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बढ़ती उम्र देह का धर्म है इसलिए घबराहट फिजूल है, समय के साथ कौशल भी बढ़ जाता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | शंभूनाथ शुक्ल| कोरोना (Corona) की पहली और दूसरी लहरों (Second Wave) ने लोगों को घरों में कैद कर दिया है. बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं और नौकरीपेशा 'वर्क फ्रॉम होम'. इससे और कुछ हो न हो लोग घर-घुस्सू बनते जा रहे हैं. इससे वह लोग बहुत प्रभावित हो रहे हैं, जो 50 प्लस हैं. उनको लगता है कि नियोक्ता किसी भी दिन उनकी छुट्टी कर सकता है. ऐसे भी इस उम्र का व्यक्ति घबराता बहुत है. फिर भले वह नौकरीपेशा हो, व्यापारी हो या फिर कोई अन्य प्रोफेशनल. उनको लगता है कि बस अब उम्र का आखिरी पड़ाव आ पहुंचा है और वह जल्द ही सीनियर सिटीजन कहलाने लग जाएंगे. उन्हें यह भी घबराहट होती है कि उनका अब तक जो रौबदाब है वह समाप्त हो जाएगा और वह सामान्य लोगों की तरह जिंदगी की बाकी अवधि काटेंगे. लेकिन यह घबराहट फिजूल होती है. उम्र की इस स्थिति को प्राप्त सभी होते हैं. यह तो उम्र का एक पड़ाव है और इस उम्र तक पहुंचना भी लाजिमी है. लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि मनुष्य की सक्रिय जिंदगी अब समाप्त.