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एक्टर आशीष विद्यार्थी के काले रंग के लिए उड़ाया जाता था मजाक, ऐसे जीती जंग

jantaserishta.com
4 Nov 2021 3:24 PM GMT
एक्टर आशीष विद्यार्थी के काले रंग के लिए उड़ाया जाता था मजाक, ऐसे जीती जंग
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अभिनेता आशीष विद्यार्थी का नाम उन चुंनिंदा सितारों में शुमार है, जो हिंदी के साथ ही अन्य भाषाओं की फिल्मों में काम कर चुके हैं। आशीष ने हिंदी सहित कुल 11 भाषाओं की फिल्मों में काम किया है। आशीष विद्यार्थी जल्दी ही सोनी लिव की 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' में नजर आएंगे। इस एंथोलॉजी की रिलीज से पहले उन्होंने हिन्दुस्तान से की खास बातचीत।

आपके सिनेमा की तरफ रूझान और शुरुआत की क्या कहानी है?
एक कीड़ा होता है, जिसे अभिनय का कीड़ा कहते हैं। जब छोटा था, तब उसने मुझे काटा था। शुरुआत से ही अभिनेता बनना चाहता था। मैं खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मैं अपने अभिनय के हुनर को भी डिस्कवर कर पाया।
सोनी लिव के 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' एंथोलॉजी में नजर आएंगे, क्या है आपका किरदार और कहानी?
ये बहुत ही खास कहानिया हैं। प्रशांत ( 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी के निर्देशक और राइटर) की खासियत है कि वो जिंदगी से जुड़ी कहानी लिखते हैं और उन में ही ट्विस्ट ले आते हैं। मेरी कहानी एक समाज के सत्य की कहानी है, जिसे हम मानना नहीं चाहते हैं। ये कहानी स्किन कलर की है, मैं गलावा का किरदार निभा रहा हूं। इस कहानी में आप देखेंगे कि जब हम किसी कमी को पूरा करने की कोशिश करते हैं, तो हम किस दर्जे तक जा सकते हैं।
फिल्म में एक डायलॉग है- 'आपके पास सब कुछ है... सिर्फ स्किन का कलर नहीं है', रियल लाइफ में कभी आपने ऐसा कुछ झेला या महसूस किया है?
मैं दिल्ली में पैदा हुआ, बड़ा हुआ। मुझे अमूमन मेरे रंग से ही बुलाया जाता था। मुझे बहुत बुरा लगता था, मैंने ये पाया कि मैं कितने लोगों का मुंह बंद कर सकता हूं, फिर मैंने इसका मजाक बनाना शुरू कर दिया। मैं ये समझा कि आप लोगों का मुंह नहीं बंद कर सकते, लेकिन उस चीज या उस शब्द से जीत सकते हैं। अगर आप उस पर खुद हंस सकें, तो उस शब्द की टीस को खत्म कर सकते हैं।
आपने हिंदी के साथ ही अन्य भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया है, आपको लगता है कि भाषा के अंतर के साथ कहानी कहने का तरीका या उसे पेश करने का अंदाज बदल जाता है?
बेशक, सिनेमा की खासियत क्या है... वो आपकी परिभाषा है। हर सिनेमा अपने देश और प्रदेश को रिप्रेजेंट करता है। हर सिनेमा, उस वक्त की बात है। ऐसे में हर भाषा और हर कल्चर की अपनी एक कहानी कहने का तरीका है।
बीते कुछ वक्त में सिनेमा में काफी बदलाव आया है, इस पर क्या कहेंगे?
पहले जब एक फिल्म बनती थी, जब एक प्रोजेक्ट नहीं, जबकि कुछ लोग पैशन के साथ जुड़ते थे। मुझे लगता है कि वो पैशन वापस आया है। आज सिनेमा सिर्फ बिजनेस नहीं रह गया है। आज वो लोग फिल्म बना रहे हैं, जो सिनेमा से अपने पैशन के लिए जुड़े हैं। आज सिर्फ चुनिंदा सब्जेक्ट्स नहीं हैं। आज एक कहानी को कहने के कई तरीके हैं।
आप अलग- अलग चीजों के लेकर पैशनेट रहते हैं, आप कई सारी चीजें कर भी चुके हैं... तो क्या कुछ ऐसा बाकी है, जो आप आगे और करना चाहते हैं?
कुछ वक्त पहले मैंने पहचाना था कि मैं अभिनेता भी हूं। इसके साथ ही मैं मोटिवेशनल टॉक्स भी करता हूं। मैं समझता हूं कि कई लोग अपने आप को बांध लेते हैं और खुद को रोक लेते हैं। मैं लोगों से बातें करना पसंद करता हूं, मुझे ट्रैवल पसंद है। मैं मोटिवेशनल टॉक्स करता हूं, लोगों से मुस्कुराने की बात करता हूं। मैं सभी से कहता हूं कि आप अपने प्रोफेशन के साथ ही कई और चीजें कर सकते हैं। खुद को एक्सप्लोर करें और डरें नहीं। जिंदगी का आशीर्वाद में विद्यार्थी बनकर लेता हूं और मुझे सीखना बहुत पसंद है।
अगर आपको अपने आपको एक शब्द में बयां करना पड़े तो आप कौनसा शब्द चुनेंगे?
आपके अपकमिंग प्रोजेक्ट्स कौन से हैं?
लॉकडाउन के बाद काफी अमेजिंग वक्त आया है सिनेमा के लिए... जहां अलग अलग किरदार मिल रहे हैं। फिलहाल मेरे 6 प्रोजेक्ट्स हैं, जो रिलीज के लिए तैयार हैं। इसमें रक्तांचल, खूफिया, तेजस, गुड बाय, तमिल फिल्म आदि शुमार हैं।
कोई ऐसा किरदार, जो आपके जेहन में है और जिसे आप शिद्दत से ऑनस्क्रीन निभाना चाहते हैं?
मैं एक डिटेक्टिव का किरदार करना चाहता हूं, जो आर्मी से रिटायर्ड है या फिर उसे निकाल दिया गया है। इसके बाद वो गांव जाकर कोल्ड केस सुलझाता है।
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