x
वह ज्यादा कलाबाजियां खाकर गेम में जीतता है. बॉलीवुड को अच्छे एक्शन डायरेक्टरों की भी जरूरत है.
बॉलीवुड में इन दिनों निर्माता-निर्देशक-एक्टर हैरान हैं कि साउथ से आने वाली बाहुबली, पुष्पा, आरआरआर और केजीएफ 2 जैसी एक्शन फिल्में बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा कर सैकड़ों करोड़ रुपये बना रही हैं. दूसरी तरफ बॉलीवुड का एक्शन सिनेमा टिकट खिड़की पर पानी तक नहीं मांग रहा. अपने मसल लहराने वाले सितारों से सजी बॉलीवुड की एक्शन फिल्में, लगातार पिट रही हैं. दर्शक न जॉन अब्राहम का एक्शन देखने को तैयार हैं और न उन्हें टाइगर श्रॉफ की हीरोपंती पसंद आ रही है. कंगना रनौत ने बॉलीवुड की एक्शन-सुपरस्टार बनने के लिए बहुत महंगी धाकड़ जैसी फिल्म की, लेकिन उसने फ्लॉप होने का रिकॉर्ड बना दिया. यशराज फिल्म्स इतिहास के पन्नों से बहादुर सम्राट पृथ्वीराज को लाया और शमशेरा बने रणबीर कपूर को भी. मगर दोनों का एक्शन बॉक्स ऑफिस पर सुपर फ्लॉप साबित हुआ.
समस्या कहानी की
जॉन अब्राहम की सत्यमेव जयते 2 और अटैक, टाइगर श्रॉफ की हीरोपंती 2, कंगना रनौत की धाकड़, अभिमन्यु दासानी की निकम्मा, आदित्य रॉय कपूर की राष्ट्रकवच ओम, विद्युत जामवाल की खुदा हाफिज 2 से लेकर रणबीर कपूर की शमशेरा. ये सभी महंगे बजट से बनी बड़ी एक्शन फिल्में हैं. लेकिन सबके बीच समस्या यही थी कि इनकी कहानी पर ठीक से काम नहीं किया गया. इनकी स्क्रिप्ट में न तो कसावट थी और न ही इनमें कोई ढंग की डायलॉगबाजी. इनमें पूरा फोकस सिर्फ एक्शन पर था. चाहे हीरो की पर्सनल लड़ाई हो या फिर वह देश के दुश्मन एजेंटों से लड़ रहा हो, कहानी के अभाव में दर्शक फिल्म से कनेक्ट नहीं हो पाए.
अच्छे विलेन की कमी
इन फिल्मों को देखें तो एक बड़ी समस्या है, अच्छे और खूंखार विलेन की कमी. बॉलीवुड फिल्मों में बीते कुछ दशकों से हीरो ही सब कुछ हो गया है. जब से हीरो के ग्रे किरदार चलन में आए, कहानियों में खलनायक खत्म हो गए. पर्दे के विलेन फिल्म की कहानी में हीरो की लाइफ में पर्सनल ट्विस्ट लाते हैं. कई बार वे हीरो से बड़े बन जाते हैं. यहीं लड़ाई बड़ी बनती है और हीरो को जीतते देखने में दर्शक को मजा आता है. लेकिन यह बात हिंदी फिल्मों में गायब हो चुकी है. शमशेरा में अगर संजय दत्त जैसा सितारा विलेन बनता भी है तो वह खूंखार कम और कॉमिक ज्यादा नजर आता है.
सिर्फ वीएफएक्स काम का नहीं
इधर की एक्शन फिल्मों में वीएफएक्स की भरमार है और सारा एक्शन जादुई वीडियो गेम्स के जैसा हो चुका है. जो पर्दे पर साफ नजर आता है. चाहे जॉन की फिल्म के एक्शन सीन हों या फिर टाइगर श्रॉफ के, सभी वीएफएक्स से भरे हैं. कंगना की धाकड़ में भी सीन इसी तरह से थे. गोलियां बरसाते हीरो अब इसलिए दर्शकों को आकर्षित नहीं करते कि वीडियो गेम्स में खुद दर्शक-खिलाड़ी हाथों में बंदूक रहती है और वह ज्यादा कलाबाजियां खाकर गेम में जीतता है. बॉलीवुड को अच्छे एक्शन डायरेक्टरों की भी जरूरत है.
Next Story