Bioscope S2: नाना पाटेकर करने वाले थे संजय दत्त वाला रोल, माधुरी ने साइन किया 'नो प्रेगनेंसी' क्लॉज
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। संजय दत्त की फिल्म 'खलनायक' जिस साल 1993 में अगस्त के पहले हफ्ते में रिलीज हुई, उसी साल शाहरुख खान की फिल्म 'बाजीगर' 12 नवंबर को और 'डर' 24 दिसंबर को रिलीज हुई। तीनों फिल्मों में नायकों ने खलनायक का किरदार किया और तीनों फिल्में सुपरहिट। ये तो आपको पता ही है कि फिल्म 'डर' में शाहरुख वाला किरदार पहले आमिर को ऑफर हुआ था। आमिर ने ये किरदार करने से मना तो कर दिया लेकिन जल्द ही उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया। फिर आमिर को किसी ने फिल्म 'खलनायक' के बारे में बताया तो आमिर ने बाकायदा सुभाष घई से मुलाकात की, बैठकें की और उनसे उस फिल्म के बारे में भी खूब पूछा जिसे वह नाना पाटेकर और जैकी श्रॉफ के साथ बना रहे थे। जी हां, फिल्म 'खलनायक' पहले जैकी और नाना के साथ ही बन रही थी, एक आर्ट फिल्म के रूप में। थोड़ा और पीछे जाएं तो पता चलता है कि फिल्म 'खलनायक' दरअसल सुभाष घई की उस फिल्म 'देवा' की परिवर्तित संस्करण है, जो वह अमिताभ बच्चन के साथ बनाने वाले थे। फिल्म का बंबई में शानदार मुहूर्त भी हुआ लेकिन फिल्म इससे आगे बढ़ नही सकी।
नाना पाटेकर को बनना था बल्लू
सुभाई घई आत्ममुग्ध फिल्ममेकर रहे हैं और उनके साथ जल्दी जल्दी किसी की पटरी बैठ पाना आसान नहीं है। लच्छे छोड़ने के वह शौकीन हैं और फिल्मों की तैयारियां वह दरबार लगा कर करते हैं। जिस तरह की कामयाबी उन्होंने पाई है, उस हिसाब से ये सब करना उन्हें भाता भी है। नाना पाटेकर जब तक फिल्म में थे, बल्लू का किरदार एक अधेड़ आदमी का ही रहा, लेकिन जैसे जैसे राम केलकर के साथ सुभाई घई फिल्म की पटकथा पर आगे बढ़ते गए ये किरदार एक गुमराह नौजवान का हो गया। घई ने इसका जिक्र नाना से किया तो उन्होंने स्क्रिप्ट के हिसाब से नया हीरो चुन लेने की छूट उन्हें दे तो दी लेकिन कभी इस हरकत के लिए सुभाष घई को माफ़ नही किया।
आमिर को भी पसंद आया रोल
नाना फिल्म से बाहर हुए तो आमिर खान को लगा कि अब मौका है और वह एक निगेटिव रोल करके 'डर' के हाथ से निकल जाने की कमी पूरी कर सकते हैं। लेकिन, आमिर के हाथ से ये मौका भी निकल गया क्योंकि सुभाष घई ने उन्हें बल्लू के रोल की बजाय राम का यानी पुलिस इंस्पेक्टर वाला रोल ऑफर कर दिया। हालांकि, बल्लू के रोल के लिए कहते हैं कि अनिल कपूर ने भी सुभाष घई को 'कनविन्स' करने की पूरी कोशिश की लेकिन घई का यही कहना रहा कि अनिल के अपनी इच्छा जताने से पहले ही वह ये रोल संजय दत्त को दे चुके थे। संजय दत्त का फिल्म 'खलनायक' का हिस्सा होना ही सुभाष घई के लिए कास्टिंग के मामले में बड़ी जीत थी। और, इसके इश्तेहार भी उन्होंने शानदार तरीके से छपवाए। घई इससे पहले 1982 में रिलीज हुई फिल्म 'विधाता' में भी संजय दत्त को निर्देशित कर चुके थे।
संजय दत्त से बढ़ा माधुरी का मेल
फिल्म 'विधाता' की कास्ट आखिरकार संजय दत्त, जैकी श्रॉफ और माधुरी दीक्षित के साथ फाइनल हुई। ये वह वक्त था जब संजय दत्त बहुत तनाव भरे जीवन से गुजर रहे थे। बंबई शहर में अयोध्या मसले को लेकर मारकाट मची थी। पत्नी ऋचा शर्मा अपने इलाज के लिए विदेश में रह रही थीं। पिता सुनील दत्त दिन भर सांप्रादायिक सौहार्द बनाने में लगे रहते और संजय दत्त का तनाव बढ़ता रहता। ऐसे माहौल में उन्हें माधुरी दीक्षित का साथ मिला। माधुरी दीक्षित इस फिल्म से पहले भी संजय दत्त के साथ काम कर चुकी थीं, लेकिन फिल्म 'खलनायक' की शूटिंग के दौरान ही उन्हें समझ आ गया कि ये फिल्म उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट होने जा रही है। फिल्म 'बेटा' के बाद से माधुरी का करियर गोता मारने लगा था। उनकी एक के बाद एक फिल्में फ्लॉप हो रही थीं और एक अदद हिट की जिद में ही माधुरी ने फिल्म 'खलनायक' में 'चोली के पीछे क्या है..' जैसे गाने पर भी एतराज नहीं किया।
खूब छपे संजय और माधुरी की मोहब्बत के किस्से
फिल्म 'खलनायक' की शूटिंग के दौरान संजय दत्त और माधुरी दीक्षित की कथित मोहब्बत के किस्से बंबई की फिल्म पत्रिकाओं में खूब छपते थे। हर गॉसिप मैगजीन उनके किस्सों से रंगी होती। और, कहा तो ये भी जाता है कि माधुरी से तब फिल्म के निर्माता निर्देशक सुभाष घई ने उनके एग्रीमेंट में 'नो प्रेगनेंसी' क्लॉज पर भी साइन करा लिए थे। माधुरी बहुत ही सुशील और संस्कारी परंपरा वाली लड़की थी, उन्होंने इस करार पर साइन भी कर दिया और सुभाष घई के साथ अपना तीन फिल्मों का करार भी पूरा किया। लेकिन, यही सुभाष घई इस फिल्म के बाद बनी अपनी फिल्म 'परदेस' की हीरोइन महिमा चौधरी को तीन फिल्मों के करार में बांध नहीं सके। घई पर तब राजनीतिक दबाव पड़ा था। लाख चाहकर कैटरीना कैफ को भी वह ऐसे किसी करार में बांध नहीं सके। हालांकि, इस बार जो पड़ा वह सलमान खान का दबाव नहीं कुछ और ही था।
लौट के घई 'खलनायक' पर आए
खैर, हम लौटते हैं अपनी आज के बाइस्कोप की फिल्म 'खलनायक' की तरफ। सुभाष घई तब तक हिंदी सिनेमा के नए शो मैन घोषित हो चुके थे। 'हीरो', 'कर्मा', 'राम लखन', 'सौदागर' उनकी कंपनी की बैक टू बैक ब्लॉकबस्टर फिल्में थीं और सुभाष घई का मन हो आया एक हॉलीवुड फिल्म डायरेक्ट करने का। इस सपने को पंख लगाए टेनिस खिलाड़ी अशोक अमृतराज ने। दोनों ने ओमर शरीफ से मुलाकात की और वह भी इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने को राजी हो गए। लेकिन, लॉस एंजिलिस से लौटते समय घई का मन बदल गया। उन्हें समझ आ गया कि विदेशी कंपनी में बस एक कामगार बनकर काम करने से अच्छा है अपनी देसी कंपनी का राजा होकर काम करना। घई तब तक सिनेमा और प्रोजेक्ट दोनों बनाने में माहिर थे। राम केलकर उनके पुराने साथी थे, संवाद लेखन के लिए उन्हें कमलेश पांडे जैसे दिग्गज का साथ मिला और तैयार हो गई पूरी पटकथा फिल्म 'खलनायक' की।
गाने पर जमकर मचा बवाल
फिल्म 'खलनायक' संगीत के मामले में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और सुभाष घई की साथ साथ काम करने वाली आखिरी फिल्म मानी जाती है क्योंकि इस फिल्म के बाद घई ने फिल्म 'परदेस' निर्देशित की साल 1997 में और तब तक नदीम श्रवण हर बड़ी फिल्म की जरूरत बन चुके थे। फिल्म 'खलनायक' का संगीत चर्चित हुआ इसके एक विवादास्पद गाने 'चोली के पीछे.. ' को लेकर हुए अदालती मुकदमे के चलते और इस फिल्म के संगीत की टिप्स म्यूजिक कंपनी की लगाई कीमत को लेकर। इससे पहले तक सुभाष घई की फिल्मों का संगीत एचएमवी म्यूजिक कंपनी लिया करती थी। इस फिल्म के लिए भी घई को उन्होंने 40 लाख रुपये का ऑफर दिया लेकिन घई ने इस फिल्म का संगीत एक करोड़ रुपये में टिप्स को बेच दिया। टिप्स ने इस फिल्म के एक करोड़ के करीब कैसेट और सीडी उसी साल बेच डाले। 'चोली के पीछे..' के लिए ही अलका याग्निक और इला अरुण को बेस्ट फीमेल सिंगर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला और इसी गाने के लिए मशहूर कोरियोग्राफ सरोज खान ने जीता बेस्ट कोरियोग्राफर का फिल्मफेयर अवार्ड।
चलते चलते...
फिल्म 'खलनायक' की शूटिंग पूरी ही होने वाली थी कि संजय दत्त मुंबई बम धमाकों के मामले में गिरफ्तार हो गए। लोगों को लगा कि सुभाष घई की ये फिल्म अब कभी रिलीज नहीं होगी। लेकिन, संजय दत्त की सर्वोच्च न्यायालय को लिखी चिट्ठी रंग लाई और उनको जमानत पर रिहा कर दिया गया। संजय दत्त ने सिद्धिविनायक के बाद मातोश्री जाकर माथा टेका और फिल्म 'खलनायक' की डबिंग पूरी की। फिल्म के गाने को लेकर हुए विवाद में भी सुभाई घई को शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' की काफी मदद मिली। फिल्म को लेकर पब्लिक का मूड भांपने के लिए सुभाष घई ने फिल्म के एक साथ करीब एक दर्जन प्रीमियर किए। इस दौरान उमड़ी भीड़ को देख घई को यकीन हो गया कि ये फिल्म फ्लॉप नहीं होने वाली। पूरे देश में इस फिल्म के पहले दिन पहले शो के दौरान भीड़ नियंत्रित करने के लिए हर सिनेमाघर पर पुलिस बुलानी पड़ी थी।
('बाइस्कोप' कॉलम में प्रकाशित यह आलेख बौद्धिक संपदा अधिकारों के तहत संरक्षित हैं।)