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कभी अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में देश के वित्त मंत्री और विदेश मंत्री रहे यशवंत सिन्हा आज राष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार हैं
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
कभी अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में देश के वित्त मंत्री और विदेश मंत्री रहे यशवंत सिन्हा आज राष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार हैं। उन्होंने अपनी रणनीति के मुद्दों और जीत की संभावना पर लोकमत मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर (बिजनेस एवं पॉलिटिक्स) शरद गुप्ता से विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश...
-आप अपनी जीत के प्रति कितने आशान्वित हैं?
मैं जीतने के लिए ही चुनाव लड़ रहा हूं।
-फिलहाल संख्या बल आप के खिलाफ है। ऐसे में आपकी आशा का क्या आधार है?
बहुत से राजनीतिक दलों और नेताओं ने मुझे समर्थन देने का वादा किया है। मैं फिलहाल सभी के नाम नहीं ले सकता लेकिन इतना अवश्य कहूंगा कि इस चुनाव में सच की ही जीत होगी।
-नवीन पटनायक, जगन मोहन रेड्डी जैसे कई मुख्यमंत्रियों ने एनडीए के उम्मीदवार का पहले ही समर्थन कर दिया है। मायावती जैसे गैर-एनडीए दल भी द्रौपदी मुर्मू के साथ हैं और संभवतः झारखंड मुक्ति मोर्चा भी।
-पहले शरद पवार, फारुख अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी जैसे तीन वरिष्ठ नेता चुनाव लड़ने से इंकार कर चुके थे तो आप क्यों तैयार हुए?
तो आप क्या चाहते हैं कि मैं भी इंकार कर देता। मैं मैदान छोड़कर भागने वालों में नहीं हूं।
-उम्मीदवारी के लिए किस-किसने की थी आपसे बात?
आपको तो मालूम ही होगा कि राष्ट्रपति चुनाव को लेकर संयुक्त विपक्ष की दो बैठकें हुई थीं। दूसरी बैठक में मेरे नाम का प्रस्ताव हुआ और मान लिया गया। शरद पवार ने सबसे पहले मुझे फोन किया, फिर मल्लिकार्जुन खड़गे ने और ममता बनर्जी ने। धीरे-धीरे बाकी सभी नेताओं ने मुझसे चुनाव लड़ने का अनुरोध किया। मैंने उनका आग्रह मान लिया। उसके बाद से ही मुझे लगातार समर्थन के फोन आ रहे हैं। अब मैं देशभर में भ्रमण कर अलग-अलग नेताओं से मिलूंगा और समर्थन मांगूंगा। मुझे आशा है कि वे सब मेरे मुद्दों से सहमत होंगे।
-आप स्वयं आदिवासी-बहुल झारखंड से आते हैं। क्या आप पहली बार एक आदिवासी के राष्ट्रपति बनने में रोड़ा बनना चाहते हैं?
कोई किस कुल में पैदा हुआ क्या यह उसके हाथ में है? द्रौपदी मुर्मू तो खुद ओडिशा में मंत्री रही हैं, झारखंड की राज्यपाल रही हैं, इसके बावजूद उनके गांव तक में आज तक बिजली नहीं लग पाई। समझ सकते हैं कि वे देश के लिए क्या करेंगी। क्या वे बता सकती हैं कि आज तक उन्होंने आदिवासियों के लिए क्या काम किए?
-आप किन मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगे?
यह छोटी-मोटी लड़ाई नहीं है। यह विचारधारा की लड़ाई है। यह संविधान बचाने का संघर्ष है। हमारा देश हमेशा से विविधता से पूर्ण और समावेशी रहा है। लेकिन आज एक विचारधारा सभी पर थोपी जा रही है। टकराव और नफरत का वातावरण बनाया जा रहा है। आज जो कुछ कहा जा रहा है और किया जा रहा है, यह उस मूल भावना के विपरीत है जिसके लिए भारत की स्थापना की गई थी और जिसके लिए इसे स्वतंत्र कराया गया था। आज संविधान को पूरी तरह नष्ट कर एक तानाशाही और अधिनायकवादी समाज की स्थापना की जा रही है।
-आप स्वयं लंबे समय तक भाजपा में रहे हैं। क्या इस चुनाव को भाजपा बनाम भाजपा की लड़ाई नहीं देखा जाना चाहिए?
मैं 1993 में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की भाजपा में शामिल हुआ था। वह भाजपा आज की भाजपा से एकदम अलग थी। 1998 में भाजपा संसद में एक वोट से हार गई थी और अटलजी ने तुरंत इस्तीफा दे दिया था। आज की भाजपा ऐसा करेगी यह अकल्पनीय है। देखिए न कर्नाटक और मध्य प्रदेश में क्या हुआ और महाराष्ट्र में क्या हो रहा है? यहां जनता के जनादेश का अपमान किया जा रहा है। उस समय भाजपा सिर्फ आम सहमति से काम करती थी। आज की भाजपा सिर्फ टकराव चाहती है, राजनीति में भी और समाज में भी।
-लेकिन राष्ट्रपति तो प्रधानमंत्री की सलाह पर ही फैसले लेता है। यदि आप चुनकर आ भी गए तो कैसे काम करेंगे?
राष्ट्रपति की सलाह को सरकार को गंभीरता से लेना ही होगा। राष्ट्रपति के पास सलाह देने के अलावा भी अधिकार होते हैं।
-राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का मुखिया भी होता है। आप सेना में भर्ती की अग्निपथ योजना को कैसे देखते हैं?
यह न तो सेना के हित में है और न ही राष्ट्र के हित में। इसे एक कम अवधि की रोजगार योजना के रूप में लागू किया जा रहा है। इसमें चयनित सैनिक न तो पूरी तरह प्रशिक्षित होंगे और न ही उनमें नियमित सैनिकों की तरह कमिटमेंट होगा। स्पष्ट है कि इसे भाजपा का एक उग्र मिलिटेंट काडर बनाने के लिए ही शुरू किया जा रहा है।
Rani Sahu
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