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बेरोजगार युवा नेताओं के हाथ की कठपुतली बनकर अपने भविष्य को दांव पर लगाने को मजबूर हैं
बेरोजगार युवा नेताओं के हाथ की कठपुतली बनकर अपने भविष्य को दांव पर लगाने को मजबूर हैं। राजनीतिक दलों ने चुनावों में अपनी नैया पार लगाने के लिए युवाओं को कई पदों पर मनोनीत किए जाने का सिलसिला शुरू कर रखा है। आपराधिक दर में इजाफा हो रहा है, तो कहीं न कहीं नेताओं की मिलीभगत का ही नतीजा है। बेरोजगारी से आहत युवा अक्सर नेताओं की चमचागिरी करके रातोंरात धनी बनने के लिए कई हथकंडे अपना रहे हैं…
बढ़ती बेरोजगारी शिक्षित युवाओं को दीमक की तरह चाटती जा रही है। जनसंख्या अनुसार रोजगार के अवसर जितने सृजित किए जाने की आवश्यकता है, उतने नहीं हो पा रहे हैं। नतीजतन युवा वर्ग बेरोजगारी की चक्की में पिसकर अपने लक्ष्यों से भटकता जा रहा है। युवा देश की रीढ़ की हड्डी की तरह होते हैं, जिन्हें राष्ट्र और समाज के पुनर्निर्माण के लिए अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है। मगर आजकल की शिक्षा अपने उद्देश्यों पर फिलहाल सही नहीं उतर पा रही है जिसकी वजह से युवा वर्ग आहत और निराश बनकर रह चुका है। ऐसी शिक्षा ग्रहण करने का क्या औचित्य जो युवाओं को नशे की गर्त में धकेलकर अपराधी बनने के लिए मजबूर कर रही हो। शिक्षा के दो मूल उद्देश्य होते हैं जिसमें एक तो शिक्षित बनकर आजीविका से जुडऩा है, दूसरा राष्ट्र और समाज के लिए अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाना है। युवाओं को अब जरूरत अत्यधिक नैतिक शिक्षा ग्रहण करने की है जिसके चलते उनका संपूर्ण व्यक्तित्व विकास संभव हो पाए। आज का युवा सिर्फ किताबों तक ही सीमित होकर दूसरी खेलकूद-सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले पा रहा है।
भयावह बेरोजगारी की वजह से एक शिक्षित बेरोजगार सिर्फ पत्थरबाजी करने के लिए ही मजबूर नहीं हुआ, बल्कि नशों की लत में फंसकर अपने भविष्य से भी खिलवाड़ करता जा रहा है। चुनावी समर में बेरोजगारी को खत्म करने का एजेंडा हर राजनीतिक दल के मैनिफेस्टो में शामिल होता है। चुनावों के बाद कोई भी राजनीतिक दल अब तक युवाओं से किए गए वायदों पर खरा नहीं उतर पाया है। युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित किए जाने की बजाय सरकारें उन्हें चंद रुपए के भत्ते देने के नाम पर उनका मजाक उड़ाती रही हैं। भत्ते के नाम पर मिलने वाली यह खैरात युवाओं के मनोबल को भी गिरा सकती है, इस पर गौर करना होगा। हिमाचल प्रदेश में बेरोजगार युवाओं का आंकड़ा करीब बारह लाख तक पहुंच गया है। सरकार को बेरोजगार युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए माकूल प्रयास करने की जरूरत है।
बेरोजगार युवा नेताओं के हाथ की कठपुतली बनकर अपने भविष्य को दांव पर लगाने को मजबूर हैं। राजनीतिक दलों ने चुनावों में अपनी नैया पार लगाने के लिए युवाओं को कई पदों पर मनोनीत किए जाने का सिलसिला शुरू कर रखा हुआ है। आपराधिक दर में इजाफा हो रहा है, तो कहीं न कहीं नेताओं की मिलीभगत का ही नतीजा है। बेरोजगारी से आहत युवा अक्सर नेताओं की चमचागिरी करके रातोंरात धनाढ्य बनने के लिए कई तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। राजनीति की आड़ में ही लोग गैर कानूनी धंधों को अंजाम देकर कानून की खिल्ली उड़ाते जा रहे हैं। हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से विख्यात होने के बावजूद आज ड्रग्ज-चिट्टे की बिक्री का प्रमुख अड्डा बनकर उभर रहा है। बेरोजगारी से पीडि़त युवा नशीले पदार्थों जैसे चरस, चिट्टा, शराब और नशीले कैप्सूलों की बिक्री को अपनी आय का प्रमुख साधन बनाते जा रहे हैं। देवभूमि के हालात आज इस कदर बदतर हो चुके हैं कि इस जहर की तस्करी में महिलाएं, लड़कियां और नाबालिग स्कूली छात्रों का शामिल होना शर्मनाक है।
पहाड़ी बेरोजगार युवा रोजी-रोटी के संघर्ष के लिए अब विदेशों में दस्तक देते जा रहे हैं। ऐसे बेरोजगारों की किस्मत के साथ कुछ फर्जी एजेंट ऐसा धोखाधड़ी का खेल खेलकर उनकी जिंदगी दाव पर लगाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। फर्जी ट्रेवल एजेंट बेरोजगार युवाओं से लाखों रुपए ऐंठकर उन्हें खाड़ी देशों में ट्रेवल वीजा पर धकेलकर चोखी चांदी कूटते जा रहे हैं। बेरोजगार युवा जानकारी के अभाव के चलते ज्यादातर अब इस तरह की ठगी के शिकार बनकर रहते जा रहे हैं। अक्सर खाड़ी देशों में पहाड़ के गबरू कंपनियों की तानाशाही नीतियों की वजह से वहां फंसकर रह जाते हैं। बढ़ती जनसंख्या की वजह से बेरोजगारी सिर्फ अकेले भारत देश में ही नहीं है। अमेरिका, यूके, चीन, एशियाई देश और खाड़ी देश भी अब इस समस्या से त्रस्त हैं। मौजूदा समय में इन देशों को भी अपनी युवा पीढ़ी को रोजगार से जोडऩे के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। भारत के लोग रोजगार कमाने के लिए विदेशों में कड़ी मेहनत करके अपने परिवारों का पेट पाल रहे हैं। आर्थिक मंदी की वजह से विदेशों में भी अब रोजगार दिनोंदिन कम होते जा रहे हैं जिसके चलते लोग मानसिक तनाव में रहने को मजबूर हैं। भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी अधिकांश जनता गांवों में बसती है। एक समय था जब लोग कृषि को ही अपनी आजीविका का साधन मानते थे।
आज हालात बदल गए हैं। लोग बेरोजगारी से तंग आकर अपनी जमीनें तक बेचकर विदेशों में डेरा लगा रहे हैं। ऐसा भी नहीं हो सकता कि सरकारें हर किसी को रोजगार मुहैया करवा पाने में सफल हो पाएं। सरकारें युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेकों योजनाएं चलाए हुए हैं, लेकिन युवा वर्ग केवलमात्र सरकारी नौकरी करने में ही ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। सरकारों को अब बेरोजगारी पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी विभागों में खाली चल रहे पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू करके युवाओं को रोजगार से जोडऩे की पहल करनी होगी। कोरोनाकाल में बेरोजगारी ने भयावह रूप धारण कर लिया है। नतीजतन निजी क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की छंटनी लगातार जारी है।
व्यवसाय से जुड़े लोगों की हालत भी कोई सुखद नजर नहीं आती है। कोरोना की चेन तोडऩे के उद्देश्य से बाजार लगातार कई महीनों तक बंद रखे गए थे। ऐसे में बैंकों से ऋण लेकर अपना व्यवसाय शुरू करने वाले आजकल आर्थिक कंगाली के दौर से गुजर रहे हैं। कुल मिलाकर सरकारी विभागों में कार्यरत कर्मचारियों को इस काल में भी समय पर पगार मिलती रही जो कि बहुत बड़ी बात कही जा सकती है। पिछले डेढ़ वर्ष में अकेले हिमाचल प्रदेश में करीब 64 लोगों की ओर से आत्महत्याएं किए जाने की पुष्टि होना भी दुखद है। सरकार अब बेरोजगारी मिटाने पर ध्यान दे।
सुखदेव सिंह
लेखक नूरपुर से हैं
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