
हिंदी सिनेमा में चॉकलेटी हीरो से इतर एक ऐसे चेहरे की जरूरत शुरू से रही है जो बिल्कुल आम इंसान जैसा हो। बहुत स्मार्ट न दिखता हो। मध्यमवर्गीय परिवारों की नुमाइंदगी कर सकता हो और बोलता, बतियाता वैसे ही हो, जैसे इन परिवारों के अल्प आत्मविश्वास वाले लड़के करते हैं। तो संजीव कुमार से चला ये सिलसिला ओम पुरी, मनोज बाजपेयी, इरफान खान और नवाजुद्दीन सिद्दीकी से होता हुआ अब विजय वर्मा को टटोलने की कोशिश कर रहा है। विजय ने पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से एक्टिंग की पढ़ाई की है। राज और डीके की 15 साल पहले बनी शॉर्ट फिल्म ‘शोर’ में अभिनय की आग दिखाई है और तमाम फिल्में और वेब सीरीज करने के बाद ये तो साबित किया है कि अगर उनको किरदार लेखन के सही शोध और निर्देशन के सही क्षोध के साथ मिले तो वह भी अपना रुतबा बढ़ा सकते हैं।
जिगर फरीदी की यूपी वापसी
कोरोना संक्रमण काल में विजय वर्मा का बेहतरीन अभिनय जी5 पर रिलीज हुई फिल्मों ‘बमफाड़’ और ‘यारा’ में दिखा। जी5 ने इन फिल्मों का कोई खास प्रचार किया नहीं और न जिगर फरीदी लोगों के दिलों तक पहुंच पाया और न ही रिजवान शेख की तरफ लोगों का ध्यान गया। विजय वर्मा की हालत रेगिस्तान के उस हिरण जैसी है जिसे दूर चमकता हर रेत का टीला पानी नजर आता है। वह किरदार दर किरदार खुद के साथ प्रयोग भी कर रहे हैं। कभी लोहा सिंह बनते हैं, कभी हमजा शेख और कभी विजय चौहान भी..! सस्या और आनंद स्वर्णकार के रूप में भी लोगों ने उन्हें देखा है। अब वह रवि शंकर त्रिपाठी के किरदार में हैं। हैदराबाद में बसे मारवाड़ी परिवार में पले बढ़े विजय वर्मा को उत्तर भारतीय संस्कृति के करीब लाता उनका ये नया किरदार उनके पहले के कई और किरदारों की तरह ही अधपका है। विजय के साथ दिक्कत ये दिखती है कि वह खुद को पूरी तरह लेखकों और निर्देशकों के हवाले कर दे रहे हैं और बतौर अभिनेता किसी किरदार की पृष्ठभूमि और उसके मानसिक आचार विचार को समझने की कोशिश नहीं कर रहे हैं
यूपी 65 और बिना हेलमेट का दरोगा
मैक मोहनगंज नाम के काल्पनिक शहर में यूपी 65 नंबर की यामाहा बाइक पर घूमते विजय वर्मा जब तीन महीने पहले ही भर्ती हुए दरोगा के किरदार को जीने की कोशिश करते हैं, तो उनके प्रयास ईमानदार लगते भी हैं। वेब सीरीज ‘कालकूट’ की कहानी शुरू ही इस बात से होती है कि ये दरोगा तीन महीने की ही नौकरी में उकता गया है और इस्तीफा देना चाहता है। आईएएस, पीसीएस, नीट और सीडीएस जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते करते दिमाग उसका कंप्यूटर से भी तेज चलने लगा है लेकिन आत्मविश्वास उसमें रत्ती भर का नहीं दिखता। थाना प्रभारी से गालियां खाता रहता है। सिपाही उसका मजाक बनाते हैं और वह दिन रात सरकारी पिस्तौल कमर में खोंसे रहता है। केस उसको पहला मिलता है एक एसिड अटैक को सुलझाने का। साथ में खनन माफिया, बालिकाओं की जन्मते ही हत्या, ईमेल हैकिंग और सोशल मीडिया पर महिलाओं की अश्लील फोटो अपलोड करने की क्षेपक कथाएं भी हैं।
