सम्पादकीय

वुहान वायरस लीक : दुनिया को जवाब चाहिए

Neha Dani
2 Nov 2021 1:50 AM GMT
वुहान वायरस लीक : दुनिया को जवाब चाहिए
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स्वतंत्र इच्छा और कानून के राज का बखान करने वाले नेताओं की वैधता कसौटी पर है।

वे आए, वे मिले और असहमत होने के लिए सहमत हुए। यही दुनिया के बीस सबसे अमीर देशों के नेताओं की बैठक जी-20 शिखर सम्मेलन का संक्षिप्त सारांश होगा। भविष्य में दुनिया को कैसे एक बेहतर जगह बनाया जाए, इस विषय पर इन नेताओं ने बात की। हालांकि उन्होंने उस एक सवाल का समाधान नहीं किया, जो दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के कहर को देखते हुए सर्वोपरि है कि वुहान में वायरस का रिसाव कैसे हुआ और इसके लिए जिम्मेदार कौन है। इस नवंबर में उस घटना को दो साल हो रहे हैं, जब हुबेई की एक प्रयोगशाला में तीन वैज्ञानिकों ने अपने संक्रमण के लिए विशेष चिकित्सा उपचार की मांग की थी।

दो साल हो गए, जब कोविड-19 वायरस ने 'सामान्य' शब्द का मतलब बदल दिया और जीवन व आजीविका को तबाह कर दिया। इन दो वर्षों में, 24.6 करोड़ से अधिक लोगों ने खुद को संक्रमित और बेदम पाया और लगभग 50 लाख लोगों ने जान गंवाई। अन्य लाखों लोगों ने अपनी आजीविका खो दी तथा जैसा कि विश्व बैंक का अनुमान है कि 11.9 से 12.4 करोड़ लोग अत्यंत गरीबी में धकेल दिए गए और लाखों अन्य निराशा और विनाश के बीच लटके हुए हैं।
सबसे बुरी बात है कि चीन अब भी अपारदर्शिता अपना रहा है-महामारी के प्रकोप के बाद लगभग हर दूसरे हफ्ते प्रमुख चीनी बंदरगाहों को बंद किया गया। इसी हफ्ते 11 प्रांतों में संक्रमण के मामले बढ़ने के बाद हुबई और बीजिंग मैराथन को रद्द कर दिया गया। क्या दुनिया जानती है कि यह आवेग किस हद तक व्यापार, यात्रा, आपूर्ति शृंखला और वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है? 1999 में अपनी स्थापना के बाद से जी-20 का इतिहास यही है कि मंच से बोले गए शब्दों की तुलना में इसका कामकाज विचित्र रहा है, मानवाधिकार से लेकर आतंकवाद प्रायोजित करने के मुद्दे पर अक्सर यह खामोश रहा है। शायद इसलिए इसका मजाक उड़ाया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैक के आंकड़ों से पता चलता है कि चीन को छोड़कर इसका हर सदस्य कोविड से बुरी तरह प्रभावित हुआ। यहां तक कि हर दूसरे देश ने अर्थव्यवस्था में संकुचन की सूचना दी, जबकि चीन में सकारात्मक विकास हुआ और 2020 में उसने अपने सकल घरेलू उत्पाद में 400 अरब डॉलर से अधिक जोड़ा। आंकड़ों से पता चलता है कि अन्य सभी 19 देशों को (जिनमें सबसे अमीर और सबसे शक्तिशाली देश शामिल हैं) सिर्फ एक साल में 25 खरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। यह तबाही अब भी जारी है।
इन नेताओं ने सतत विकास, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के बारे में बात की, लेकिन वहां विमानों के जमावड़े या जो बाइडन के 80 से अधिक कारों के काफिले से होने वाले कार्बन उत्सर्जन के बारे में कोई बात नहीं हुई। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अन्य विकसित देशों के साथ, विकासशील देशों द्वारा उत्सर्जन में कटौती की आवश्यकता को दोहराया। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग व्यक्तिगत रूप से बैठक में उपस्थित नहीं हुए। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक वीडियो संदेश के माध्यम से उपस्थिति दर्ज कराई।
जलवायु परिवर्तन पर 180 से अधिक देशों के संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन कॉप-26 के लिए सोमवार को ये नेता ग्लासगो चले गए। रोम के जी-20 शिखर सम्मेलन का परिणाम 2020 के रियाद या 2019 के ओसाका शिखर सम्मेलन से बहुत अलग नहीं था। जहां तक कॉप-26 का सवाल है, बर्लिन, क्योटो, बाली, डरबन, कोपेनहेगन और पेरिस में हुए कॉप शिखर सम्मेलनों के इतिहास से कीमती संकेत मिलते हैं।
अतीत से भू-राजनीति के भविष्य का पता चलता है। चौंकाने वाली बात यह है कि जी-20 शिखर सम्मेलन ने वुहान वायरस रिसाव के लिए जवाबदेही पर चर्चा करने और उसे परिभाषित करने की जरूरत नहीं समझी। हैरानी की बात है कि वैश्विक नेताओं ने लगातार हुए शिखर सम्मेलनों में इस सवाल को टाल दिया है-चाहे वह जून में ब्रिटेन में हुआ जी-7 शिखर सम्मेलन हो या बेल्जियम और फिर रोम में हुआ नाटो शिखर सम्मेलन।
दुनिया को यह जानने का हक है कि यह कैसे हुआ और वायरस के रिसाव के लिए जिम्मेदार कौन है। वहां जनस्वास्थ्य के तहत मातृत्व पर तो बात हुई, लेकिन इसके लिए समय नहीं था। अलबत्ता ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन अकेले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने बार-बार कोविड-19 की उत्पत्ति की जांच की आवश्यकता पर बल दिया।
जी-20 फोरम और नेताओं के मन में यह सवाल जरूर उठना चाहिए कि यदि वे अतीत को संबोधित नहीं करते हैं, तो भविष्य के बारे में उनके शब्द कितने विश्वसनीय होंगे? उन्हें पिछले 100 वर्षों की सबसे बड़ी महामारी का कारण पता लगाने का प्रयास करना चाहिए। उसके अपने अनुमान के मुताबिक, जी-20 भू-राजनीतिक परिदृश्य पर कोई छोटी मक्खी नहीं है। 'इसके सदस्य वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 80 फीसदी से अधिक, वैश्विक व्यापार का 75 फीसदी और धरती की आबादी का 60 फीसदी हिस्सा हैं।'
फिर भी शिखर सम्मेलन के योजनाकारों, (सऊदी अरब, इटली और इंडोनेशिया) ने रोम में जी-20 शिखर सम्मेलन में इस सवाल को भी बहस के केंद्र में नहीं लाने का फैसला किया! और कल्पना कीजिए कि यह इटली की अध्यक्षता में हुआ, जो 47 लाख से अधिक मामलों और प्रति दस लाख व्यक्तियों पर 2,000 से अधिक मौतों के साथ सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। ऐसा लगता है कि मानव पीड़ा और आर्थिक कठिनाई 20 सबसे शक्तिशाली देशों के रडार पर नहीं है।
इससे भी बुरी बात है राजनीति। 'सिस्टम' डब्ल्यूएचओ के वर्तमान महानिदेशक टेड्रोस ए घेब्रेयसस को कई गलतियों के बावजूद पुनः 'निर्विरोध निर्वाचित' करना चाहता है। सिर्फ डब्ल्यूएचओ की ईमानदारी दांव पर नहीं है। ज्ञात और उल्लेखनीय अपवादों को छोड़कर जी-20 में बड़े लोकतंत्र शामिल हैं। इन लोकतंत्रों में, एक मूक बहुमत है, जो सच्चाई जानना चाहता है और मानता है कि दुनिया को धोखा दिया गया था।
जी-20 के नेता वायरस के रिसाव की जिम्मेदारी तय करने की बाध्यता से न तो पीछे हट सकते हैं और न ही उन्हें धोखा देना चाहिए। जी-20 के नेताओं को ध्यान रखना चाहिए कि अतीत की बुराई जीवित रहती है और निर्वाचित सरकारों में जनता के विश्वास को प्रभावित करेगी। स्वतंत्र इच्छा और कानून के राज का बखान करने वाले नेताओं की वैधता कसौटी पर है।

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