सम्पादकीय

अबॉर्शन पर गलत फैसला

Subhi
27 Jun 2022 3:46 AM GMT
अबॉर्शन पर गलत फैसला
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अमेरिका में गर्भपात के अधिकार को मिला संवैधानिक संरक्षण समाप्त करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला दुनिया भर में महिला चेतना के लिए एक बड़ा झटका है।

नवभारत टाइम्स: अमेरिका में गर्भपात के अधिकार को मिला संवैधानिक संरक्षण समाप्त करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला दुनिया भर में महिला चेतना के लिए एक बड़ा झटका है। अमेरिका में तो फैसला आते ही इसके साइड इफेक्ट दिखने लगे जब एक-एक कर रिपब्लिकन पार्टी शासित राज्यों ने गर्भपात पर रोक लगाने या इसे कानूनन कठिन बनाने वाले कदम उठाने शुरू कर दिए। एलाबामा, अरकानसास, केंटकी, लुजियाना, मिजौरी, ओक्लाहोमा, साउथ डकोटा और यूटा जैसे राज्य शनिवार को ही अबॉर्शन को बैन कर चुके थे। इनमें आधा दर्जन राज्य ऐसे हैं, जहां इसमें किसी भी तरह के अपवाद की गुंजाइश नहीं रखी गई है। रेप और इन्सेस्ट (पारिवारिक व्यभिचार) जैसे मामलों के लिए भी नहीं। जाहिर है, करीब 50 साल पहले ही अबॉर्शन के अधिकार के लिए संवैधानिक संरक्षण की व्यवस्था कर लिए जाने के बावजूद अमेरिकी समाज इस मसले पर बुरी तरह विभाजित रहा। इस पूरी अवधि में सामाजिक चेतना को उन्नत करने की कोई खास कोशिश नहीं हुई। यही वजह रही कि रिपब्लिकन पार्टी को अपने रुख में पॉजिटिव बदलाव लाने की कोई जरूरत महसूस नहीं हुई और सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आते ही रिपब्लिकन शासित राज्य धड़ाधड़ गर्भपात विरोधी कानूनों को अमल में लाने लगे। यह अमेरिका का वैसा प्रगतिशील चेहरा नहीं है, जिसके लिए इसे जाना जाता रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और तमाम डेमोक्रैट नेता अब कह रहे हैं कि वे महिलाओं को वर्तमान कानूनों के तहत राहत और संरक्षण प्रदान करने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे, लेकिन मौजूदा हालात में तत्काल इससे ज्यादा कुछ संभव नहीं लगता कि डेमोक्रैट शासित राज्यों में गर्भपात के अधिकार को बहाल रखा जाए और इच्छुक महिलाओं के लिए इन राज्यों में आकर गर्भपात कराने की राह बंद न होने दी जाए। मगर लंबी यात्रा करने की मजबूरी ही कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि की महिलाओं को इस अधिकार से वंचित करने के लिए काफी होगी। हाल के वर्षों में यह पहला मौका है, जब स्त्री-पुरुष समानता जैसे किसी मसले पर अमेरिकी समाज को दुनिया की लानत-मलामत झेलनी पड़ रही हो। शरीर पर महिलाओं का अधिकार एक ऐसी बहस है, जो पिछली सदी में ही निर्णायक रूप से पूरी हो चुकी है। जहां गर्भपात को लेकर बहस है भी वहां यह कन्या भ्रूण हत्या को रोकने जैसे मसलों से जुड़ी है। इस बीच बहुत से देश धार्मिक व नैतिक आग्रहों से पीछा छुड़ाते हुए गर्भपात को कानूनी मान्यता देने की राह पर बढ़ते रहे हैं क्योंकि यह व्यवहार में महिलाओं की स्वतंत्रता और बराबरी सुनिश्चित करने वाला मूल अधिकार है। बहरहाल, अमेरिकी समाज में उदार मूल्यों की नुमाइंदगी करने वाले सभी लोगों के सामने सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक बड़ी चुनौती लेकर आया है। इसका सफलतापूर्वक सामना करके ही वे दुनिया में उदार मूल्यों की नुमाइंदगी के अपने दावे को कायम रख पाएंगे।


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