जनता से रिश्ता। अपने जमाने के मशहूर अभिनेता भगवान दादा की जो की हिंदी सिनेमा के मशहूर अभिनेता और निर्देशक थे। भगवान दादा का असली नाम भगवान अबाजी पांडव था। खुद भगवान दादा ने भी फिल्मों में आने से पहले मजदूरी तक की थी।
दोस्तों शोहरत की दास्तां भी बड़ी अजीब होती है। इसकी कहानी कब खत्म हो जाए पता ही नहीं चलता। जो बुलंदी पर है वो कब जमीन पर आ जाए कहा नहीं जा सकता। ऐसी ही कहानी है मशहूर अभिनेता भगवान दादा की।
भगवान दादा की पहली बोलती फिल्म 'हिम्मत-ए-मर्दा (1934) थी। फिल्म में मुख्य भूमिका में ललिता पवार थीं। भगवान दादा शेवरले कारों के इतने शौकीन थे। कहा जाता है कि यही कारण है कि उन्होंने 'शेवरले' नाम की फिल्म में भी काम किया था। कभी आर्थिक तंगी से जूझने वाले भगवान दादा ने कमाई के खूब झंडे गाड़े थे। एक वक्त ऐसा भी आया जब उनके पास सात कारें तक थीं। वह हर दिन सेट पर एक नई कार से जाते थे।
उनके डायरेक्शन की एक फिल्म के एक सीन में पैसों की बारिश दिखानी थी इसके लिए उन्होंने असली नोटों का इस्तेमाल किया था। फिल्म के प्रोड्यूसर भगवान दादा खुद थे। भगवान दादा हॉलीवुड फिल्म एक्टर डगलस फेयरबैंक्स के बहुत बड़े प्रशंसक थे। डगलस से प्रेरित होकर भगवान दादा अपनी फिल्मों में बॉडी डबल के बजाय अपना स्टंट खुद करते थे। उनके द्वारा किए गए स्टंट इतने असली लगते थे कि राज कपूर तो उन्हें इंडियन डगलस कहकर पुकारते थे।
ललिता पवार की बॉयोग्राफी 'द मिसिंग स्टोरी ऑफ ललिता पवार' में भगवान दादा से जुड़ा एक किस्सा साझा किया है। साल 1942 में ललिता फिल्म 'जंग-ए-आजादी' के एक सीन की शूटिंग कर रही थीं। इस सीन में एक्टर भगवान दादा को ललिता को थप्पड़ मारना था। उन्होंने ललिता को इतनी जोर से थप्पड़ मारा कि वह जमीन पर गिर गईं और उनके कान से खून बहने लगा। जिसके बाद वह लंबे समय के लिए अस्पताल में भर्ती रही थीं। इतना ही नहीं उनकी दाहिनी आंख इस कारण से छोटी हो गई थी। इसके बाद से ही ललिता ने निगेटिव रोल करना शुरू किया था। हालांकि भगवान दादा को इस हादसे का ताउम्र अफसोस रहा था।