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By: divyahimachal
हिमाचल में पर्यटन कभी चालबाज की तरह फलते-फूलते सीजन को उधेड़ लेता है, तो कभी पर्यटन की मासूमियत में सारी क्षमता विद्रूप हो जाती है। जिन्होंने सुना या जिन खबरों ने हिमाचल की बरसात के घातक अंदाज को सिरफिरा घोषित कर दिया, उनके परिणामों का सिफर ओढक़र सारे होटल, रेस्तरां, ढाबे व गिफ्ट सेंटर उदास हैं। सबसे भयावह परिदृश्य में कुल्लू घाटी का सफर घाटे के पर्यटन की इत्तिला दे रहा है। बेरौनक के खंजर कमोबेश हर पर्यटक स्थल को नोच चुके हैं। हिमाचल पर्यटन के अतिवादी दृष्टिकोण को वर्ष भर सक्रिय बनाने की आचार संहिता बनानी होगी। बेशक हम बरसात पर्यटन के चूल्हे को ठंडा मानकर दरों को कम कर रहे हैं। आधी दरों में बड़े से बड़े होटल कुर्बान हैं, तो यह मौसम सोचने का है। ऐसा नहीं है कि हिमाचल के हर इलाके में बरसात का कहर है, लेकिन सतर्कता के साथ पर्यटन सहूलियतों की प्रस्तुति की जोरदार वकालत होनी चाहिए। मैदानी इलाकों में ग्रीष्म कालीन अवकाश ने हिमाचल का रोआं-रोआं पर्यटन से भरना शुरू कर दिया है। इस आदत ने तथाकथित पर्यटन सीजन को बिगड़ैल बना दिया है। जरूरत है कि हम इस क्षमता को साल भर के लिए बचा कर रखने का उपाय सोचें। पर्यटन क्षेत्र में चार दिन की चांदनी होने से पूरा उद्योग भूखा प्यासा रहेगा, बल्कि इसके कारण हिमाचल और जम्मू-कश्मीर के बीच मुकाबले में प्रदेश की छवि क्यों परास्त होती है, इसके ऊपर भी विचार करने की आवश्यकता है। पर्यटन का वार्षिक कैलेंडर न मनाली, न अटल टनल और न ही शिमला जैसे स्थलों पर मुकम्मल होगा, बल्कि जब हम ऊना, हमीरपुर, सिरमौर या कांगड़ा के मैदानी इलाकों में पर्यटन को तराशेंगे, तो साल भर सैलानी आएंगे। वे सर्दी, गर्मी, बरसात, बसंत या किसी न किसी विशेष उद्देश्य से आएं, इस लिहाज से हिमाचल को अपनी नई मंजिलें निर्धारित करनी होंगी। हिमाचल में पर्यटन के मौजूदा व बदलते चरित्र को समझने की भी आवश्यकता है।
जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर या देश के पर्यटन में हो रहा है, उसके साथ या उससे हटकर हमें अपनी विविधता में क्षमता व संभावनाएं बढ़ानी होंगी। ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर, कांगड़ा, मंडी व सिरमौर के मैदानी इलाके पर्यटन को साल भर के कैलेंडर में सराबोर कर सकते हैं। बेशक वर्तमान की कुछ परिकल्पना दिखाई देती है या इससे पहले पूर्व सरकारों ने भी निचले क्षेत्रों में इक्का दुक्का प्रयत्न किए, लेकिन ये कार्य उस अधोसंरचना की मांग करते हैं, जो साल भर के पर्यटन को प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सींचे। हिमाचल में युवा, छात्र, सांस्कृतिक, धरोहर व धार्मिक पर्यटन के जरिए यह खाका खींचा जा सकता है। हिमाचल अगर अपने 750 स्कूलों के वोकेशनल छात्रों को शैक्षणिक भ्रमण पर देश भर में ले जा सकता है, तो देश के तमाम छात्रों के हिमाचल भ्रमण को सुदृढ़ करने के लिए हमें अपनी विशिष्टता दर्ज करनी होगी। ऐसे में अगर नादौन से भोटा के बीच एक साइंस सिटी विकसित की जाए, तो छात्र एवं नालेज पर्यटन की दृष्टि से हिमाचल की पर्यटन हिस्सेदारी बढ़ जाएगी। अगर हमारे विश्वविद्यालय राष्ट्रीय स्तर की खेल, सांस्कृतिक तथा वैचारिक गतिविधियों को पर्यटन की दृष्टि से नियमित व पारंगत करंे, तो साल भर का पर्यटन विकसित होगा।
अगर सिने पर्यटन की दृष्टि से शूटिंग स्थल विकसित किए जाएं तथा आधुनिक सुविधाओं, उपकरणों तथा फिल्म प्रोडक्शन के हिसाब से गरली-परागपुर की धरोहर इमारतों के साथ फिल्म सिटी का प्रारूप विकसित करें, तो साल भर पर्यटन आबाद रहेगा। यदि तमाम धार्मिक परिसरों को सांस्कृतिक गतिविधियों, गीत-संगीत सम्मेलनों तथा पौराणिक नृत्य शैलियों के प्रमुख केंद्र के रूप में निखारा जाए, तो मंडी छोटी काशी नहीं, हिमाचल की सांस्कृतिक राजधानी और हर मंदिर हमारे लोक संगीत की विरासत से सैलानियों को निरंतर खींच पाएंगे। मार्च से जून तक हिमाचल के पर्यटन का कोई सानी नहीं, अक्तूबर से फरवरी तक त्योहार और बर्फ का इंतजार कुछ हद तक इसे खींच ले, तो भी जुलाई, अगस्त और सितंबर का अंतर मिटाने की जरूरत रहेगी।
Rani Sahu
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