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बीजेपी ने की योगी 2.0 सरकार से संघ के दूरगामी लक्ष्य ‘हिंदू राष्ट्र’ को साधने की कोशिश
यूसुफ़ अंसारी
योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने शपथ लेने के साथ ही अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत कर दी. नई सरकार में कुल 52 मंत्री बनाए गए हैं. इनमें 18 कैबिनेट, 12 स्वतंत्र प्रभार और 20 राज्य मंत्री हैं. कई दिनों की लगातार माथापच्ची के बाद वजूद में आई नई योगी 2.0 सरकार के गठन से बीजेपी (BJP) ने संघ (RSS) के बरसों पुराने दूरगामी लक्ष्य को साधने की कोशिश की है. सरकार के गठन से पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुख्यमंत्री योगी से लंबी चली मुलाक़ात से भी इसके संकेत मिलते हैं. इसका प्रभाव योगी मंत्रिमंडल पर साफ दिखता है.
दरअसल संघ का अंतिम लक्ष्य देश को हिंदू राष्ट्र बनाना है. वो अपने गठन के बाद से लगातार इसी मक़सद को हासिल करने की कोशिश कर रहा है. संघ प्रमुख मोहन भागवत हाल के बरसों में कई बार संघ के इस एजेंडे को साफ तौर पर सामने भी रख चुके हैं. उत्तर प्रदेश में दोबारा योगी सरकार बनने के बाद संघ ने राज्य के हर गांव मे संघ की शाखा लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया है. चुनावी नतीजे आने के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत गोरखपुर भी गए थे. वहां योगी आदित्यनाथ ने उनके पास जाकर उनसे मुलाक़ात की थी. उसके बाद अपने वाराणसी प्रवास के दौरान भागवत ने कहा कि भारत संत सनातन धर्म की नगरी है और संतों के समागम से ही आध्यात्मिकता बढ़ती है. संतों के विचार और समागम से सनातन धर्म का उत्थान होगा और उससे हिंदू राष्ट्र प्रगति करेगा. देश और धर्म अलग नहीं बल्कि एक दूसरे के समागत से बढ़े हैं और बढ़ते रहेंगे.
भारत को बता चुके हैं हिंदू राष्ट्र
संघ प्रमुख मोहन भागवत हाल के वर्षों में कई बार भारत को हिंदू राष्ट्र बता चुके हैं. उनके बयानों पर विवाद पर हुआ है. पिछले साल सितंबर में भी उन्होंने धनबाद में आयोजित झारखंड प्रांत के तीन दिवसीय कार्यकर्ता सम्मेलन में भारत को हिंदू राष्ट्र बताया था. तब उनके बयान पर काफी विवाद हुआ था. कार्यक्रम के दौरान उन्होंने संघ कार्यकर्ताओं को मिशन-2025 का लक्ष्य दिया. दरअसल 2015 में संघ की स्थापना के 100 साल पूरे हो रहे हैं. इसी कार्यक्रम में उन्होंने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत हिंदू राष्ट्र है और इसके लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत में रहने वाले सभी लोग एक ही हैं, यहां के मुसलमान अरब से नहीं आए हैं. यहां के रहने वाले हैं. उनके पूर्वज भी हिन्दू ही थे. हम सबका डीएनए एक है. मोहन भागवत ने कहा कि अगर वे संघ से जुड़ना चाहते हैं तो जरूर जुड़ें. शाखा आएं और हमारे कार्यों को जानें. हमारे विचार को समझें.
शपथ ग्रहण समारोह की भव्यता के निहितार्थ
बीजेपी ने जिस भव्य अंदाज़ में योगी सरकार का शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया है, उसके कई निहितार्थ हैं. ऐसा भव्य शपथ ग्रहण समारोह इससे पहले किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री का नहीं हुआ. इसमें प्रधानमंत्री समेत केंद्र सरकार के कई मंत्रियों के साथ 11 राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए. इनके अलावा देश के कई जाने माने उद्योगपतियों के साथ ही देश विदेश से आए वीआईपी मेहमान और बड़ी संख्या में साधु संत समाज के लोग भी शपथ ग्रहण के गवाह बने. कुल मिलाकर 70 हज़ार लोगों की मौजूदगी में हुआ ये शपथ ग्रहण समारोह इस बात की तरफ इशारा कर गया कि योगी आदित्यनाथ भविष्य में देश की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं. उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में तो कई साल पहले से देखा जा रहा है. उनके इस भव्य शपथ ग्रहण समारोह ने इस संभावना को और पुख्ता किया है. दरअसल संघ के हिंदू राष्ट्र के अवधारणा में प्रधानमंत्री पद के लिए योगी आदित्यनाथ पूरी तरह फिट बैठते हैं.
मंत्रिपरिषद में सामाजिक संतुलन
संघ का मुख्य एजेंडा हिंदू समाज की एकता है. अगड़ों पिछड़ों की आबादी के संतुलन के हिसाब से सत्ता में बंटवारे के बग़ैर इसे साधना नामुमकिन है. यूपी में पिछले तीन दशको से राजनीति में पिछड़े वर्गों और दलितों का दबदबा रहा है. बीजेपी ने पिछले चुनाव में हिंदुत्व और मोदी लहर के सहारे सपा और बीएसपी के इस परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाई थी. इस चुनाव में भी उसने इस वोट बैंक पर अपना क़ब्ज़ा बरकरार रखा. आगे भी इसे बनाए रखने के लिए मंत्रिमंडल में सभी जातियों को साधने की कोशिश की गई है. सबसे ज्यादा पिछड़े वर्ग के 18 मंत्री बनाए गए हैं. बीजेपी को यादवों का ज्यादा समर्थन नहीं मिला. इसलिए सिर्फ गिरीश यादव को दोबारा मंत्री बनाया गया है. विधानसभा चुनाव के दौरान कहा गया कि ब्राह्मण नाराज हैं. हालांकि उनका वोट बीजेपी को ही मिला. अब लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र 8 ब्राह्मण मंत्रिमंडल में शामिल किए गए हैं. 8 ठाकुर मंत्री बनाए गए हैं. इस लिहाज़ से देखें तो कमंडल के आधार पर चुनाव जीतने वाली बीजेपी की सरकार में मंडल हावी है.
क्या दलितों की उपेक्षा हुई है?
माना जा रहा था कि इस बार योगी सरकार में एक दलित उपमुख्यमंत्री ज़रूर होगा. इसके लिए बेबी रानी मौर्य का नाम भी तय माना जा रहा था. ऐसा इस माना जा रहा था कि बीजेपी ने उन्हें उत्तराखंड के राज्यपाल के पद से इस्तीफा दिला कर विधानसभा चुनाव लड़ाया था. लेकिन सारे क़यास धरे के धरे रह गए. उन्हें सिर्फ कैबिनेट मंत्री बनाया गया. दरअसल अनुसूचित जाति के वोटर्स को लेकर माना गया कि मायावती का कोर वोट बैंक भी सरक गया. बीएसपी को 2017 में 22 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. इस बार उसे करीब 13 फीसदी वोट मिले हैं. बीएसपी के इस वोट बैंक में नौ फीसदी की कमी आई है. माना जा रहा है कि बीएसपी के मुसलमानों का सपा की तरफ खिसकने से उसका दलितक वोट बीजेपी को गया है. इसे ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने 7 अनुसूचित जाति के मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया है. पिछली कैबिनेट में भी 7 अनुसूचित जाति के मंत्री थे. इस लिहाज़ से देखें तो दलितों को बीजेपी को पहले के मुकाबले ज्यादा वोट देने का कोई खास फायदा नहीं हुआ.
पसमांदा मुसलमानों को साधने की कोशिश
इस चुनाव में पहली बार बीजेपी ने मुस्लिम वोट हासिल करने की रणनीति बनाई थी. बीजेपी ने मोदी-योगी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के आधार पर मुस्लिम लाभार्थियों के वोट हासिल करने के लिए विशेष रणनीति बनाई थी. उसने इस पर चुपचाप अमल किया. इसमे उसे काफी हद तक कामयाबी मिली है. इस चुनाव में बीजेपी को क़रीब 10 फीसदी मुसलमानों के वोट मिले हैं. ज्यादातर लाभार्थी पसमांदा तबके यानि पिछड़े वर्गों के हैं. लिहाज़ा माना जा रहा रहा है कि बीजेपी को मुसलमानों के इसी तबके से वोट मिले हैं. योगी 2.0 सरकार में पिछली सरकार में रहे एकमात्र मुस्लिम मंत्री मोहसिन रज़ा की छुट्टी करके इस बार दानिश आज़ाद अंसारी का राज्य मंत्री बनाया गया है. मोहसिन रज़ा शिया मुसलमान हैं. शिया समुदाय पहले से ही बीजेपी के साथ रहता है. दानिश आज़ाद सुन्नी हैं. वो मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी अंसारी बिरादरी से आते हैं. अंसारी बिरादरी मुस्लिम समाज में सबसे बड़ी बिरादरी होने के बावजूद हर राजनीतिक दल में हाशिए पर है. माना जा रहा है कि बीजेपी ने नब्ज़ पकड़ ली है. दानिश के सहारे वो पसमांदा मुसलमानों को साधने की कोशिश कर रही है.
लंबे समय तक राज करने की योजना
दरअसल बीजेपी की योजना देश में लंबे समय तक सत्ता में बने रहने की है. इसके लिए देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की सत्ता में कब्जा बनाए रखना बेहद ज़रूरी है. बीजेपी ने अपने सोशल इंजीनियरिंग के ज़रिए उत्तर प्रदेश में वो मुक़ाम हासिल कर लिया है जिसके सहारे वो लंबे समय तक सत्ता में बनी रह सकती है. इसके सहारे वो देश में भी लंबे समय तक सत्ता में रह सकती है. लोकतंत्र में जो पार्टी जितने ज्यादा दिनों तक सत्ता में रहती है उतने ही प्रभावकारी ढंग से वह अपने एजेंडे, नीतियों और कार्यक्रमों को लागू कर पाती है. बीजेपी इस सच्चाई को काफी पहले समझ चुकी थी. लिहाजा उसने देश पर लंबे समय तक राज करने की योजना बनाई और उसे साकार करने के लिए ठोस रणनीति बनाई. वो उसी पर अमल कर रही है. 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि बीजेपी देश की सत्ता में अगले 50 साल रहेगी. उसे कोई हरा नहीं सकता. यह कोई जुमला नहीं था. यह बीजेपी और संघ परिवार की सोची समझी रणनीति और कार्यशैली पर आधारित बयान था.
हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव इसका एक अहम पड़ाव हैं और उत्तर प्रदेश में जिस तरह बीजेपी ने अपनी धाक जमाई है, वह इस बात की तरफ इशारा करता है कि बीजेपी अपने मकसद में काफी हद तक कामयाब है. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस बार 41 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किया है. मुख्य प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी 32 फीसदी वोट पर ही अटक गई है. क़रीब 10 फीसदी वोट का यह फैसला आसानी से पाटे जाने वाला नहीं है. देश के चुनावी आंकड़े बताते हैं कि जिन राज्यों में सत्ताधारी पार्टी ने 40 फीसदी वोट का आंकड़ा पार कर लिया है उसे आसानी से सत्ता से बेदखल नहीं किया जा सकता. बीजेपी ने जिस तरह अपनी स्वीकार्यता का सामाजिक दायरा बढ़ाया है उससे लगता है कि अगले चुनाव में भी उसे सत्ता से हटा पाना मुमकिन नहीं होगा. इसलिए माना जा रहा है कि योगी 2.0 सरकार संघ के बड़े मक़सद को हासिल करने की दिशा में एक अहम पड़ाव है.
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