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जब तक वे सवाल नहीं उठाएंगी। जब तक खुद को अहमियत नहीं देंगी, तब तक दूसरे भी नहीं देंगे।
टीवी जगत की पसंदीदा बहू दिव्यांका त्रिपाठी बीते दिनों गायिका असीस कौर के म्यूजिक वीडियो 'बाबुल दा वेहदा' में दुल्हन के किरदार में नजर आईं। म्यूजिक वीडियो के जरिए दर्शकों के सामने आने का मौका मिलने से खुश दिव्यांका से प्रियंका सिंह ने की बातचीत।
हां, लेकिन मेरे लिए इस गाने को चुनने के पीछे की वजह यह रही कि इसमें एक कहानी भी है। ऐसे गाने कम मिलते हैं, जिनमें कहानी सुनाने का मौका मिले। इस म्यूजिक वीडियो में पंजाबी दुल्हन बनी हूं। मैंने इसमें जो शादी का जोड़ा पहना है, वह मैंने खुद डिजाइनर के साथ जाकर खरीदा है, जैसे लड़कियां अपनी शादी का जोड़ा सोच-समझकर बनवाती हैं, वैसे ही मैंने भी इसे बनवाया है। सेट पर विदाई वाले सीन में मैं कई बार भावुक भी हो गई थी। जहां तक बात दर्शकों के बीच बने रहने की है तो यह वाकई अच्छा जरिया है। मेरे एक प्रोजेक्ट की शूटिंग शुरू होने वाली थी, लेकिन कोरोना पाबंदियों की वजह से वह रुक गया। इस वक्त का इस्तेमाल अच्छा कंटेंट देखने में बिता रही हूं। एक अच्छा एक्टर बनने के लिए जो होमवर्क करना चाहिए, वह कर रही हूं।
टीवी शो में सौम्य किरदार तो वहीं रियलिटी शो 'खतरों के खिलाड़ी 11' में आपका रफ एंड टफ रूप सामने आया। आप खुद किस तरह के किरदारों की तलाश में हैं?
हमारे यहां ऐसा माना जाता है कि अगर कोई लड़की बहादुर है तो उसे चेहरे से भी बहादुर नजर आना चाहिए। मुझे देखकर भी लोग ऐसा ही मानते थे और तभी 'खतरों के खिलाड़ी' में मगरमच्छ को उठाकर बक्से में आसानी से बंद कर लेने वाले स्टंट को देखकर लोग हैरत में आ गए थे। हमारे यहां कंटेंट भी ऐसे बनते हैं, खासकर लड़कियों के लिए, जिनमें दर्शकों को सरप्राइज करने वाली कोई बात नहीं होती। मैं अब ऐसे किरदार की तलाश में हूं, जहां लोग मुझे देखकर चौंक जाएं।
हमारे यहां बस यह दिक्कत है कि कलाकारों को अलग-अलग वर्गों में बांट दिया जाता है कि यह टीवी का कलाकार है, यह थिएटर करता है। कलाकार को सिर्फ कलाकार क्यों नहीं समझा जाता है। यह बहुत पुरानी धारणा है। अब कलाकार बंधा हुआ नहीं है। मेरा सफर भी ऐसा ही रहा है। जहां मैंने कंटेंट के मुताबिक काम चुना है, प्लेटफार्म के मुताबिक नहीं। मैंने डेली धारावाहिक के साथ, महिला सशक्तीकरण वाले शो में एंकरिंग भी की है। 'खतरों के खिलाड़ी' में खूब एक्शन किया। अब म्यूजिक वीडियो में काम कर लिया। मेरे काम और प्लेटफाम्र्स में वैरायटी है।
यह मानव प्रवृत्ति है। लड़कियों को भी तो एक बक्से में बंद किया जाता है कि आपको क्या पहनना चाहिए, लोगों के सामने कैसे व्यवहार करना चाहिए। पहले तो उनके लिए बाहर निकलकर काम करना भी मुश्किल था, लेकिन उन धारणाओं को तोड़ते हुए लड़कियों ने अपने लिए राहें बनाई हैं। वैसे ही एक कलाकार को कई तरह की धारणाओं में बांध दिया जाता है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि वह कलाकार लोगों की इस सोच को सच मानकर न बैठ जाए। कोई भी अच्छा मौका आता है तो मैं उसे अपना लेती हूं। अपने आप मेरी दिशा बदल जाती है।
मैं तो यह सोचती हूं कि लड़कियों के लिए क्यों जरूरी बना दिया जाता है कि वह अपना सरनेम बदलें। मैंने एक बार यह सवाल भी उठाया था और लोगों ने पलटकर ऐसे-ऐसे कमेंट्स किए थे कि क्या ही बताऊं। आपको सरनेम बदलना है या अपने नाम के आगे लगाना है या नहीं, यह च्वाइस की बात होनी चाहिए, कोई मजबूरी या बाध्यता नहीं। मैंने अपनी मर्जी से ऐसा किया है। मुझे लगता कि ऐसे कई सवाल हैं जिन्हें लड़कियों को उठाना चाहिए। जब तक वे सवाल नहीं उठाएंगी। जब तक खुद को अहमियत नहीं देंगी, तब तक दूसरे भी नहीं देंगे।
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