सम्पादकीय

आप अच्छाई की शुरुआत तो कीजिए, लोग जुड़ते जाएंगे

Gulabi
3 March 2022 8:36 AM GMT
आप अच्छाई की शुरुआत तो कीजिए, लोग जुड़ते जाएंगे
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ग्यारह साल रगड़ने के बाद एक लड़की ने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की
रश्मि बंसल का कॉलम:
ग्यारह साल रगड़ने के बाद एक लड़की ने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। अब उसके सामने दो रास्ते थे- किसी बड़े अस्पताल में नौकरी या प्राइवेट प्रैक्टिस। लेकिन डॉ. तरु जिंदल की सोच कुछ अलग थी। मुम्बई में तो गायनेकोलॉजिस्ट की कमी नहीं, असल में मेरी जरूरत कहां है? देश के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में।
तो जब डॉ. जिंदल को एक फाउंडेशन की तरफ से बिहार में काम करने का मौका मिला तो उन्होंने झटपट हां कर दी। घर पर सब व्यथित हुए कि ये क्या कर रही हो। एक अकेली महिला डॉक्टर बिहार में सुरक्षित भी होगी? मगर डॉ. जिंदल ने जिद पकड़ ली और पहुंच गईं मोतिहारी। उसी चम्पारण जिले में जहां बापू ने भारत में पहला सत्याग्रह आंदोलन चलाया था।
तरु जिंदल का काम था वहां के डॉक्टर्स को कुछ नई तकनीकें सिखाना। लेकिन जिला अस्पताल पहुंचते ही मुम्बई की डॉक्टर बौखला गई। यहां तो बेसिक हाईजीन भी ना थी। इस्तेमाल की हुई सीरिंज, खून-उल्टी-प्लास्टिक-कचरा। ऐसे माहौल में डिलीवरी हो रही थी, नंगे हाथों से। मां की साड़ी से नवजात शिशु को पोंछकर पेटीकोट में लपेट दिया गया।
सबसे अचम्भे की बात- डिलीवरी अस्पताल की सफाई कर्मचारी कर रही थी। डॉक्टर का अता-पता नहीं था। वो सिर्फ नाम के लिए अस्पताल से जुड़े थे। तरु को रोज रोना भी आता था, और गुस्सा भी। अगली ट्रेन से टिकट कटाकर मुम्बई जाना आसान था। मगर दिल से एक पुकार उठी- मैं सब कुछ नहीं लेकिन कुछ तो कर सकती हूं।
बड़ी समस्या देखकर हम अकसर घबरा जाते हैं कि इसका समाधान तो होगा नहीं। तरु जिंदल ने एक अलग एप्रोच ली। उन्होंने ऑपरेशन थिएटर के कर्मचारियों से कहा कि बापू के चम्पारण में क्यों ना हम सब एक दिन का श्रमदान दें। करेंगे क्या, ओटी की सफाई? अब ये नहीं कि स्टाफ लगा हुआ है और डॉ. जिंदल कुर्सी पर बैठकर उन्हें निर्देश दे रही हैं। उन्होंने खुद हाथ में बाल्टी और डिटर्जेंट लेकर फर्श साफ किया।
अगली सुबह जब तरु अस्पताल पहुंचीं तो देखा कि ओटी का एक असिस्टेंट वहां के बेड की पेंटिंग कर रहा है। कहने लगा- 'आप इतनी दूर से आ सकती हैं हमारे साथ झाडू मारने के लिए, मैं इतना तो अपने अस्पताल के लिए कर ही सकता हूं।' मैनेजमेंट की भाषा में इसे कहा जाता है- टेकिंग ओनरशिप। जगह वही, लोग वही, लेकिन जब उनके अंदर स्वामित्व का भाव पैदा होता है तो समझ लो कि कायापलट होने वाला है।
नौजवान डॉक्टर के प्रयास से कुछ ही महीनों में मोतिहारी का जिला अस्पताल राज्य के सबसे खराब से सबसे अच्छे में बदल गया। भारत सरकार से दो दफा अवॉर्ड भी मिला। ये वाकिया पचास साल पहले का नहीं, सन् 2014 की बात है। डॉ. तरु जिंदल की संघर्षपूर्ण कहानी आप जरूर पढ़ें। किताब का नाम है- 'ए डॉक्टर्स एक्सपरिमेंट्स इन बिहार'।
आप सोच रहे होंगे कि मैं तो डॉक्टर नहीं तो मेरा इस कहानी से क्या लेना-देना। आप जहां भी हों- चाहे स्कूल में टीचर या बैंक में मैनेजर, इसी भाव से काम करिए। चाहे आसपास के लोग निकम्मे हों, आप उनसे प्रभावित ना हों। इनिशिएटिव लीजिए। आपको देखकर ही कोई और जुड़ेगा।
आज यूक्रेन में 20 हजार विद्यार्थी फंसे हैं। सरकार उन्हें घर लाने के प्रयास में जुटी है। वे भी सोचें कि बाल-बाल बचकर लौटे हैं तो इस जिंदगी का उद्देश्य क्या है। खासकर वो, जिनके परिवार व्यवस्थित हैं। विक्रम साराभाई, होमी भाभा रईस खानदान में पैदा हुए थे, पर फायदा देश को मिला। जोश और जुगाड़, तोड़ेगा हर पहाड़। सेवा में है मेवा अपार।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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