सम्पादकीय

यासीन के गुनाहों का हिसाब

Subhi
27 May 2022 3:36 AM GMT
यासीन के गुनाहों का हिसाब
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दिल्ली की एनआईए अदालत ने जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन म​लिक के गुनाहों का हिसाब-किताब कर दिया। उसे आतंकी वित्त पोषण के दो मामलों में दो उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।

आदित्य नारायण चोपड़ा: दिल्ली की एनआईए अदालत ने जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन म​लिक के गुनाहों का हिसाब-किताब कर दिया। उसे आतंकी वित्त पोषण के दो मामलों में दो उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। हालांकि हत्या और अन्य मामलों में अभी फैसला आना बाकी है। यासीन वो शख्स है जिसकी निगहबानी में वर्ष 1987 से लेकर 1994 तक धरती का जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर में आतंकवाद फला-फूला। कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से लेकर घाटी की कई बड़ी आतंकी घटनाओं से यासीन का सीधा संबंध रहा। तभी तो उसकी सजा के ऐलान पर पाकिस्तान में कोहराम मचा हुआ है। पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और क्रिकेटर शाहिद अफरीदी तक की तीखी प्रक्रियाएं आई हैं। यासीन मलिक कश्मीर की सियासत में हमेशा से सक्रिय रहा। युवाओं को भड़काने से लेकर उनके हाथों में बंदूकें थमाने तक सब कुछ इसने किया। 1989 में तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण में भी उसका हाथ रहा। 25 जनवरी, 1990 को श्रीनगर के बाहरी इलाके रावलपोरा में आतंकियों ने वायुसेना के जवानों पर हमला कर चार जवानों को शहीद कर दिया था और 40 जवान घायल हुए थे। भारतीय वायुसेना के चार जवानों की हत्या का आरोप यासीन मलिक ने कुबूल भी किया। यासीन मलिक वो शख्स है जो 2013 में अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के विरोध में लश्कर-ए-तैयबा चीफ हाफिज सईद के साथ इस्लामाबाद प्रैस क्लब के बाहर 24 घंटे की भूख हड़ताल पर बैठा था। कश्मीर की आजादी की लड़ाई के नाम पर उसने जम्मू-कश्मीर के आतंकवादी और अन्य गैर कानूनी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए धन जुटाने के मकसद से दुनिया भर में नेटवर्क बना लिया था। यासीन मलिक ने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के झंडे तले घाटी में सशस्त्र उग्रवाद का नेतृत्व किया और वह जम्मू-कश्मीर को भारत और पाकिस्तान दोनों से आजादी ​दिलाने की वकालत करता रहा है। यासीन मलिक ने कश्मीर में अलगाववादियों के बीच वैचारिक एकता स्थापित करने में भी अहम भूमिका निभाई थी। केन्द्र की सरकारें समय-समय पर अलगाववादी गुटों से बातचीत की पहल करती रही हैं। 2016 में यासीन मलिक ने हुर्रियत नेताओं मीर वाइज, उमर फारूख और सैयद अलीशाह गिलानी के साथ वार्ता कर संयुक्त रणनीति भी बनाई थी। यासीन मलिक को रिहा भी कर दिया गया था। 1994 में यासीन मलिक ने सशस्त्र संघर्ष का रास्ता छोड़ शांतिपूर्ण राजनीतिक संघर्ष का नारा दिया और जेकेएलएफ को एक राजनीतिक दल के रूप में पेश किया। 1983 में वह उस समय लोगों की नजरों में आया था जब उसने वेस्ट इंडीज के खिलाफ श्रीनगर में पहले अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैच को बाधित करने की कोशिश की, तब उसे गिरफ्तार कर चार महीने के लिए जेल भेज दिया गया था। अब सवाल यह है किं क्या हथियार छोेड़ देने से ही यासीन मलिक के सारे गुनाह माफ कर दिए जाने चाहिए। यासीन मलिक ने फांसी की सजा से बचने के लिए सुनवाई के दौरान गांधीवादी कार्ड भी खेला। उसने अपनी दलीलों में यह भी कहा कि वह हथियार छोड़ने के बाद गांधीवादी सिद्धांतों का पालन कर रहा है और वह कश्मीर में अहिंसक राजनीति कर रहा है लेकिन एनआईए कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश ने उसकी सारी दलीलों को खारिज कर दिया और टिप्पणी की कि अपराधी महात्मा गांधी का हवाला नहीं दे सकता और न ही उसके अनुुयायी होने का दावा कर सकता है। भले ही उसने 1994 में बंदूक छोड़ दी हो लेकिन 1994 से पहले की गई हिंसा के लिए कभी कोई खेद व्यक्त नहीं किया। संपादकीय :गुदड़ी के 'लाल' मोदीकर्नाटक में भी 'ज्ञानवापी'क्वाड में मोदी का विजय मन्त्रमदरसों के अस्तित्व पर सवालहिंद प्रशांत क्षेत्र का आर्थिक गुटगर्मी की छुट्टियां सुरक्षित रहकर सुखपूर्वक मनायेंयासीन मलिक ने पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक सभी प्रधानमंत्रियों से मुलाकात का उल्लेख भी किया लेकिन इसका भी कोई असर अदालत पर नहीं पड़ा। 80 के दशक में जब कश्मीर में अलगाववादी संगठनों की गतिविधियां जोर पकड़ चुकी थीं तब से ही जेकेएलएफ और अन्य संगठन पाकिस्तान के इशारे पर काम करते रहे। पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई, सेना और अन्य प्रतिष्ठान इनको पैसे भेजते थे। इस पैसे का इस्तेमाल घाटी में आतंकी गतिविधियों, पथराव और दूसरी वारदातों को अंजाम देने के लिए किया जाता रहा। हजारों लोगों का खून बहा। युवाओं के हाथों में किताबों की बजाय बंदूकें थमाई गईं। कल ही आतंकवादियों ने टेलीविजन अभिनेत्री अमरीन भट्ट की गोली मार कर हत्या कर दी और उनके दस वर्षीय भतीजे को घायल कर दिया। एक बार फिर आतंकवादियों ने निर्दोष महिला को निशाना बनाया। वह उनकी कायर्रता का ही प्रतीक है। जिस तरह से आतंकवादी ढेर किए जा रहे हैं उससे साफ है कि अमरीन भट्ट के हत्यारों के दिन भी बचे-खुचे हैं।पूर्व की सरकारें अलगाववादी संगठनों के प्रति उद्धार रुख अपनाती रहीं और बातचीत के लिए पहल करती रहीं। इसी कमजोरी का फायदा पाकिस्तान और आतंकवादी संगठनों ने उठाया। 2014 में केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद अलगाववादियों पर नकेल कसनी शुरू हुई और एक-एक करके हुर्रियत के नागों को जेलों में बंद किया गया। एनआईए ने एक के बाद एक टैरर फंडिंग और अन्य मामलों का खुलासा ​किया। यासीन मलिक को दो उम्र कैद की सजा अलगाववादी नेताओं और आतंकियों को कड़ा संदेश है जो भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं। यासीन मलिक की सजा पाकिस्तान को भी एक सख्त संदेश है कि जिन लोगों का इस्तेमाल उसने भारत विरोध के​ लिए किया उससे भारत के कानून के तहत ही निपटा जाएगा।

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