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- नशे को ‘न’, जिंदगी को...

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दुनिया भर में करीब 3.4 करोड़ लोग ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं और हर साल नशे के कारण करीब 2 लाख लोग जान गंवा बैठते हैं। हमारा देश भारत भी इससे अछूता नहीं है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार ने वर्ष 2018 के दौरान देश में नशीले पदार्थों के प्रयोग की सीमा और स्वरूप के संबंध में राज्यवार ब्यौरा एकत्रित करने के लिए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया था जिसके अनुसार सभी आयु वर्ग में सबसे अधिक संख्या शराब का सेवन करने वालों की है। 10 से 17 वर्ष आयु वर्ग के अनुमानित 30 लाख बच्चे और किशोर शराब का सेवन कर रहे हैं, जबकि 18 से 75 वर्ष आयु वर्ग में शराब का सेवन करने वालों की संख्या 15 करोड़ पाई गई है। वहीं 10 से 17 वर्ष आयु वर्ग में अनुमानित 40 लाख बच्चे और किशोर अफीम का सेवन कर रहे हैं। इसी आयु वर्ग में भांग के सेवन कर्ताओं की संख्या 20 लाख तक है। अनुमानित 50 लाख बच्चे और किशोर सूंघकर ऐसे पदार्थों का सेवन कर रहे हैं, जबकि दो लाख बच्चे कोकीन और चार लाख बच्चे उत्तेजना पैदा करने वाले पदार्थों का सेवन कर रहे हैं। इससे यह पता चलता है कि बच्चों व किशोरों में नशीले पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति और चलन लगातार बढ़ रहा है। नशे की लत से बच्चे व किशोर न केवल आक्रामक व तनाव से ग्रसित हो रहे हैं बल्कि कई किशोर ओवरडोज से अपनी जान से भी हाथ धो रहे हैं।
प्रत्येक वर्ष 26 जून को नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय नशा मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है। 7 दिसंबर 1987 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष 26 जून को नशीली पदार्थ व दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था। इसका महत्व समाज पर नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खतरनाक प्रभावों के बारे में जागरूकता का प्रसार करना और दुनिया को नशे से मुक्त कराना है। भारत में नारकोटिक्स ड्रग्स एवं साइकॉट्रॉपिक सब्सटेंसस अधिनियम 1985 को अधिनियमित किया है। इसके बावजूद भारत के बाजार में ड्रग यूजर्स के बढऩे की संभावना प्रबल हो रही है जो कि चिंता का विषय बना हुआ है। पंजाब का पड़ोसी राज्य होने के नाते हिमाचल प्रदेश भी नशे से अछूता नहीं है। सन् 2018 में हुए मेग्नीट्यूड ऑफ सब्सटेंस यूज इन इंडिया 2019 शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों की औसत संख्या उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड राज्य से कहीं ज्यादा है। आबादी की तुलना में हिमाचल में जहां 10 से 75 साल के बीच के 1.70 फीसदी लोग नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में 0.60 फीसदी तथा उत्तराखंड में 0.80 प्रतिशत लोग नशे की चपेट में हैं। पंजाब से लगते बॉर्डर जिलों को नशे से सचेत रहने की आवश्यकता है। प्रदेश सरकार की तरफ से हिमाचल प्रदेश पुलिस मुख्यालय ने हाल ही में वेबैक्स के माध्यम से 150 स्कूलों के हजारों बच्चों को नशे के दुष्प्रभावों के बारे में सचेत किया जो कि सराहनीय है। ऊना जिला प्रशासन ने नशा मुक्त ऊना अभियान की शुरुआत करके प्रदेश में एक अच्छे कार्यक्रम की पहल की है। ऊना जिले में उपायुक्त महोदय तथा सभी ब्लॉकों में एसडीएम की अगुवाई में टास्क फोर्स कमेटियां बनाई जा चुकी हैं। सभी विद्यालय प्रमुखों का विशेष प्रशिक्षण के साथ नशा विरोधी सतर्कता समितियों का गठन किया जा रहा है। ग्राम पंचायत स्तर पर इसे उतारने के लिए पंचायत स्तर पर टास्क फोर्स कमेटियों का गठन किया जाएगा।
नशे के खिलाफ डिमांड ड्रिवन अप्रोच से पंचायती राज संस्थाओं, स्कूल प्रबंधन, ग्रामीण स्तर पर टास्क फोर्स कमेटियां बनाकर, विद्यालय में रेडक्रॉस क्लब के माध्यम से ताकि बच्चों और युवाओं को नशे के विरुद्ध लडऩे के लिए भावनात्मक रूप से तैयार किया जा सके और यह अभियान जनमानस का बनने के साथ हिमाचल में नशे के प्रवेश को रोका जा सके। नशे में फंसने के बाद बहुत से किशोर अपने करियर और पढ़ाई को तबाह कर रहे हैं। ऐसा अक्सर देखा गया है कि नशा करने वाले किशोरों का परिवार या फिर खुद नशा करने वाले अपनी इस आदत से इस कदर परेशान हैं कि नशा छुड़ाने के लिए किसी चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठे हैं। पुनर्वास केंद्रो में कई युवा इससे मुक्ति के लिए प्रयासरत हैं। नशा भी डायबिटीज, हाइपरटेंशन और अस्थमा की तरह एक क्रॉनिक डिजीज है। पिछले कई सालों की रिसर्च से साबित हुआ है कि नशा एक मानसिक और शारीरिक बीमारी है। शराब या अन्य नशे के इस्तेमाल से व्यक्ति के दिमाग की कार्यप्रणाली और संरचना में कई बदलाव आ जाते हैं और दिमाग का कम्युनिकेशन सिस्टम नशे की वजह से डिस्टर्ब और धीमे काम करने लगता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग पर प्राथमिक रोकथाम से हम बच्चों और युवाओं को वैज्ञानिक तरीके से समझा कर नशे के खिलाफ एक आम राय बना सकते हैं। सूचना शिक्षा संप्रेषण में केवल रैली, स्लोगन जैसी तरीकों से हटकर नशीली दवाओं से नशे के प्रभाव शरीर व मस्तिष्क पर कैसे पड़ते हैं, यह बच्चों को समझाना आवश्यक है। विद्यार्थियों और किशोरों को जीवन कौशल और अपनी वैल्यू खुद कैसे करनी है, यह सिखाने पर विशेष बल दिया जाए ताकि वे अपने आप में नशे के खिलाफ एक राय बना सकें। लगातार नशे के इस्तेमाल से व्यक्ति के शरीर के महत्वपूर्ण अंग लिवर, किडनी, फेफड़े के खराब होने व कैंसर होने के अवसर बढ़ जाते हैं।
दूसरा, शराब एवं अन्य नशे के इस्तेमाल से व्यक्ति के दिमाग की कार्यप्रणाली और संरचना में बदलाव आ जाता है। कोर्टेक्स दिमाग का बाहरी हिस्सा होता है जिसमें सबसे अधिक कोशिकाएं होती हैं और इनका काम सोचना-समझना होता है और यह नशे से प्रभावित हो जाता है। दूसरा लिंबिक पार्ट दिमाग का रिवार्ड सर्किट होता है जो कि दिमाग की सभी कोशिकाओं को जोड़े रखता है। यही हिस्सा खुशी, अहसास और भावनाओं के लिए जिम्मेदार होता है। लगातार नशे करने से यह महत्वपूर्ण मस्तिष्क के हिस्से नशे पर आश्रित हो जाते हैं। कहने का अर्थ यह है कि हमें जो भी काम करने में मजा आता है अब मजा बिना नशे के संभव नहीं रह जाता। नशे की लत अच्छी नहीं है। यह न केवल खुद को नुकसान पहुंचाती है बल्कि अन्य परिवार के सदस्यों को भी परेशान करती है। नशा छोडऩे में सबसे बड़ी भूमिका मजबूत मन, इरादों और आत्मविश्वास की होती है। इसलिए अपने में आत्मविश्वास बढ़ाना जरूरी है। नशा छोडऩे के लिए शारीरिक स्वास्थ्य, संतुलित आहार, खेल, योग और नियमित व्यायाम का रूटीन बनाएं।
निखिल शर्मा
शिक्षाविद
By: divyahimachal

Rani Sahu
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