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- ताइवान पर तकरार
नवभारत टाइम्स; अमेरिकी प्रतिनिधिसभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा से उठा विवाद अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ था कि रविवार को अमेरिकी सांसदों का एक और प्रतिनिधिमंडल वहां जा पहुंचा। दो सप्ताह के अंदर अमेरिकी जनप्रतिनिधियों की इस दूसरी ताइवान यात्रा से बौखलाए चीन ने कहा है कि वह उस क्षेत्र में और ज्यादा मिलिट्री ड्रिल को अंजाम देगा। नैंसी पेलोसी की यात्रा पर भी चीन काफी नाराज हुआ था, लेकिन मिलिट्री ड्रिल के जरिए अपना गुस्सा जाहिर करने के बाद उसने कोई और बड़ा कदम नहीं उठाया, जिससे लग रहा था कि मामला धीरे-धीरे ठंडा पड़ रहा है। अमेरिका ने भी पेलोसी की यात्रा को लेकर कहा था कि चीन को इसे संकट का रूप नहीं देना चाहिए। यानी दोनों ही देश ताइवान को लेकर यथास्थिति बनाए रखने के हक में थे। लेकिन इस बीच अमेरिकी सांसदों की ताइवान यात्रा से मामला गरमा गया है। दरअसल, ताइवान को लेकर हुए इस हालिया विवाद की जड़ें एक तरह से यूक्रेन युद्ध से जुड़ी हुई हैं। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों को लगा कि ताइवान पर भी चीन इसी तरह से हमला कर सकता है।
असल में, यूक्रेन युद्ध में पश्चिमी देश रूस को रोक नहीं पाए। उन्होंने यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई जारी रखी है और रूस पर आर्थिक पाबंदियां भी लगाई हैं, लेकिन इससे बहुत असर नहीं हुआ। यह संदेश भी गया कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका के लिए उसे रोकना और भी मुश्किल होगा। ताइवान मसले को समझने के लिए वन चाइना पॉलिसी को समझना होगा। इसके तहत चीन, ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और अमेरिका सहित दुनिया के ज्यादातर देश इसे मान्यता देते हैं। लेकिन अमेरिका चाहता है कि ताइवान स्वायत्त बना रहे। उसका कहना है कि वह ताइवान को अकेला नहीं छोड़ सकता क्योंकि यह सुनिश्चित करना उसका दायित्व है कि किसी हमले की सूरत में ताइवान अपनी रक्षा कर सके। यहां खास बात यह ध्यान देने की है कि ताइवान कंप्यूटर चिप्स का बड़ा सप्लायर है। उसकी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री ग्लोबल इकॉनमी के लिए बेहद अहम है। जापान भी चाहता है कि अमेरिका, ताइवान की मदद करे। दूसरी तरफ, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ताइवान को अपने देश के साथ मिलाना चाहते हैं। इसी साल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का 20वां अधिवेशन है, जिसमें शी को तीसरे टर्म के लिए राष्ट्रपति चुना जाएगा। इसलिए शी ताइवान पर कमजोर नहीं दिखना चाहते। उनके सामने माओ त्से तुंग और तंग श्याओ फिंग की तरह अपनी एक विरासत गढ़ने की भी चुनौती है। कुछ हलकों में कहा जा रहा है कि यह काम वह ताइवान को मिलाकर कर सकते हैं। यानी, अमेरिका और चीन के बीच तनातनी जल्द खत्म नहीं होने वाली।