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कोरियन बैंड बीटीएस का दीवाना है। उनके पोस्टर कमरे में दीवार पर लगा दिए हैं।
हिंदी सिनेमा के कई सितारों ने जहां अपने फिल्मी सफर पर किताबें लिखी है। वहीं अभिनेता तुषार कपूर ने सरोगेसी के जरिए पिता बनने के अनुभव पर किताब बैचलर डैड लिखी है। यह किताब अगले महीने बाजार में आएगी। तुषार वर्ष 2016 में सरोगेसी के जरिए बेटे लक्ष्य के पिता बने थे। वह अभिनय के साथ प्रोडक्शन में भी सक्रिय हैं। उन्होंने अपनी किताब, फिल्म और अन्य पहलुओं पर बात की।
आपने बैचलर डैड लिखने के बारे में कैसे सोचा?
मैं सोच रहा था कि पैरेंटिंग को लेकर मेरा अनुभव काफी अलग रहा है। हालांकि सिंगल पिता इंडस्ट्री में हैं, लेकिन सरोगेसी के जरिए जिस तरह मैंने पैरेंटिंग को अपनाया वैसा पहले किसी पुरुष एक्टर ने नहीं किया। मुझे लगा अगर मैं इस पर किताब लिखता हूं लोगों की इसमें काफी दिलचस्पी होगी । जब मैंने लिखना शुरू किया तो लगा कि रोचक अंदाज में इसे लोगों के सामने ला सकता हूं। एक्टर से इतर लेखन का मेरा अलग पहलू भी लोगों के सामने आएगा।
बच्चे बहुत सवाल करते हैं। उसके लिए बहुत धैर्य चाहिए होता है। आपमें वो धैर्य पहले से था?
उम्र के साथ इंसान में बदलाव आता है। मुझे लगता है कि मेरे बेटे लक्ष्य के आने के बाद मुझमें ज्यादा धैर्य आ गया है। शुरुआत में जब वह थोड़ी मस्ती करता था, तो मैं उसे थोड़ा डांटता था। तब किसी ने मुझसे कहा था कि डांटने के बजाय उसे समझाओ। मैंने बहुत कुछ सीखा है। बच्चों की देखभाल को लेकर बहुत कुछ पढ़ा है। मुझे लगता है बच्चों को डील करने में धैर्य ही काम आता है। वह सब सीख जाते हैं। बस उन्हें थोड़ा समय देना पड़ता है। उनकी भावनाओं को समझना पड़ता है। वह अपनी चीजों को एक्सप्रेस नहीं कर पाते हैं।
बेटे को मां की कमी खलेगी यह सवाल कभी जेहन में नहीं आया ?
पहले यह बात जेहन में आई थी कि क्या मैं बच्चे के साथ न्याय कर पाऊंगा, लेकिन फिर जैसे-जैसे टाइम गुजरा मुझे लगा कि अगर मां-बाप दोनों होते तो उससे ज्यादा मैंने अकेले लक्ष्य की परवरिश कर ली है। अपनी पूरी कोशिश की है। मेरा बेटा हैप्पी चाइल्ड है। अगर बच्चा खुश है, इनसिक्योर नहीं है, उसके मन में कोई शंका नहीं तो आधी बाजी तो जीत ही ली है। मेरी तरफ से जो कोशिश करनी थी वो कर ली। मैं अपने बेटे की परवरिश करके बहुत खुश हूं।
आपने अपने इन अनुभवों पर फिल्म बनाने की नहीं सोची ?
बिल्कुल सोचा था। यह किताब मेरी बच्चे की तरह है। इसे मैंने खुद लिखा है किसी से लिखवाया नहीं है। मैंने फर्स्ट पर्सन में अपने अंदाज में लिखा है। इस किताब को लिखने में मुझे 11 महीने लगे। पहले मैं इस किताब को लाकडाउन से पहले लिखने वाला था, लेकिन फिर लाकडाउन हो गया तो इसमें मुझे दो चैप्टर अतिरिक्त मिल गए। इन दो चैप्टर में मैंने अपना लाकडाउन का अनुभव भी बताया है। हमारी जिंदगी कैसी रही, हमने क्या किया। इसमें कुल दस चैप्टर है। मैंने ज्यादातर रात में बैठकर इस किताब को लिखा है।
बेटे में अपने किस अक्स को पाते हैं?
वो मेरी तरह दिखता है। आदतों में वह मेरी तरह मैथ (गणित) में अव्वल आता है। वो मस्ती करता है और बातों को सुनता भी है, तो मेरी तरह संतुलित भी है। बाकी चीजें काफी अलग हैं। उसे डांस, आर्ट एंड क्राफ्ट, ड्रामा, का बहुत शौक है। उसे फुटबाल का बहुत शौक है। जो काम मैं नहीं करता था, वो करता है। कोरियन बैंड बीटीएस का दीवाना है। उनके पोस्टर कमरे में दीवार पर लगा दिए हैं।
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