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जब राहुल द्रविड भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच बने
एन. रघुरामन। जब राहुल द्रविड भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच बने, तब आप शायद खुशी से उछल पड़े होंगे क्योंकि हाल ही में खत्म हुए टी20 वर्ल्ड कप में टीम का प्रदर्शन खास नहीं रहा। इस शुक्रवार टी20 सीरीज में न्यूजीलैंड पर जीत से फैंस को कुछ राहत मिली। लेकिन मैं दुखी हो गया, जब मैंने पढ़ा कि यूके में दो से आठ वर्ष के बच्चों को 'डाइट कोच' मिलने वाले हैं क्योंकि वे मोटे हैं। बेचारे छोटे बच्चे।
यह उनकी गलती नहीं है कि व्यस्त माता-पिता ने उन्हें सस्ता प्रोसेस्ड फूड देकर स्क्रीन के सामने बैठा दिया, खासतौर पर महामारी और लॉकडाउन के दौरान। अब यूके की नेशनल हेल्थ सर्विस अच्छी लेकिन भ्रमित मंशा के साथ बच्चों को डाइट शीट के मुताबिक खाना खाने कह रही है।
मुझे लगता है कि बच्चों के लिए यह कारगर नहीं है। स्कूल में बच्चे को अलग करने या उसे डाइट कोच के पास भेजने से फायदा नहीं होगा। बच्चों को पहले ही एफसीएम कहा जा रहा है, यानी 'फैट क्लब मेंबर्स'। ऐसे शब्द या लघुरूप शर्मिंदगी से भर देते हैं। उन्हें अलग-थलग करने से अन्य समस्याएं होंगी, जैसे वे अंतर्मुखी हो सकते हैं जिस कारण मनोवैज्ञानिक की मदद लेनी पड़ सकती है। अगर बच्चों को वजन की समस्या है तो उन्हें नजदीकी पार्क या ग्राउंड ले जाकर छोड़ दें और उन्हें खूब दौड़ने या खेलने कहें।
मेरे माता-पिता ने भी 1960 के दशक में यही किया। मैं बचपन में मोटा नहीं था लेकिन थोड़ा गोल-मटोल होना मेरी समस्या थी। मेरे रिश्तेदार कहते थे, 'हमारा चेटि्टअर कहां है', मुख्यत: इसलिए क्योंकि मेरी बड़ी तोंद थी (चेटि्टअर बड़े पेट वाला एक खिलौना है जिसे नवरात्रि में सजाते हैं)। इस टिप्पणी से मैं शर्मिंदा होता था लेकिन मेरी मां मेरे समर्थन में खड़ी रहती थीं।
मेरे माता-पिता ने मुझे कभी डाइट कोच के पास नहीं भेजा, लेकिन मुझे जी भरकर खेलने दिया। शुक्र है, उन दिनों नही हर सड़क पर फास्ट फूड की दुकानें थीं और न ही प्रोसेस्ड फूड खरीदने के लिए खूब पैसा मिलता था। इसलिए किशोर होने से पहले खेल-कूद ने मेरा आकार ठीक कर दिया।
मुझे यह शनिवार को याद आया, जब मैं एक दोस्त के घर डिनर पर गया। उनके पास 'कुकिंग टू मेक किड्स स्लिम' और '15 हेल्दी रेसिपीज यू कैन कुक फॉर योर किड्स' जैसी किताबें थीं। जब मैं इनके पन्ने पलट रहा था तो मेरे दोस्त की बच्ची ने कहा, 'अंकल, आप आते रहा करें।' मैंने उसे गले लगाकर आमंत्रण के लिए धन्यवाद दिया। उसकी मां तुरंत बोलीं, 'इसकी मीठी-मीठी बातों में मत आइए। ये बहुत होशियार है। जब घर में कोई मेहमान आता है तो इसे आलू के साथ पास्ता और पेस्ट्री वगैरह खाने मिलती है।' मैंने बच्ची को दुलारते हुए कहा, 'नहीं, ये ऐसी नहीं है।'
पूरे डिनर के दौरान भोजन को बुरा बताने पर बात होती रही। मां कहती रहीं कि कुछ भोजन उनकी बेटी के लिए नुकसानदेह हैं। इस बाचतीच से उस बच्ची को खुद के लिए बुरा लग रहा था, जो दरअसल अनुवांशिक कारण से वजनदार थी। उसके माता-पिता यह नहीं समझ रहे थे कि स्वास्थ्य बच्चों को प्रेरित नहीं करता। इसलिए जब वे किसी व्यंजन के लिए कहते हैं कि 'यह तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है' तो बच्चे उसे और ज्यादा खाते हैं। फंडा यह है कि कुछ बच्चे मोटापे के शिकार हैं क्योंकि हम उन्हें सुविधाजनक खाना देते हैं। इसलिए डाइनिंग टेबल पर खाने को शैतान बताने से बचें। यह नया टेबल शिष्टाचार है, जिसे युवा माता-पिता को सीखना चाहिए।
Rani Sahu
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