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Mumbai.मुंबई: अपनी धारदार अदाकारी के लिए याद की जाने वाली अभिनेत्री स्मिता पाटिल किसी भी किरदार को जिंदा करने के लिए उसमें जान फूंक देती थी. भले ही स्मिता पाटिल का फ़िल्मी सफ़र महज़ 10 साल का रहा है मगर उस सफर ने हिंदी सिनेमा की बुनियाद को मजबूत किया है. स्मिता पाटिल ने अपने एक इंटरव्यू में फिल्मों की गलत तरीके से मार्केटिंग करने का विरोध किया था. उन्होंने महिलाओं को निगेटिव तरीके से दिखाने पर भी आपत्ति जताई थी. अभिनेत्री का कहना था कि अगर फिल्म की कहानी में वाकई दम है तो आपको न्यूडिटी पर फोकस करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
सिर्फ सेक्स पर फोकस करके बेची जाती थीं फिल्में
Smita ने कहा था, ‘किसी भी फिल्म को प्रमोट करने का तरीका बेहूदा होता है अगर आप उसे सिर्फ सेक्स पर फोकस करके बेचते हैं.’ ‘फिल्म में सेक्स है. आइए आप देखिए.’ एक फिल्म को बेचने के लिए हिंदुस्तान के दर्शकों पर ये बात फ़ोर्स की गई है कि देखिए जी इस फिल्म में तो सेक्स है. इसमें तो आधे नंगे शरीर हैं औरतों के, तो आप फिल्म देखने के लिए आइए. ये एक एटीट्यूड बन गया है जो बहुत गलत है. ”
चालबाज और सेक्सी के आलावा औरतों की क्या विशेषता है?
स्मिता पाटिल ने कहा कि मैंने अच्छी फिल्मों में काम किया है. ये मेरे लिए भाग्य की बात है. अच्छी फिल्मों से मतलब है कि मैंने अभी तक स्त्रियों के जो भी किरदार निभाए वो हिंदुस्तान की ऐसी महिलाओं के बारे में थे जो सच से जुड़े हुए थे. जिसमें महिलाओं का संघर्ष था. सशक्तिकरण था. परिस्थितियों से लड़ने का एक जज्बा था. लेकिन जब मैंने कमर्शियल फिल्मों में काम करना शुरू किया तो देखा, सभी फिल्मों में एक ही तरीके से महिलाओं की छवि को दिखाया जा रहा था.
बेवकूफ होती हैं क्या पतिव्रता महिलाएं?
पतिव्रता स्त्रियां या तो बहुत बेवकूफ दिखाई जाती हैं, या बहुत ही कमजोर. या तो फिर वो चुड़ैल होती हैं. जहां वो निगेटिव किरदार निभाती हैं.अपना बदन दिखाती हैं. हालांकि देखा जाए तो प्रॉस्टिट्यूशन पर भी बहुत अच्छी फिल्में बनी हैं. लेकिन उनमें एक दर्द था. अब सिर्फ बदन को एक्सपोज़ करने की भावना से दिखाया जाता है.
आधा बदन नंगा वाला पोस्टर हुआ था वायरल
स्मिता पाटिल से जब सवाल किया गया कि उनका एक आधा बदन नंगा वाला पोस्टर बहुत वायरल हुआ था, आपने ये कैसे होने दिया इसके जवाब में स्मिता ने कहा अगर में हाथ में वो होता तो मैं कभी नहीं होने देती.अभिनेत्री ने बताया फिल्म चक्र बहुत अच्छी फिल्म है. झुगीझोपड़ी वाली औरत का बाहर खुले में नहाना एक आम बात है. उन्हें देखने के लिए आप रास्ते में रूकेंगे नहीं.
झुगी झोपड़ी वाली महिलाओं के लिए आम बात है सड़क पर नहाना
जिनके पास रहने के लिए जगह नहीं है वो नहाएंगे कहां इस तरह की जब फिल्में बनकर डिस्ट्रीब्यूटर्स के पास जाती हैं तो ये उनके हाथ में होता है कि वे फिल्म को किस तरह बेचते हैं. इंडियन ऑडियंस पर ये बात फोर्स की गई है कि इस फिल्म में सेक्स है आइए, इसे देखिए.
पोस्टर से नहीं चलती फिल्म
स्मिता ने इंटरव्यू में कहा कि अगर फिल्म में सच्चाई है. कोई मन से अपनी बात कहना चाहता है तो वो फिल्म चलेगी. सिर्फ ऐसे पोस्टर से फिल्म नहीं चलती है. सिर्फ स्मिता पाटिल का फिल्म चक्र में नहीं बल्कि बात बेसिक एक्सप्लोइटेशन की है. अब आदमियों तो नंगा दिखाने से कुछ होगा नहीं. लेकिन उन्हें लगता है औरतों को नंगा दिखाया तो सौ लोग और आ जाएंगे. इस तरह का एटीट्यूड और मार्केटिंग ही गलत है.
क्या ऐसे ही सीन पसंद किए जाते हैं, फिल्में जल्दी बिकती हैं?
स्मिता पाटिल ने कहाऐसा सेमीपोर्नोग्राफी फिल्मों के बारे में कहा जा सकता होगा. जहां कोई स्टोरीलाइन नहीं होती. सिर्फ इस तरह के दृश्यों को ही मोहरा बनाकर आपको दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचकर लाना होता है. लेकिन जो अच्छी फिल्में हैं. जिनकी कहानी मजबूत है. वहां इस तरह की मार्केटिंग की जरूरत नहीं होनी चाहिए. हमारा ऑडियंस बेवकूफ नहीं है. उन्हें इमोशनल और सच्चाई दिखाने वाली फिल्में पसंद आती हैं.
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Rajesh
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