सम्पादकीय

आप अपनी जिंदगी को अकेले आगे नहीं ले जा सकते, अपनों का और बाकी लोगों का प्रोत्साहन बहुत जरूरी

Gulabi Jagat
31 March 2022 8:40 AM GMT
आप अपनी जिंदगी को अकेले आगे नहीं ले जा सकते, अपनों का और बाकी लोगों का प्रोत्साहन बहुत जरूरी
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आईपीएल सीजन के पहले मैच में आपने देखा होगा कि मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में सीटियों की आवाज़ कम सुनाई दी
एन. रघुरामन का कॉलम:
छह दिन पहले शुरू हुए आईपीएल सीजन के पहले मैच में आपने देखा होगा कि मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में सीटियों की आवाज़ कम सुनाई दी और कहीं न कहीं मुझे लगता है कि चेन्नई सुपर किंग्स के केकेआर से हारने के पीछे यही वजह रही होगी। जिन्हें ये 'विसल पोडु' शब्द अजीब लगता है, उन्हें बता दूं कि यह चेन्नई सुपर किंग्स का स्लोगन था, जिसका तमिल में मतलब है 'सीटी बजाओ'। अब मैं इस तमिल शब्द को किसी के भी प्रदर्शन की कहानी से जोड़ता हूं।
एक दिन एक चोर स्थानीय सर्कस देखने गया। उसने देखा कि एक नाजुक से शरीर वाला व्यक्ति आग के गोले से ऐसे निकल रहा है, जैसे किसी दरवाजे से निकल रहा हो। उसने शो खत्म होने का इंतजार किया और उससे व्यक्तिगत जाकर मिला और पूछा कि इस तरह के जोखिम भरे काम के लिए कितना पैसा मिलता है। उस कलाकार ने बताया कि दिन के एक हजार रु. मिल जाते हैं। उस चोर ने उसे इस तरह के हर काम के बदले पांच हजार रु देने का वादा करके लुभा लिया।
अगली रात वह उस सर्कस कर्मचारी को एक घर ले गया, जहां बड़ा सा एग्जॉस्ट फैन जैसा होल था और उससे कहा कि यहां से घर में जाओ और अंदर से दरवाजा खोलो। उसने कहा कि 'मैं कोशिश करूंगा पर तुम सीटी बजाना शुरू कर दो।' चोर ने कहा, 'क्या तुम पागल हो, हमें किसी का घर लूटना है और तुम सीटी बजाने की बात कर रहे हो, चूंकि ये तुम्हारी पहली चोरी है इसलिए शायद जानते नहीं हो कि अभी गहरी नींद में सो रहे पड़ोसी हमें पकड़ सकते हैं। इसलिए चुपचाप जाओ और मुख्य दरवाजा खोलो।'
सर्कस कर्मचारी ने कहा, 'देखो मैं ये काम सीटियों और तालियों के बीच करता आया हूं। उस शोर से मुझमें आग के गोले से निकलने का आत्मविश्वास आता है। इतने सन्नाटे में, मैं ये काम कभी नहीं कर सकता। मुझे माफ करो। मुझे तुम्हारी नौकरी नहीं चाहिए। मैं वापस जा रहा हूं।' और वो चोर को सकते में छोड़कर लौट गया। ये कहानी मुझे आईपीएल शुरू होने से काफी पहले याद आई थी, जब मेरी एक आंटी ने अचानक सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करना बंद कर दी थी।
वह कई सारे रेडियो स्टेशन पर 'ए' ग्रेड की कर्नाटक संगीत की गायिका थीं और ढेरों सार्वजनिक समारोहों में गाती थी। कुछ महीनों पहले तक वह कहती थीं कि काश उन्हें और वक्त मिल पाता। कोई भी उन्हें खाना पकाते, सफाई करते या घर के कामकाज के बीच गाते सुन सकता था। अपने पति की मृत्यु के बाद पिछले छह सालों से उनकी मां उनकी गायकी की पहली और सबसे बड़ी प्रशंसक रहीं।
बच्चों के अमेरिका में बसने के बावजूद उन्होंने अकेले ही अपनी 89 साल की मां की देखभाल की और कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी जाती रहीं। पिछले साल कोरोना से उन्होंने मां को खो दिया और दो महीने बाद एक रेडियो प्रोग्राम किया पर तब से किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं गईं। वो इसलिए क्योंकि उनकी मां ही उनकी सबसे बड़ी प्रशंसक और रचनात्मक आलोचक थीं, जो कि हमेशा उनकी गायकी प्रोत्साहित करतीं और प्रदर्शन बेहतर करने में मदद करतीं।
बाकी कई चीजों के बीच वे रागों और ध्वनियों की बारीकी पर, हफ्ते के सातों दिन चौबीसों घंटे बहस करते रहते। इससे समय कम पड़ जाता और तब भी वह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करतीं। अब मां की मौत के बाद उनके पास ढेर सारा वक्त है, पर वो प्रोत्साहन और हौसला पूरी तरह गायब है। इन दिनों वो खाना पकाते हुए या घर के कामकाज के बीच भी नहीं गातीं।
फंडा यह है कि आप अपनी जिंदगी को अकेले आगे नहीं ले जा सकते। अपनों का और बाकी लोगों का प्रोत्साहन बहुत जरूरी होता है। और यही प्रोत्साहन आपके प्रदर्शन में चार चांद लगा देता है।
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