सम्पादकीय

मोदी की राह पर तेजी से बढ़ रहे हैं योगी, 49 साल के योगी भाजपा के शीर्ष नेताओं में सबसे युवा हैं

Rani Sahu
21 Sep 2021 9:52 AM GMT
मोदी की राह पर तेजी से बढ़ रहे हैं योगी, 49 साल के योगी भाजपा के शीर्ष नेताओं में सबसे युवा हैं
x
बीते शुक्रवार को नरेंद्र मोदी 71 बरस के हो गए। इसका जश्न जिस बड़े पैमाने पर मनाया गया

शेखर गुप्ता। बीते शुक्रवार को नरेंद्र मोदी 71 बरस के हो गए। इसका जश्न जिस बड़े पैमाने पर मनाया गया, उसने पूरे देश में लहर पैदा कर दी और साथ ही दिल्ली के 'ज्ञानियों' के बीच कानाफूसी भी चली। अगर यह 50वां, 60वां, 70वां जन्मदिन भी होता तो समझ में आता, लेकिन 71वें जन्मदिन पर? अब इस सवाल का जवाब भला कौन देगा।

जब कोई राजनीतिक दल और उसकी सरकार अपना कामकाज इतनी गोपनीयता से चलाने में सफल हो जाती है तो अफवाहों का भूमिगत बाजार गरम हो जाता है। जैसा कि इन दिनों हो रहा है। लेकिन इन दिनों आप कहीं यह सवाल नहीं सुनेंगे कि 'मोदी के बाद कौन?'
पीछे 1947 तक देखें, तो दिलचस्प बात उभरती है। नेहरू के बाद मोदी ही दूसरे नेता हैं जिन्होंने भारत का प्रधानमंत्री रहते हुए अपनी उम्र के सातवें दशक को पार किया। पी. वी. नरसिम्हा राव जब प्रधानमंत्री बने थे तब उनकी उम्र 70 साल से एक सप्ताह कम थी।
उस समय तक 'नेहरू के बाद कौन?' सवाल उभरने लगा था। तब की और आज की स्थिति में समानताएं भी हैं और भारी अंतर भी है। तब की तरह आज भी 'कौन?' का मतलब 'किस पार्टी से?' नहीं है। तब उत्तराधिकार का सवाल कांग्रेस के अंदर ही था। आज भाजपा के लिए भी यही बात लागू हो सकती है, बशर्ते 2024 में मोदी को वाकई चुनौती देने वाला कोई नेता विपक्ष में न उभर जाए।
प्रधानमंत्री ने किसी पद के लिए अपनी पार्टी के लोगों की उम्र सीमा 75 तय कर दी है। आज से चार साल बाद 2025 में मोदी जब अपने तीसरे कार्यकाल (मान लें कि 2024 में वे जीत जाते हैं) के बमुश्किल एक साल पूरे कर रहे होंगे, तब 75 के हो जाएंगे। मोदी कभी भी अपवाद माने जा सकते हैं इसलिए उनकी गिनती करके मत चलिए।
हम सबूतों के आधार पर राजनीति की व्याख्या करते हैं। हम देखते हैं, फिर आपको दिखाते हैं। अगर आप आज की भाजपा की 'ए टीम' पर नजर डालेंगे तो आसानी से समझ जाएंगे कि कौन किस दर्जे का है और कहां खड़ा है। पिछले सप्ताह की कुछ राजनीतिक घटनाओं पर नजर डालिए। जब गुजरात में नाटकीय उलटफेर हो रहा था तब सुर्खियां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बटोर रहे थे, मानो वे दोबारा चुने जाने के अपने चुनावी प्रचार का उद्‌घाटन कर रहे हों।
देखिए कि कौन मुख्यमंत्री अपने प्रचार के लिए विज्ञापनों पर भारी खर्च कर रहा है। आप अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे या और कोई नाम ले सकते हैं, लेकिन इस मामले में योगी उन सबको तीन गुना अंतर से तो पीछे छोड़ ही देंगे। एकमात्र योगी ही हैं जिन्होंने दिल्ली में बस स्टॉपों पर मोदी के साथ अपनी तस्वीर लगवा डाली है।
उनके होर्डिंग दिल्ली में राजनयिकों वाले इलाके से लेकर दूसरे भागों में नजर आ रहे हैं। हमें मालूम है कि उत्तर प्रदेश के मतदाता काम करने के लिए दिल्ली आते हैं। यही बात हरियाणा वालों के साथ भी है लेकिन क्या आपने इस तरह खट्टर के होर्डिंग दिल्ली में देखे?
तमाम टीकाकार एक बात पर सहमत हैं कि भाजपा आज आलाकमान के इशारे पर चलने वाली वैसी ही पार्टी है जैसी कांग्रेस तब थी जब इंदिरा गांधी शिखर पर थीं। इसलिए यहां यह पेचीदा सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश की सरकार और उसके मुख्यमंत्री पर आलाकमान का कितना प्रभाव है? विज्ञापन के अलावा दूसरे सबूतों पर भी नजर डालें।
किसी मकसद से उत्तर प्रदेश भेजे गए मोदी के विश्वसनीय, पूर्व सरकारी अधिकारी ए. के. शर्मा बिना किसी मंत्रालय या जिम्मेदारी के वहां जमे हुए हैं। सांत्वना पुरस्कार के रूप में उन्हें प्रदेश भाजपा का उपाध्यक्ष बनाया गया है। बात सिर्फ इतनी है कि वे 16 दूसरे उपाध्यक्षों के बाद 17वें हैं। आलाकमान द्वारा नामजद किसी शख्स के साथ कोई भाजपाई मुख्यमंत्री इस तरह का व्यवहार करे, यह अकल्पनीय है।
मोदी ने गांधीनगर में मुख्यमंत्री रहते हुए 'गुजरात मॉडल' तैयार किया था। योगी भी यही कर रहे हैं और वे यूपी को हू-ब-हू वैसा ही बना रहे हैं जैसा गुजरात मोदी के दौर में था। मोदी आज भी गुजरात में मुख्यमंत्री समेत पूरे मंत्रिमंडल को बदल सकते हैं। लेकिन लखनऊ में योगी अपने मंत्री खुद चुनते हैं, उनमें विभागों का बंटवारा करते हैं और हां, सारे अधिकार अपने हाथ में रखते हैं।
साफ बात यह है कि भाजपा में कोई भी मोदी को चुनौती नहीं देने वाला है। वे जब तक चाहें पार्टी पर राज कर सकते हैं। योगी भी उन्हें चुनौती नहीं देंगे। लेकिन भाजपा में एक नया सत्ता केंद्र उभर रहा है। 49 की उम्र के योगी पार्टी के शीर्ष नेताओं में सबसे युवा हैं, केजरीवाल से भी युवा।
वे आरएसएस मूल के भी नहीं हैं लेकिन भाजपा के 'हार्डकोर' में उनका व्यापक आधार भी है। एक साल पहले तक हम यह कह सकते थे कि भाजपा के एक क्षत्रप तो ऐसे हैं जो आलाकमान के आगे तन कर खड़े हो सकते हैं। यह स्थिति कर्नाटक में येदियुरप्पा को हटाए जाने के बाद बदल गई है।
योगी कोई हल्के-फुल्के नहीं हैं, उन्होंने आलाकमान को सकते में डाल रखा है। अगले साल वे यूपी का चुनाव हार गए तो 2024 में भाजपा की उम्मीदों को झटका लगेगा लेकिन जीत गए तो यह जितनी योगी की जीत मानी जाएगी उतनी आलाकमान की भी। यह भाजपा की आगे की संभावनाओं को प्रभावित करेगी।
दिल्ली में भी योगी का विज्ञापन
कौन-सा मुख्यमंत्री अपने प्रचार के लिए विज्ञापनों पर भारी खर्च कर रहा है? आप अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे या और कोई नाम ले सकते हैं, लेकिन इस मामले में योगी सबको तीन गुना अंतर से पीछे छोड़ ही देंगे। एकमात्र योगी ही हैं जिन्होंने दिल्ली में बस स्टॉपों पर मोदी के साथ अपनी तस्वीर लगवा डाली है।


Next Story