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विधानसभा की कार्यवाहियों में शून्यकाल की उत्पत्ति के लिए शिमला में पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन यादगार बन सकता है
दिव्याहिमाचल. विधानसभा की कार्यवाहियों में शून्यकाल की उत्पत्ति के लिए शिमला में पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन यादगार बन सकता है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अपने संबोधन में शिमला सम्मेलन के निष्कर्षों को नई ऊर्जा से जोड़ते हुए आशाजनक संदेश दिए हैं। हालांकि हिमाचल में ई-विधान अकादमी की स्थापना पर कोई अंतिम मुहर नहीं लगी, फिर भी यहां की तर्ज पर राष्ट्र की तमाम विधानसभाएं पेपरलैस होने जा रही हैं। विधानमंडलों के लिए नई मॉडल नियमावली बनने की दिशा में 28 विधानसभाओं के अध्यक्ष, 23 के सचिव और पांच के उपाध्यक्षों की शिरकत काफी मायने रखती है। दरअसल लोकतांत्रिक बहस का संस्थागत अवमूल्यन सड़क से सदन तक आते-आते गंभीर प्रश्न पैदा कर रहा है जिसके चलते गाहे-बगाहे ऐसे घटनाक्रम उभरते हैं, जिनकी भत्र्सना होनी चाहिए।
बेशक मंचीय भाषणों में लोकतंत्र के उद्गार बेशकीमती हो जाते हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि मुद्दों की बिसात पर पक्ष-प्रतिपक्ष के बीच युद्धक स्थिति किस कद्र हावी रहती है। जहां माइक उखड़ते हों और शोर शराबे के बीच गुत्थम गुत्था होता मंजर अभिशप्त होता हो, वहां बहस के मंतव्य को सियासत से ऊपर देखने की जरूरत है। कमोबेश हर सत्ता का एक विशेष रुख और विपक्ष का विरोध भी एक रूटीन की तरह अभिनय करता हो, तो वहां सदन की गरिमा का सवाल पैदा होता है। नवनिर्वाचित विधायकों का प्रशिक्षण तथ ई-विधान से जुड़ी कार्यवाही से पारंगत होते जनप्रतिनिधियों के नजरिए में व्यापक अंतर आ सकता है, बशर्ते राजनीति से इतर देखने की क्षमता का विस्तार हो। जाहिर तौर पर शून्यकाल की परंपरा अगर शुरू होती है, तो राज्यों का अपने चिंतन तथा राष्ट्रीय दृष्टिकोण में परिपक्वता आ पाएगी। मूल प्रश्रों के तत्त्व व चर्चा के महत्त्व को आगे बढ़ाने के लिए शून्यकाल की प्रासंगिकता बढ़ जाती है। हिमाचल के जनप्रतिनिधियों ने पहले भी कई विधेयक पेश करते हुए सामाजिक, आर्थिक व राष्ट्रीय जरूरतों के अक्स में बहस को सहमति के अंजाम तक पहुंचाया। हिमाचल के आर्थिक पहलुओं को समझने तथा विस्तार देने के लिए शून्यकाल की परिपाटी सारे विमर्श को सार्थक बना सकती है। एक नोटिस के आधार पर विधानसभा सदस्यों के लिए अपने सरोकारों, तात्कालिक घटनाक्रमों तथा भविष्य की नीतियों के अवलोकन का जरिया बनती बहस का सबसे आसान मार्ग शून्यकाल हो सकता है, बशर्ते सदन अपनी भूमिका में सियासी आसन पर सरहदें खड़ी न करे। विधानसभाओं में शून्यकाल का प्रयोग हमारे लोकतांत्रिक ढांचे में एक सशक्त प्रहरी की तरह हो सकता है, जिसके तहत राज्यों के अपने अध्ययन तथा केंद्र व राज्य के संबंधों में कई प्रश्र उठाए जा सकते हैं।
उदाहरण के लिए जहां सत्ता पक्ष व प्रतिपक्ष के बीच आशंकाएं हैं या सरकारी फैसलों में पारदर्शिता का अभाव है, वहां शून्यकाल के संदर्भ गौण नहीं हो सकते। घाटे में चल रहे सरकारी उपक्रमों, औद्योगिक नीति के वास्तविक अंशों तथा आर्थिक घाटों की विषमताओं पर शून्यकाल के तर्क और विमर्श काफी सार्थक हो सकते हैं। लोकतंत्र में जनभावनाओं की रक्षा तथा भविष्य की रखवाली के लिए विषयों को अगर शून्यकाल के मार्फत संवारा जाए, तो यह पहल विधानमंडलों के सदस्यों के ज्ञान को परिमार्जित करेगी। शिमला में पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन से आजादी के 75 सालों का इतिहास एक नई रूपरेखा ढूंढ रहा है और अगर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला इसी भावना को फैसलों में रूपांतरित कर पाए, तो आगामी वर्षों में जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही और बढ़ेगी। यह दीगर है कि हिमाचल में ई-विधान अकादमी की मांग को फिलहाल पूरा नहीं किया जा रहा है, जबकि 2022 तक सभी विधानसभाएं पेपरलैस कार्यवाही की तरफ बढ़ रही हैं। लोकसभा के सत्र में यह मांग कैसे पूरी की जाती है या ई-विधान अकादमी के रूप में लोकतांत्रिक संस्थान की स्थापना होती है, तो हिमाचल विधानसभा के फलक पर राष्ट्रीय अपेक्षाओं का सवेरा होगा। ई-विधान अकादमी का संकल्प अगर फलीभूत होता है, तो इसके मार्फत हिमाचल के सरोकार भी अवतार बन जाएंगे।
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