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सम्पादकीय
By प्रभु चावला.
हमें यह नहीं समझना चाहिए कि सत्ता में जोरदार वापसी के बाद बुलडोजर बाबा झपकी ले रहे हैं. पहले कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ ने बुलडोजर का इस्तेमाल मतदाताओं में उम्मीद भरने के लिए किया था. यह नया विचार उन्हें देश के सबसे कड़े हिंदुवादी नेता के रूप में स्थापित करने के लिए था. हालांकि उनकी सरकार ने बड़ी विकास परियोजनाओं की शुरुआत की थी, पर उनकी मुख्य योजना इस सोच को हटाने की थी कि आबादी का एक वर्ग अपराध कर बच सकता है.
उन्होंने अपराधियों की अवैध संपत्ति पर बुलडोजर चला दिया. अधिकतर माफिया घबरा कर राज्य से भाग गये. बड़े मुस्लिम अपराधियों को पकड़ा गया और अपराधियों को बिना डर के दंडित करने की पूरी छूट पुलिस को दी गयी. दूसरे कार्यकाल में इस संकल्पित नेता ने सभी धार्मिक इमारतों से अवैध लाउडस्पीकरों को हटाने का आदेश दिया. अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की समझ को दूर करने के लिए उन्होंने सभी समुदायों के विरुद्ध कार्रवाई का निर्देश दिया.
बिना बुलडोजर के मंदिर व मस्जिद के बीस हजार से अधिक लाउडस्पीकर बंद हो गये हैं. जहां अन्य भाजपा शासित राज्य निराशा में अपने बाल नोच रहे हैं, उत्तर प्रदेश में कठोर शासक के रूप में योगी की छवि ने असंभव को संभव कर दिखाया. यह उत्साही साधु जो कहता है, वही करता है. गोरखपुर मठ में भी लाउडस्पीकरों का मुंह इमारत की ओर घुमा दिया गया है. उनकी संख्या भी कम कर दी गयी है. योगी ने वह कर दिखाया है, जो अदालतें और अन्य संस्थाएं नहीं कर सकी थीं.
यह संन्यासी अब भ्रष्टाचार के विरुद्ध निष्पक्ष योद्धा के रूप में स्थापित हो रहा है. योगी ने सेवा नियमों को लागू करते हुए अपने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि जो अधिकारी तीन माह के भीतर अपनी संपत्ति का ब्योरा नहीं देंगे, उनके साथ अपराधियों जैसा बर्ताव किया जायेगा. सभी मंत्री और सैकड़ों उच्च अधिकारी अपनी और परिवार की संपत्ति का विवरण सरकारी वेबसाइट पर डालेंगे. योगी ने उन्हें पांच हजार रुपये से अधिक का उपहार नहीं लेने की चेतावनी भी दी है.
पांच हजार रुपये से अधिक के उपहार सभी उपहार सरकारी कोष में जमा किये जाते हैं. भीतरी सूत्रों के अनुसार, यह सब दागी अफसरों को निकालने के लिए किया जा रहा है. योगी की निगाह ऐसे दर्जनों अफसरों पर है और वे इंतजार कर रहे हैं कि ये लोग क्या-क्या सार्वजनिक करते हैं, ताकि उचित कार्रवाई हो सके.
यही नियम मंत्रियों और विधायकों पर भी लागू हो रहा है. मंत्रियों को यह भी बताना है कि उन्होंने सभी जिलों में अधिकारियों से बात कर क्या योजनाएं बनायी हैं. ये तीव्र सक्रियताएं राज्य में लोकसभा की कम से कम 75 सीटें जीतने के मिशन 2024 का आधार होंगी.
बीते सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार को हटा कर उनकी जगह विश्व बैंक के पूर्व अर्थशास्त्री सुमन बेरी को नियुक्त करने का फैसला किया. आयोग का कार्यालय नये सदस्य और भावी उपाध्यक्ष के स्वागत के लिए शनिवार को भी खुला था, पर निवर्तमान उपाध्यक्ष स्वास्थ्य कारणों से अनुपस्थित थे.
युवा पेशेवर, अन्य सदस्य और आयोग के सीईओ भवन के सम्मेलन कक्ष में अपने नये प्रमुख के अभिवादन के लिए जमा हुए थे. आखिर राजीव कुमार को क्यों हटाया गया? बेरी का चुनाव कैसे किया गया? ऐसे सवालों के संबंध में मीडिया के गलियारों में यह चर्चा है कि कुमार को इलेक्ट्रिक वाहनों से संबंधित नीति में बहुत अधिक दिलचस्पी तथा एक खास निर्माता और कारोबारी से नजदीकी उनकी विदाई की वजह बनी.
अरविंद पनगढ़िया के जाने के बाद राजीव कुमार को लाने की मोदी की पसंद को तब देशी अर्थशास्त्रियों के प्रति प्रधानमंत्री के प्यार के रूप में पेश किया गया था. मोदी ने देशी जमीन से जुड़े एक भारतीय को मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में भी चुना था, लेकिन बेरी का आना विश्व बैंक के अर्थशास्त्रियों की वापसी के रूप में देखा जा रहा है. वे शेल के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके हैं और ब्रसेल्स स्थित संस्था ब्रुएगेल के अप्रवासी फेलो हैं.
नब्बे के दशक में तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह उन्हें सरकार में लाना चाहते थे, पर प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने मना कर दिया था, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि विश्व बैंक द्वारा प्रशिक्षित बहुत सारे अर्थशास्त्री भारत की नीति को प्रभावित करें. मोदी को दक्षिणपंथी वामपंथी माना जाता है. वे मुफ्त या बहुत अधिक अनुदान पर आवास, स्वास्थ्य सेवा देने तथा किसानों की आय बढ़ाने के कल्याणकारी अर्थशास्त्र का पालन करते हैं, पर वे आर्थिक नीति में निजी भागीदारी को भी प्रोत्साहित करते हैं.
सुरजीत भल्ला का अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कार्यपालक निदेशक बनाया जाना, राकेश मोहन को प्रधानमंत्री की सलाहकार समिति में लाना और बेरी की नीति आयोग में नियुक्ति से इंगित होता है कि एक ही ढंग के ये अर्थशास्त्री देशी वित्तीय बुद्धि को बाधित करेंगे. बेरी को पनगढ़िया की अनुशंसा पर चुना गया है. पनगढ़िया भी विश्व बैंक संप्रदाय के ही हैं. विश्व बैंक से जुड़ाव के कारण बेरी 2023 के जी-20 आयोजन की मेजबानी में अहम भूमिका निभा सकते हैं. विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला के साथ वे मोदी को विराट दृष्टि के विश्व नेता के रूप में पेश करनेवाली व्यवस्था के आधार होंगे.
जम्मू-कश्मीर काडर के आइएएस अधिकारी शाह फैसल को फिर से नौकरशाही में लाना क्या मोदी के मिशन 2024 का हिस्सा है? वर्ष 2010 के इस 36 वर्षीय आइएएस टॉपर को पिछले सप्ताह तीन साल के बाद फिर से सेवा में आने की अनुमति दे दी गयी. फैसल शायद पहले ऐसे आइएएस अधिकारी हैं, जिन्होंने नौकरी छोड़ी, राजनीतिक दल बनाया, कश्मीर मसले पर मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोला, जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में लिये गये और जिनके खिलाफ जांच चल रही है, उन्हें बिना शर्त फिर से सेवा में लिया जा रहा है.
कई सारे क्रुद्ध अनुमान लगाये जा रहे हैं कि क्यों उनका इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ था? उन्हें बर्खास्त क्यों नहीं किया गया? क्या यह एक असफल प्रयोग था या जम्मू-कश्मीर चुनाव के संदर्भ में फैसल एक बड़े राजनीतिक खेल के हिस्सा हैं? राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखनेवाले कई अधिकारी फैसल के भविष्य को भूखी आंखों से देख रहे हैं. अगर उन्हें कामयाबी मिलती है, तो ये अधिकारी भी सत्ताधारी दल को सेवाएं दे सकते हैं, क्योंकि अब आइएएस का अभिजात्य ग्लैमर अपनी चमक खो रहा है.
Gulabi Jagat
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