सम्पादकीय

योगेश कुमार गोयल का ब्लॉग: समय की मांग हैं इको-फ्रेंडली राखियां

Rani Sahu
11 Aug 2022 4:09 PM GMT
योगेश कुमार गोयल का ब्लॉग: समय की मांग हैं इको-फ्रेंडली राखियां
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भाई द्वारा बहन की रक्षा का वचन देने के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाले त्यौहार रक्षाबंधन के मायने वर्तमान युग में काफी बदल गए हैं
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
भाई द्वारा बहन की रक्षा का वचन देने के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाले त्यौहार रक्षाबंधन के मायने वर्तमान युग में काफी बदल गए हैं। बदले जमाने के साथ भाई-बहन के अटूट प्यार के इस पर्व पर आधुनिकता का रंग चढ़ चुका है लेकिन साथ ही प्रकृति मित्र राखियां भी लोगों द्वारा पसंद की जाने लगी हैं और हाल के वर्षों में स्वदेशी राखियों की मांग कई गुना बढ़ी है।
राखी निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में कच्चा माल चीन से ही आयात किया जाता रहा है लेकिन चीन के साथ तनातनी के दौर में चाइनीज सामान के प्रति लोगों के विरोध के कारण स्वदेशी राखियों के प्रति आकर्षण तेजी से बढ़ा है। महिलाओं तथा बच्चों का आकर्षण साधारण राखियों के बजाय अब नए-नए डिजाइनों वाली स्वदेशी डिजाइनर और हाइटेक राखियों की ओर देखा जाने लगा है।
हाईटेक राखियों में गैजेट राखियां, 3-डी और एलईडी तथा म्यूजिकल राखियां शामिल हैं जबकि बच्चों के लिए घड़ी और छोटे-छोटे सुंदर खिलौने लगी राखियां भी बाजार में उपलब्ध हैं। वहीं अब अन्य पारंपरिक राखियों के मुकाबले इको-फ्रेंडली राखियों की मांग भी न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी बढ़ने लगी है।
विभिन्न स्थानों पर गोबर तथा बांस का इस्तेमाल कर बनाई जा रही खूबसूरत राखियों को देश के दूरदराज के हिस्सों में लोगों द्वारा पसंद किया जाने लगा है। दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित कई बड़े राज्यों के बाजारों में इन आकर्षक राखियों की मांग का तेजी से विस्तार हुआ है।
भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ की पहल पर इस वर्ष गाय के गोबर से बनी 60 हजार राखियां तो अमेरिका और मॉरीशस भेजी गई हैं। इन इको फ्रेंडली राखियों का सबसे बड़ा लाभ यही है कि इनके निर्माण से एक ओर जहां स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं, वहीं इनके उपयोग से लोगों को पर्यावरण को प्रदूषित करती रही चाइनीज राखियों से मुक्ति मिल रही है।
Rani Sahu

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