT
निगेटिविटी से बचने के लिए सोशल मीडिया पर नहीं आना चाहता: सैफ अली खान
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लेकिन अब रियलिज्म के लिए लेखक थोड़े-थोड़े आंचलिक शब्‍दों का प्रयोग करने लगे हैं।

करीब तीन दशक से हिंदी सिनेमा में सक्रिय अभिनेता सैफ अली खान लगातार वैरायटी किरदार निभा रहे हैं। उनकी हॉरर कॉमेडी फिल्‍म भूत पुलिस का 23 जनवरी को स्‍टार गोल्‍ड पर रात आठ बजे प्रीमियर होगा। वहीं उनकी फिल्‍म विक्रम वेधा और आदि पुरुष रिलीज होने की कतार में हैं। नई साल से उम्‍मीद, अपनी फिल्‍मों और सोशल मीडिया से दूरी जैसे पहलुओं पर उन्‍होंने बात की।

नया साल एक अच्‍छा समय होता है ये सोचने का कि जिंदगी कहां जा रही है? कुछ बदलाव हम ला सकते हैं या नहीं। मैं कोई रिजोल्‍यूशन नहीं लेता पर यह जरूर सोचता हूं कि अपने काम में कहां पर सुधार लाए, हेल्‍थ और वर्कआउट के बारे में, संतुलन बना रहे। यही सब छोटी छोटी चीजें। बाकी इतिहास हमें बताता है कि ऐसी समस्याएं आती हैं और जाती हैं। मुझे पूरी उम्‍मीद है कि एक दो साल बाद हम बोलेंगे कि कोरोना का टाइम था। यह जिंदगी भर नहीं चलेगा। इस समय जरूरी है अपनी सेहत और परिवार का ख्‍याल रखें।
मेरे बचपन में टीवी का मतलब दूरदर्शन था। तब ब्‍लै‍क एंड व्‍हाइट टीवी हुआ करता था। तब उस समय दो प्रोग्राम आते थे। कभी-कभी हिंदी मूवी आती थी जिसे मेरी छोटी बहन सबा देखती थी और चित्रहार आता था। एक कार्यक्रम आई लव लूसी आता था। यह दो-तीन प्रोग्राम आते थे। दिल्‍ली में हमारे धोबी होते थे हसन भाई। उन्‍होंने हमारे पिताजी से पहले कलर टीवी खरीदा था। पर टीवी का इतना माहौल नहीं था। हम लोग किताबें पढ़ा करते थे और कहानियां सुनते थे। अब टीवी घर-घर पहुंच गया है। भूत पुलिस पारिवारिक फिल्‍म है। इसे बच्‍चे भी परिवार के साथ देख सकते हैं। वरना ज्यादातर हॉरर कॉमेडी फैमिली लायक नहीं होती।
भूत पुलिस में आपका उच्‍चारण थोड़ा अलग है...
अगर भारत को देखा जाए तो हर गली हर शहर में थोड़ी दूरी पर आपको अलग बोली और अलग भाषा सुनने को मिलेगी। हिंदी जो हमें स्‍कूल में पढ़ाई जाती है वैसा उच्‍चारण देखा जाए तो सब जगह समान नहीं होता है। हर किसी का अपना लहजा होता है। साफ हिंदी हम फिल्‍मों में बोलते हैं ताकि लोगों को समझ में आए। आप रीजनल डायलेक्‍ट लगाएंगे जैसा मेरी फिल्‍म ओंकारा में था, तो मेरे पिताजी (मंसूर अली खान) बहुत कम फिल्‍में देखते थे लेकिन उन्‍होंने ओंकारा देखी थी। उसे देखने के बाद उन्‍होंने कहा था कि आपने काम अच्‍छा किया है लेकिन आपकी भाषा मुझे समझ नहीं आई। कई लोगों को वो भाषा समझ में नहीं आई। तो हम ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं जो हमारे हिंदी दर्शकों को समझ आए, लेकिन अब रियलिज्म के लिए लेखक थोड़े-थोड़े आंचलिक शब्‍दों का प्रयोग करने लगे हैं।


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