सम्पादकीय

बिगड़ते हालात

Rani Sahu
1 March 2022 5:10 PM GMT
बिगड़ते हालात
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सोमवार को बेलारूस सीमा पर जब युद्धरत रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधियों की बातचीत शुरू हुई थी

सोमवार को बेलारूस सीमा पर जब युद्धरत रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधियों की बातचीत शुरू हुई थी, तब एक उम्मीद बंधी थी कि शायद और अनर्थ होने से बचने की कोई सूरत निकल आए और खून-खराबे का दौर थम जाए। लेकिन वार्ता की नाकामी के बाद यह जंग अब एक बदसूरत मोड़ ले चुकी है। खबर है कि बेलारूस के हमले के साथ इसमें तीसरे पक्ष का प्रवेश हो चुका है और यह लड़ाई विश्व युद्ध की ओर बढ़ चली है। नाटो देश पहले ही प्रच्छन्न रूप से हथियारों व दूसरे संसाधनों से यूक्रेन की मदद कर रहे थे, अब यदि कोई देश सीधे उतर आया है, तो नाटो देशों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी। जाहिर है, दुनिया के तमाम देशों को अपनी रणनीति नए सिरे से बनानी पड़ेगी, क्योंकि काफी सारे देश संयुक्त राष्ट्र से पृथक तरह-तरह के समझौतों में हितों की साझेदारी करते हैं। भारत जैसे देशों के लिए संतुलन साधने की चुनौती और अधिक उलझ गई है। रूस हमारा भरोसेमंद मित्र देश है और यूक्रेन से मधुर रिश्तों की गवाही हजारों छात्रों की वहां मौजूदगी देती है।

ऐसे में, यूक्रेन के दूसरे बडे़ शहर खारकीव में भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत बेहद दुखद है और देश अपने उन बच्चों की सलामती के लिए दुआएं मांग रहा है, जो अभी वहां फंसे हुए हैं। सोमवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय बैठक में सरकार ने 'ऑपरेशन गंगा' को युद्ध-स्तरीय स्वरूप देने और यूक्रेन से लगे चार पड़ोसी देशों में अपने चार वरिष्ठ मंत्रियों को भेजने का फैसला किया था, ताकि उन सरकारों के सहयोग से अपने लोगों को सुरक्षित निकाला जा सके। यूके्रनमें रह रहे भारतीयों के लिए दूतावास ने कल एक एडवायजरी भी जारी की थी कि वे जल्द से जल्द राजधानी कीव छोड़ दें, पर दुर्योग से कीव और खारकीव के हालात तेजी से बिगड़ते चले गए और तमाम अप्रिय समाचारों में एक पीड़ादायक सूचना नवीन के बारे में हमें मिली। यकीनन, इस खबर के बाद सरकार पर जल्द से जल्द वहां से सभी भारतीयों को निकालने का दबाव बढ़ गया है।
चिंता की बात यह है कि यह काम अब कहीं अधिक जटिल हो चुका है। रूसी सेना ज्यादा आक्रामकता के साथ आगे बढ़ रही है और खारकीव के गवर्नर के मुताबिक, वह नागरिक ठिकानों को भी निशाना बना रही है। किसी भी युद्ध में दावों-प्रतिदावों की प्रामाणिकता हमेशा संदिग्ध होती है, और सच्चाई सिर्फ भुक्तभोगियों के साथ होती है। यह युद्ध भी थमेगा, मानवता को गहरे जख्म देकर, लेकिन इसके दुष्प्रभाव वर्षों तक दुनिया को सिहरन देते रहेंगे। कोरोना महामारी ने संसार भर के मुल्कों में गरीबों और कम आय वाले लोगों की जिंदगी मुश्किल बना रखी है। अब इस युद्ध के बाद एक बार फिर देशों के बीच अपनी फौजों को मजबूत करने की होड़ मचेगी, और जन-सरोकार के विषयों को हाशिये पर धकेला जाएगा। भारत जैसे देश के लिए तो चुनौती इसलिए भी गंभीर हो गई है कि हमारे पड़ोस में दो देश दशकों से हमारी परेशानियां बढ़ाते रहे हैं। कहते हैं, कठिन स्थितियों में ही किसी देश के राजनय की परीक्षा होती है। केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे बच्चे और कोई नुकसान उठाए बगैर यूक्रेन से सुरक्षित स्वदेश लौटें। इस युद्ध में भारत का रुख अब तक संतुलित रहा है, मगर आने वाले दिन उसके कठिन इम्तिहान के होंगे।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

Rani Sahu

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