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- वाह भई पप्पू यादव
कोरोना महामारी ने जब पूरे देश में भयंकर कोहराम इस तरह मचा रखा है कि लोग इसके शिकार बने अपने प्रियजनों के शवों को नदियों में बहाने को मजबूर हो रहे हैं तो हमें अपने भारत की उस शासन व्यवस्था की याद आती है जिसमें 'लोगों द्वारा लोगों के लिए लोगों की सरकार' की स्थापना का सिद्धान्त समूचे समाज की विविधता को एकजुट करते हुए केवल जन कल्याण की बात करता है। ऐसे समय ही हमें अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों की याद आती है जिन्हें हर मतदाता अपने एक वोट की ताकत से चुन कर विभिन्न अधिकृत सदनों में भेजता है। इन्हें हम जनप्रतिनिधि के नाम से जानते हैं जिन्हें लोकतन्त्र में जनता का नौकर कहा जाता है। इन जनप्रतिनिधियों का पहला कर्त्तव्य जनता के प्रति ही होता है जो उन्हें 'जनसेवक' का दर्जा देता है किन्तु हमारे ही समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें 'समाज सेवक' कहते हैं। प्रायः यह देखने में आता है कि जब जन सेवक अपने कर्त्तव्य से मुंह मोड़ लेते हैं तो समाज सेवक उठ कर खड़े हो जाते हैं और लोगों के कष्टों को दूर करने का प्रयास करते हैं। ये समाज सेवक कोई भी हो सकते हैं। कोरोना के इस भयंकर दौर में हम देश के विभिन्न स्थानों पर ऐसे समाजसेवकों की कहानियां पढ़ते और सुनते रहते हैं परन्तु मूल प्रश्न यह है कि ऐसे समय में जन सेवक क्यों दिखाई नहीं पड़ते और दिखाई भी पड़ते हैं इक्का-दुक्का के तौर पर । मगर लोकतन्त्र की शर्त यह भी होती है कि संकटकाल में ऐसे जनसेवकों का पर्दाफाश किया जाना चाहिए जो चुनावों के समय जनता को झूठे वादों में उलझा कर 'जन प्रतिनिधि' तो बन जाते हैं मगर जब 'जनसेवक' बनने की जरूरत होती है तो कहीं सुरक्षित स्थान पर दुबक जाते हैं। बेशक बिहार के पूर्व सांसद श्री राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का इतिहास दागदार हो सकता है मगर कोरोना महामारी में जूझते लोगों की वह पूरे तन, मन, धन से सेवा कर रहे थे और जरूरतमन्दों को आक्सीजन से लेकर वेंटिलेटर और रेमडेसिविर जैसी जीवन रक्षक औषधियां उपलब्ध करा रहे थे। उनकी गिरफ्तारी से एक सवाल उठता है कि क्या जन सेवक बनना गुनाह है? इसका उत्तर बिहार सरकार को इस प्रकार देना होगा कि बिहार के हरेक अस्पताल से लेकर प्रत्येक कोरोना पीड़ित व्यक्ति को आवश्यक चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने की गारंटी मिल सके अन्यथा उन्हें अपने जन सेवक कहलाने का अधिकार त्यागना होगा। निश्चित रूप से पप्पू यादव एक राजनीतिक व्यक्ति हैं और उनका अपना दल जन अधिकार पार्टी भी है मगर इसका मतलब यह नहीं है कि उनसे समाज सेवा करने का अधिकार केवल इसलिए छीन लिया जाये कि वह बिहार की उधड़ी हुई और जर्जर चिकित्सा प्रणाली के सत्य काे उजागर कर रहे थे और बता रहे थे कि किस प्रकार बिहार का ही एक चुना हुआ सांसद जनता के पैसे से खरीदी हुई दो दर्जन से अधिक एम्बुलेंसों को 'खड़ा' करके जनता के दर्द से आंखें फेर रहा था।