छोटे-छोटे कामों से हुई शुरुआत
जुलाई 1954 में गुजरात के राजकोट जिले के एक गांव में हर्षद मेहता का जन्म हुआ. बाद में उनका परिवार मुंबई के कांदीवली आ गया. वहीं पर हर्षद के पिता टेक्सटाइल का छोटा-मोटा व्यापार किया करते थे. व्यापार न चलने पर घुमक्कड़ प्रवृति के हर्षद के पिता छत्तीसगढ़ के रायपुर (तत्कालीन मध्यप्रदेश) आ गए. यहीं पर हर्षद मेहता की पढ़ाई-लिखाई हुई. पढ़ाई में औसत स्टूडेंट हर्षद रायपुर से एक बार फिर मुंबई आ गए और यहां पर कॉमर्स में ग्रेजुएशन के साथ अगले 8 साल तक छोटे-मोटे काम करते रहे. यहां तक कि उन्होंने कपड़े बेचने से लेकर सीमेंट के सेल्स में भी काम किया.
काम के दौरान ही उनकी रुचि शेयर मार्केट में जागी और जल्द ही वे आगे निकलने लगे. हर्षद लगभग चार सालों के भीतर बेहद मुश्किल माने जाने वाले स्टॉक मार्केट के सारे पैंतरे सीख चुके थे और अपनी कंपनी भी शुरू कर डाली. GrowMore Research and Asset Management नाम की इस कंपनी की नींव डलने के साथ ही हर्षद मुंबई (तब बॉम्बे) स्टॉक एक्सचेंज के सदस्य हो चुके थे.
यहां से हर्षद मेहता का करियर इतनी तेजी से आगे बढ़ा कि उन्हें शेयर मार्केट का बेताज बादशाह कहा जाने लगा. यहां तक कि लोगों को शेयर के मामले में इस नाम पर इतना यकीन हो चुका था कि कहा जाने लगा कि वे जिसमें हाथ लगाएंगे, वो चीज सोना बन जाएगी.
सामने आया गोलमाल
हाल ये हुआ कि अस्सी के दशक के आखिर तक मेहता की कंपनी में बड़े-बड़े लोग पैसे लगाने लगे थे. वे पेज-थ्री हस्ती बन चुके थे और आए-दिन अखबारों की सुर्खियां बने रहते थे. इसपर सबको हैरानी थी कि आखिर एक छोटी सी शेयर कंपनी इतनी तेजी से ऊपर कैसे जा रही है. खोज-पड़ताल शुरू हुई. टाइम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार सुचेता दलाल ने हर्षद के घोटाले का पर्दाफाश किया था. दलाल ने अपनी रिपोर्ट्स के जरिए बताया कि कैसे बैंकिंग सिस्टम की कमियों के कारण हर्षद मेहता गोलमाल कर रहा है.
घोटाला सामने आने के बाद एक के बाद एक हर्षद मेहता पर ढेरों मामले दर्ज हुए
इस तरह करते थे घोटाला
मेहता दरअसल रेडी फॉरवर्ड (आरएफ) डील के जरिए बैंकों से फंड उठाते थे. यानी शॉर्ट टर्म लोन, जो 15 दिनों के लिए होता. मेहता को बैंकिंग की सारी बारीकियां खूब पता थीं. साथ ही कई छोटे बैंकों से उनकी जान-पहचान भी थी. इसी का फायदा लेते हुए उन्होंने जाली बैंकिंग रसीद बनवाई और इसी रसीद के जरिए वे दूसरे बैंकों से पैसे लेकर शेयर में लगाते. शेयर बाजार में जैसे ही मुनाफा होता था, वे तुरंत बैंक को रसीद के बदले लिए पैसे लौटा देते थे. फर्जीवाड़ा आराम से चल रहा था. लेकिन एक बार शेयर में गिरावट के बाद वे बैंक को सही समय पर पैसे लौटा नहीं सके. इसके बाद ही पत्रकार सुचेता दलाल ने शेयर मार्केट के इस सबसे बड़े स्कैम का पर्दाफाश किया.
जेल में आरोपों के बीच हुई मौत
घोटाला सामने आने के बाद एक के बाद एक हर्षद मेहता पर ढेरों मामले दर्ज हुए. इनमें 70 क्रिमिनल और लगभग 600 सिविल मामले शामिल थे. हालांकि केवल एक ही केस के सबूत मिल सके. इतने बड़े स्कैम का दोषी होने के बाद भी मेहता को 5 साल की कैद और 25 हजार जुर्माना लगा. आखिरकार साल 2001 में जेल के भीतर ही दिल का दौरा पड़ने से हर्षद की मौत हो गई.
तत्कालीन PM पर भी लगा था आरोप
घोटालेबाज मेहता के कारनामों के छींटे तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर भी पड़े थे. तब हर्षद मेहता ने ये कहकर सनसनी मचा दी थी कि मामले से बच निकले के लिए उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव को पार्टी फंड के नाम पर एक करोड़ रुपए की घूस दी थी. हालांकि कांग्रेस ने इसे सिरे से खारिज कर दिया और इस तरह से तत्कालीन पीएम पर रिश्वत लेने का आरोप साबित नहीं हो सका.