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Yogesh Kumar Goel's blog: India's growing population should not swallow the resources
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
Yogesh Kumar Goel's blog: India's growing population should not swallow the resourcesजबकि भारत आबादी के मामले में 1.4 अरब जनसंख्या के साथ विश्व में दूसरे स्थान पर है। विश्व की कुल आबादी में से करीब 18 फीसदी लोग भारत में रहते हैं और दुनिया के हर 6 नागरिकों में से एक भारतीय है। अगर भारत में जनसंख्या की सघनता का स्वरूप देखें तो 1991 में देश में जनसंख्या की सघनता 77 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर थी, जो 2011 में 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो गई। भारत में बढ़ती आबादी के बढ़ते खतरों को इसी से बखूबी समझा जा सकता है कि दुनिया की कुल आबादी का करीब छठा हिस्सा विश्व के महज ढाई फीसदी भूभाग पर ही रहने को मजबूर है। जाहिर है कि किसी भी देश की जनसंख्या तेज गति से बढ़ेगी तो वहां उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव भी उसी के अनुरूप बढ़ता जाएगा।
आंकड़ों पर नजर डालें तो आज दुनियाभर में करीब एक अरब लोग भुखमरी के शिकार हैं और अगर वैश्विक आबादी बढ़ती रही तो भुखमरी की समस्या बहुत बड़ी वैश्विक समस्या बन जाएगी, जिससे निपटना इतना आसान नहीं होगा। बढ़ती आबादी के कारण ही दुनियाभर में तेल, प्राकृतिक गैसों, कोयला इत्यादि ऊर्जा के संसाधनों पर दबाव अत्यधिक बढ़ गया है, जो भविष्य के लिए बड़े खतरे का संकेत है। जिस अनुपात में भारत में आबादी बढ़ रही है, उस अनुपात में उसके लिए भोजन, पानी, स्वास्थ्य, चिकित्सा इत्यादि सुविधाओं की व्यवस्था करना किसी भी सरकार के लिए आसान नहीं है।
जनसंख्या संबंधी संयुक्त राष्ट्र की चौंकाने वाली एक रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 2050 तक एशिया महाद्वीप की आबादी पांच अरब हो जाएगी और सदी के अंत तक दुनिया की आबादी 12 अरब तक पहुंच जाएगी। 2024 तक भारत और चीन की जनसंख्या बराबर हो जाएगी और 2027 में भारत चीन को पछाड़कर विश्व का सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक चीन की आबादी 140 करोड़ होगी जबकि भारत की आबादी 165 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष आस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या के बराबर बच्चों का जन्म होता है। हालांकि हम इस बात पर थोड़ा संतोष व्यक्त कर सकते हैं कि जनसंख्या वृद्धि दर के वर्तमान आंकड़ों की देश की आजादी के बाद के शुरुआती दो दशकों से तुलना करें तो 1970 के दशक से जनसंख्या वृद्धि दर में निरंतर गिरावट दर्ज की गई है लेकिन यह गिरावट दर काफी धीमी रही है।
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या वृद्धि की गति धीमी हुई है। वर्ष 1971-81 के मध्य वार्षिक वृद्धि दर 2.5 प्रतिशत थी, जो 2011-16 में घटकर 1.3 प्रतिशत रह गई। जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार को नियंत्रित रखने के लिए औसत प्रजनन दर 2.1 होनी चाहिए और हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि देश में यह दर 2.2 से घटकर 2 हो गई है। पिछले कुछ दशकों में देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के स्तर में निरंतर सुधार हुआ है, उसी का असर माना जा सकता है कि धीरे-धीरे जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आई है लेकिन यह इतनी भी नहीं है, जिस पर खूब जश्न मनाया जा सके।
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Rani Sahu
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