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97 फीसदी आबादी इस साल गरीबी रेखा से नीचे आ सकती है।
अफगानिस्तान में तालिबान का राज आने के बाद से वहां के हालात काफी खराब हुए हैं। ऐसे में अफगानिस्तान को मानवीय संकट से निकालने के लिए दुनिया भर के देश अपनी-अपनी ओर से कोशिश कर रहे हैं। बीते 24 जनवरी को नार्वे की राजधानी ओस्लो में पश्चिमी देशों के प्रतिनिधियों के साथ तालिबान के प्रतिनिधियों ने मुलाकात की। इस वार्ता में अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली, यूरोपीय संघ और नार्वे के प्रतिनिधि मौजूद रहे। उन्होंने अफगानिस्तान की स्थिति पर चर्चा की साथ ही अफगानिस्तान में मानवीय संकट को दूर करने पर जोर दिया।
एक संयुक्त बयान में पश्चिमी देशों के राजनयिक ने अफगानिस्तान के मानवीय हालात पर बयान देते हुए कहा कि अफगानिस्तान के मानवीय संकट को दूर करने की तत्काल आवश्यकता है। ताकि अफगान लोगों की पीड़ा को कम किया जा सके। इस दौरान अफगानिस्तान के मानवीय कार्यकर्ताओं, महिला और पुरुषों के लिए उठाए गए कदमों में राहत देने की बात कही गई। साथ ही वहां के हालातों पर चिंता व्यक्त करते हुए पाबंदियों को हटाने पर जोर दिया गया।
ओस्लो में बैठक के दौरान, राजनयिकों ने यह स्पष्ट किया कि तालिबान के साथ उनकी बैठक में सितंबर 2021 में तालिबान द्वारा घोषित अंतरिम सरकार की आधिकारिक मान्यता या वैधता का कोई अर्थ नहीं है। साथ ही प्रतिनिधियों ने तालिबान से अफगानिस्तन के हालातों का भी जिक्र करते हुए वहां की परेशानियों को सामने रखा। बैठक के दौरान अफगानिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन की वृद्धि को रोकने, मनमाने ढंग से लोगों को हिरासत मे रखना, मीडिया पर कार्रवाई, हत्याएं, महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा पर अत्याचार जैसे मुद्दों को उठाया गया।
बता दें कि नार्वे की राजधानी ओस्लो में अफगानिस्तान को मानवीय सहायता और मानवाधिकार के मुद्दे पर तालिबान और पश्चिमी देशों के राजनयिकों व अन्य प्रतिनिधियों के बीच यह बैठक ऐसे समय में हुई है, जब ठंड के साथ अफगानिस्तान का आर्थिक संकट भी बढ़ रहा है। 20 साल बाद पिछले साल अगस्त में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से अफगानिस्तान में मानवीय स्थिति बिगड़ती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय सहायता अचानक बंद होने से लाखों लोग भूखे मर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक, इस साल आधी से ज्यादा आबादी अकाल का सामना कर रही है, और 97 फीसदी आबादी इस साल गरीबी रेखा से नीचे आ सकती है।
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