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Death Anniversary : सादत हसन मंटो एक ऐसे लेखक थे, जिन्होंने अपनी कहानियों से खूब सुर्खियां बटोरी, जाने उनसे जुड़ी बातें

Bhumika Sahu
18 Jan 2022 3:01 AM GMT
Death Anniversary : सादत हसन मंटो एक ऐसे लेखक थे, जिन्होंने अपनी कहानियों से खूब सुर्खियां बटोरी, जाने उनसे जुड़ी बातें
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Saadat Hasan Manto Death Anniversary : अभिनेत्री और निर्देशक नंदिता दास का मानना है कि मंटो की कहानियों ने अपने समय के समाज का आईना दिखाया था, जिसमें डर, विरोधाभास और पूर्वाग्रह थे, जो आज भी नहीं बदले हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सादत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) एक ऐसे लेखक थे, जिन्होंने अपनी कहानियों से खूब सुर्खियां बटोरी. उनकी कहानियों को लोग बहुत ही चाव से पढ़ा करते. लोग उनके पूरे नाम से कम, बल्कि सिर्फ मंटो कहकर उन्हें ज्यादा बुलाया करते थे. मंटो की आज पुण्यतिथि (Saadat Hasan Manto Death Anniversary) है. सादत हसन मंटो का जन्म 1912 में भारत में हुआ, लेकिन बटवारे (India-Pakistan Partition) के बाद उनका आखिरी समय पाकिस्तान के लाहौर में बीता. उन्होंने अपनी अंतिम सांस भी लाहौर में ही ली थी. भारत के लुधियाना में जन्मे मंटो ने 1948 में पाकिस्तान जाने से पहले अपनी ज्यादातर जिंदगी का हिस्सा दिल्ली और मुंबई में बिताया था.

उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने कहानियां लिखने और उनका मंचन करना शुरू कर दिया था. मुंबई में रहने के दौरान उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्मों की पटकथा भी लिखी, जिनमें 'चल चल रे नौजवान', 'मिर्जा गालिब' और 'आठ दिन' जैसी कुछ क्लासिक फिल्में शामिल हैं. इतना ही नहीं, भारत की पहली रंगीन फिल्म 'किसान कन्या' मंटो के उपन्यास पर ही आधारित थी. मंटो ने इस फिल्म के लिए डायलॉग भी लिखे थे. इसके अलावा भी कई फिल्मों को मंटो के उपन्यास के आधार पर बनाया गया है. इनमें, 'तमाशा', 'धुआं, 'शिकारी' जैसी फिल्में शामिल हैं.
मंटो की जिंदगी पर पड़ा था बटवारे का असर
सादत हसन मंटो की जिंदगी से लोगों को रूबरू कराने के लिए अभिनेत्री और निर्देशक नंदिता दास ने 'मंटो' नामक एक फिल्म का निर्माण किया था, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने मंटो की भूमिका निभाई. फिल्म का एक बड़ा हिस्सा मंटो की पांच सबसे लोकप्रिय कहानियों और उनकी कहानियों में अश्लीलता के आरोपों के साथ उनके संघर्ष को शामिल करता है. इनमें सबसे प्रमुख मंटो की शॉर्ट स्टोरी 'ठंडा गोश्त' थी, जिसपर एक समय पर काफी विवाद भी हुआ था.
नंदिता की इस फिल्म में मंटो की बॉम्बे से लाहौर की यात्रा और अश्लीलता के आपराधिक मामलों पर विशेष ध्यान दिया गया. ये घटनाएं ऐसी थीं, जिन्होंने उनके सर्वश्रेष्ठ काम को प्रेरित तो किया ही, लेकिन उन्हें एक बुरा अनुभव भी दिया. हालांकि, मंटो को अगर किसी ने सबसे ज्यादा तोड़ा था, तो वो था देश का बटवारा. कई भारतीय मुस्लिमों की तरह मंटो भी उनमें से एक थे, जिन्होंने इस बटवारे का दुख सहा और जो पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे. खैर, इस बटवारे ने उनके चाहने वालों को कुछ बेहतरीन कहानियां भी तोहफे में दीं, जिनमें 'टोबा टेक सिंह', 'खोल दो', 'ठंडा गोश्त' जैसी शॉर्ट स्टोरीज शामिल हैं.
नंदिता ने कहा था- मंटो जिंदा होते तो सलाखों के पीछे होते…
जब नंदिता दास, 'मंटो' पर फिल्म बना रही थीं, तब द वायर को उन्होंने एक इंटरव्यू दिया था. इस इंटरव्यू के दौरान नंदिता ने कहा था कि अगर मंटो जिंदा होते तो वह सलाखों के पीछे होते. नंदिता ने ऐसा क्यों कहा था, चलिए इसके बारे में बताते हैं. नंदिता, मंटो की कहानियों से बहुत प्रेरित हैं, जिसकी वजह यही है कि उन्होंने मंटो के जीवन और उनकी कहानियों को सिनेमाई पर्दे पर दिखाने की हिम्मत जुटाई.
रिपोर्ट के अनुसार, मंटो को लेकर बात करते हुए नंदिता ने कहा था कि मेरे लिए निर्देशन और फिल्म निर्माण, किसी भी डिजाइन का हिस्सा नहीं है, बल्कि मेरे आसपास जो कुछ भी हो रहा है, उसका जवाब देने का एक साधन है. मंटो और फिराक ने मुझे गहरी चिंतन में डालते हुए एक प्रतिक्रिया देने के लिए प्रेरित किया. हां, देश में सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक माहौल को देखते हुए मुझे इस फिल्म को बनाने की प्रेरणा मिली. मंटो अपने समय में प्रासंगिक थे और आने वाले लंबे समय तक प्रासंगिक रहेंगे, जबकि बहुत कुछ अब बदल चुका है. आजादी के 70 से ज्यादा वर्षों बाद भी, मानव अनुभव की सार्वभौमिकता के विपरीत, हमारी पहचान अक्सर जाति, वर्ग, राष्ट्रीयता और धर्म से जुड़ी हुई है.
नंदिता का मानना है कि मंटो की कहानियों ने अपने समय के समाज का आईना दिखाया था, जिसमें डर, विरोधाभास और पूर्वाग्रह थे, जो आज भी नहीं बदले हैं. इस इंटरव्यू के दौरान जब नंदिता से पूछा गया था कि उनके यानी मंटो जैसा इंसान आज के दौर में कैसे फिट होगा? तो इस पर जवाब देते हुए नंदिता ने कहा था कि उनके जैसे पुरुष किसी भी समय में फिट नहीं होते. वे हमारे कुरूप पक्ष को समाज के सामने रखते हैं. अगर वह आज जिंदा होते तो उनके पास आज के बारे में कहने के लिए बहुत कुछ होता और अब तक वह सलाखों के पीछे होते.


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