जम जाता है पारा
धुव्रीय इलाकों में सालभर शून्य से नीचे तापमान होता है, ये 40 से भी नीचे चला जाता है. ऐसे में घर या अस्पतालों में काम आने वाला सामान्य थर्मामीटर किसी काम का नहीं रहता. असल में ये थर्मामीटर मर्करी यानी पारे से बना होता है, जो कम तापमान पर जम जाता है. तब इससे तापमान पता नहीं किया जा सकता. दूसरी ओर अल्कोहल का फ्रीजिंग पॉइंट मर्करी से कम होता है. शुद्ध अल्कोहल -115 डिग्री सेल्सियस पर जमता है, जबकि मर्करी -38 डिग्री सेल्सियस पर ही जम जाता है.
ये एक खास तरीके से काम करता है. जब इससे तापमान लिया जाता है तो पतली सी कांच की ट्यूब में भारा पारा फैलता या सिकुड़ता है. अगर तापमान बढ़ा हुआ हो तो कांच के ट्यूब के भीतर का पारा फैलकर ऊपर चढ़ता है. वहीं तापमान कम होने पर पारा सिकुड़कर नीचे चला जाता है. इस तरह से टेंपरेचर का पता चलता है.
शराब में मिलाते हैं रंग
अगर पारा जम जाए तो ये ग्लास ट्यूब में ही जम जाता है और किसी काम का नहीं रहता. यही वजह है कि बहुत ठंडे इलाकों में मर्करी की बजाए शराब के थर्मामीटर से तापमान लिया जाता है. चूंकि शराब अपने-आप में रंगहीन होती है इसलिए इसमें डाई डालते हैं ताकि इसका ऊपर-नीचे जाना दिख सके. फ्रिजर के भीतर का तापमान जानने के लिए भी अल्कोहल थर्मामीटर का ही उपयोग होता है.
इन चीजों का उपयोग
अल्कोहल थर्मामीटर को स्पिरिट थर्मामीटर भी कहते हैं. शुद्ध अल्कोहल के लिए इसमें इथेनॉल, टॉल्युइन या केरोसिन भी इस्तेमाल करते हैं. ये माइनस 112 डिग्री सेल्सियस जितने कम तापमान से लेकर 78 डिग्री सेल्सियम (उच्च तापमान) तक जांच सकता है.
पारा होता है खतरनाक
इसके साथ एक अच्छी बात ये है कि ये मर्करी की बजाए कम खतरनाक होता है. मर्करी यानी पारे से भरा थर्मामीटर अगर टूट जाए तो ये जानलेवा भी हो सकता है. पारा 65 डिग्री फैरनहाइट में ही भाप बन जाता है और सांसों के जरिए भीतर जा सकता है. बच्चों, बूढ़ों या कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के लिए ये खतरनाक हो सकता है.
शराब से नहीं है उतना डर
अल्कोहल थर्मामीटर अगर टूट भी जाए तो कोई खतरा नहीं है क्योंकि ये तुरंत वाष्प बन जाता है और तुरंत ऐसा न हो तो भी ये इंसानों या पार्यावरण के लिए खतरनाक नहीं है. इसके अलावा अल्कोहल थर्मामीटर बहुत सस्ता होता है, इसलिए बर्फीले इलाकों में पहले से ही इसका स्टॉक कर लिया जाता है.
पहले शराब से बने थर्मामीटर का इस्तेमाल ही तापमान जांचने के लिए होता था. डेनमार्क के एस्ट्रोनॉमर ओलास रोमर ने इसे बनाया था. बाद में कई वैज्ञानिकों ने इसमें अलग-अलग से लिक्विड डालने की कोशिश की. हालांकि थर्मामीटर की खोज का श्रेय डैनियल गैब्रियल फैरेनहाइट को दिया जाता है. साल 1709 में इन्होंने इसकी खोज की, और इन्हीं के नाम पर थर्मामीटर के मानक को फैरनहाइट कहा गया.