सम्पादकीय

रिश्तों में क्या समस्या है यह जानने की कोशिश जरूर करनी चाहिए

Rani Sahu
25 Oct 2021 10:05 AM GMT
रिश्तों में क्या समस्या है यह जानने की कोशिश जरूर करनी चाहिए
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आज हमारा लोगों के साथ जैसा रिश्ता होना चाहिए वैसा नहीं है

बीके शिवानी। आज हमारा लोगों के साथ जैसा रिश्ता होना चाहिए वैसा नहीं है, चाहे वह रिश्ता खुद के साथ हो, लोगों के साथ, संबंधियों के साथ या काम के क्षेत्र में। सारे दिन में हम बहुतों से पूछते हैं क्या हाल-चाल है? आज हम खुद से पूछते हैं मेरे रिश्तों का क्या हाल-चाल है। जैसा चाहते हैं वैसा चल रहा है या कुछ बदलना है। अगर बदलना है तो किसे बदलना है। मेरे रिश्तों में गांठे क्यों पड़ती हैं। हर रिश्ते को देखें तो जहां जैसी ऊर्जा चाहिए वैसी नहीं है।

क्या कारण है जो वो रिश्ता ठीक नहीं है। किसने क्या किया, क्या कहा, क्या कारण है कि वो ठीक नहीं है। पुरानी कोई बात या रोज होती हुई कोई बात। अगर ये ठीक हो जाए तो मेरा ये रिश्ता ठीक हो जाएगा। क्या कारण है जिससे रिश्ते वैसे नहीं रहते, जैसे हमें चाहिए। बहुत-से रिश्ते बहुत सुंदर हैं। कुछ एक में छोटी-छोटी बातें आ जाती हैं। कुछ एक में थोड़ी बड़ी बातें भी आ जाती हैं। कुछ तो हमने तोड़ ही दिए हैं।
कुछ में गांठ छोटी थी, कुछ में थोड़ी बड़ी। कुछ से तो हम थक ही गए। हमने कहा ये रिश्ता ही मुझे नहीं चाहिए। तो ऐसी क्या बात होती है जो अच्छे चलते हुए रिश्ते में गांठ पड़ जाती है। हर चीज का एक महत्व है। आप जीवन में जो परिवर्तन लाएंगे, उससे उस स्थान की वायब्रेशन बन जाएगी। जो आपकी जगह बैठेगा उसका जीवन बदल जाएगा। यह हम सबपर निर्भर है। किस-किस को ऐसा लगता है कि हम बोलते कुछ हैं और वे समझते कुछ हैं।
फिर हम उनसे बोलते हैं कि नहीं, मैंने ऐसा नहीं ऐसा कहा था। उस बात को दोहराते हैं। फिर हम बोलते कुछ हैं, और वे समझते कुछ और हैं। जबकि बात तो यह है कि वे बोलते कुछ और हैं, हम समझते कुछ और हैं। फिर उसके बाद हम कहते हैं हम आपको नहीं समझ सकते। तब हम कहते हैं हमारे बीच बहुत बड़ी गलतफहमी हो गई है कि हम एक-दूसरे को समझ ही नहीं पाते।
लेकिन जरूरी ये है कि कई बार हम भी बोलना कुछ चाहते हैं, और बोलते कुछ और हैं। वो समझते कुछ और हैं, फिर वे बोलते कुछ और हैं। इससे साधारण चीजें भी जटिल हो जाती हैं। आपको कौन-कौन चाहिए जो आपके जैसा हो। वो भी सोचते होंगे कि आप भी हमारे जैसे बन जाओ तब घर ठीक हो जाएगा। वो हमारे जैसे नहीं हैं। वो हम पर विश्वास नहीं करते या हम उन पर नहीं करते। कहां समस्या है?
शक के साथ जीना, किसी पर विश्वास नहीं कर पाना, अपने आपमें अंदर दर्द देता है। उन्होंने क्या तोड़ा वो तो हम नहीं जानते लेकिन हमने अपने आपके लिए क्या तोड़ा ये जांचना करना जरूरी है। मान लो हमने किसी के लिए नकारात्मक सोचा है। उस सोच को रखकर हम चाहते हैं कि रिश्ता भी ठीक हो जाए। जबकि हमें मालूम भी है कि नहीं हो सकता है। फिर भी हम अपनी सोच बदल नहीं पाते हैं। माना हम सही हैं और दूसरा व्यक्ति गलत है।
किसी भी चीज के बारे में सोचेंगे, उस पर काम करेंगे, तो वो ठीक हो जाएगा। लेकिन उस टूटे हुए को ही पकड़कर चलते रहेंगे और रोज उसके ऊपर घाव मारते रहेंगे तो वो ठीक होने की बजाए और बिगड़ता जाएगा। तो सबसे जरूरी है कि लोग मेरे अनुसार चलें या लोग मेरे जैसा क्यों नहीं सोचते हैं। क्योंकि अगर वो हो जाए तब तो सारी समस्या खत्म हो जाएगी। मैं जैसा सोचूं आप भी वैसा सोचो।
अब मैंने सोचा था कि आप सब ऑफिस सुबह 10 बजे पहुंच जाएंगे। अभी 10:30 बज गए लेकिन लोग अभी भी आ रहे हैं। वो सही हैं कि मैं सही हूं। मेरी उम्मीद वो सब नहीं सोचने वाले हैं। आपको 10 बजे ऑफिस पहुंचना था तो आपको ट्रैफिक जाम, सड़क, पार्किंग, रास्ता सब कुछ काउण्ट करके घर से जल्दी निकलकर 10 बजे से पांच मिनट पहले यहां पहुंच जाना चाहिए था।
मैं ऐसा इसलिएं एक्सपेक्ट करती हूं क्योंकि ये मेरी आदत है। और मुझे लगता है कि मेरी आदत सही है। और फिर इसलिए मुझे लगता है कि हरेक के पास यही आदत होनी चाहिए। अब जो-जो लेट आएगा वो तो गलत है। और जो बहुत जल्दी आए वो भी गलत हैं। इतना जल्दी क्यों आ गए थे। तो सिर्फ लेट आने वाले गलत नहीं लगते। सभी अपनी-अपनी जगह पर सही हैं। इसको देखना है सारा दिन घर के अंदर। हरेक आत्मा के अलग-अलग संस्कार है।
मेरे अंदर ये संस्कार बैठे हुए हैं कि 10 बजे सही समय है तो पूरी दुनिया एक तरफ और ये मेरा संस्कार एक तरफ। क्योंकि मुझे हर परिस्थिति में उस संस्कार के नजरिए से ही दिखेगा। मुझे वो परिस्थिति आपके संस्कार के जरिए नहीं दिख सकती। क्योंकि मेरे पास वो संस्कार नहीं हैं। इसलिए हर आत्मा के विविध संस्कारों को समझकर ही हम घर-परिवार और अपने कार्य क्षेत्र पर सबके साथ मधुर रिश्ता बना सकते हैं।
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