सम्पादकीय

चिंता बढ़ाते परमाणु हथियार

Subhi
2 April 2022 4:25 AM GMT
चिंता बढ़ाते परमाणु हथियार
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मानव सभ्यता का अब तक का लेखा-जोखा बताता है कि हर बड़ा संघर्ष न केवल इतिहास, बल्कि विनाश और निर्माण सहित कई सामाजिक-राजनीतिक समीकरण भी बदल देता है।

संजय वर्मा; मानव सभ्यता का अब तक का लेखा-जोखा बताता है कि हर बड़ा संघर्ष न केवल इतिहास, बल्कि विनाश और निर्माण सहित कई सामाजिक-राजनीतिक समीकरण भी बदल देता है। खासतौर से बात जब हथियारों की हो, तो युद्धों में उनकी आजमाइश के साथ यह भी तय होता है कि भावी जंगों में कैसे-कैसे हथियार इस्तेमाल होंगे। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच यह खतरा और बढ़ा ही है। इसमें भी फिलहाल सबसे उल्लेखनीय सवाल परमाणु हथियारों की जरूरत का है। रूस जहां बार-बार परमाणु युद्ध की धमकी दे रहा है, वहीं यूक्रेन अपने परमाणु हथियार एक दौर में रूस को सौंप देने के फैसले पर पछता रहा है। इसीलिए जापान जैसे देश में पुरजोर ढंग से चर्चा उठी है कि अगर कोई देश उस पर हमला कर दे तो क्या जापान को परमाणु हथियार रखने और उनके इस्तेमाल की नीति के बारे में नहीं सोचना चाहिए?

दुनिया में जापान एकमात्र ऐसा देश है, जिसने दो बार परमाणु बम हमले का सामना किया है। जापान अच्छी तरह जानता है कि परमाणु हथियार इंसान और धरती को कैसे भयंकर घाव देते हैं। जापान में अभी भी ऐसे लोगों की तादाद कम नहीं है जिन्हें परमाणु बम हमले की खौफनाक यादें परमाणु विकल्प के बारे में सोचने तक से दूर रखती हैं। लेकिन रूस-यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध में जैसी दुर्गति जेलेंस्की के देश की हुई है, वह उसे एक पछतावे की ओर ले गई है।

इकतीस साल पहले 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ अलग हुए देश यूक्रेन ने अपने सारे परमाणु हथियार रूस के हवाले कर दिए थे। उसे रत्ती भर भी आशंका नहीं थी कि सुरक्षा गारंटी के तौर पर भी कुछ परमाणु हथियार अपने पास नहीं रखने की यह गलती उस पर कितनी भारी पड़ेगी और एक दिन रूस उस पर इतना बड़ा हमला बोल देगा।

युद्ध शुरू होने पर नाटो की ओर से कोई सुरक्षा नहीं मिलने पर यूक्रेन ने यह बात जाहिर भी की कि यदि उसके पास आज परमाणु बम होते तो एक प्रतिरोधात्मक शक्ति के रूप में आज वह उनके इस्तेमाल की चेतावनी देकर रूसी हमले को रोक सकता था। बदले हुए इन हालात ने जापान में यह चर्चा पैदा कर दी कि अब से परमाणु हथियारों के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए।

निश्चित तौर पर परमाणु हथियारों की जरूरत पर विमर्श के पीछे बड़ा कारण एक परमाणु हथियार विहीन देश पर रूस का हमला और फिर उस पर परमाणु हथियार आजमाने की धमकी है। यह सिर्फ धमकी नहीं है, बल्कि इस बीच रूस ने अपनी परमाणु हमला करने वाली इकाई को भी सक्रिय कर दिया। रूस ने यूक्रेन पर ऐसी हाइपरसोनिक मिसाइलें भी दागीं, जो परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं। गैर-परमाणु शक्ति संपन्न देश पर परमाणु हमले के संकेत दुनिया भर के नीति-निर्धारकों और नेताओं में यह चिंता पैदा करने में सफल रहे हैं कि आखिर एक आक्रामक और परमाणु संपन्न पड़ोसी के हमले का सामना कैसे किया जाए।

जिस जापान में यह चर्चा उठी है, उसे तो फिर भी सुरक्षा-गारंटी के समझौते के तहत अमेरिका से वह कवच हासिल है, जिसमें जापान पर कहीं से भी परंपरागत और परमाणु- दोनों तरह के हमलों का अमेरिका बराबरी से जवाब देने को बाध्य है। लेकिन जिन देशों को नाटो से या अमेरिका सहित किसी अन्य परमाणु शक्ति संपन्न देश की ओर से ऐसी सुरक्षा-गारंटी हासिल नहीं है, वे क्या करें?

अगर दक्षिण एशियाई क्षेत्र को देखा जाए, तो भारत के पड़ोस में न सिर्फ पाकिस्तान जैसा छोटा देश परमाणु संपन्न है, बल्कि वह मौके-बेमौके पाव-पाव भर के परमाणु बम के इस्तेमाल की धमकी देता रहता है। इसके बरक्स चीन जैसा पड़ोसी है जो सैन्य ताकत के मामले में अब अमेरिका को टक्कर दे रहा है। यही नहीं, भारत के साथ उसका पुराना सीमा विवाद भी है। ऐसी सूरत में यह आकलन बेमानी नहीं है कि अगर चीन अपने साम्राज्यवादी मंसूबों के तहत भारत पर आक्रमण करने से बचता रहा है, तो इसकी एक बड़ी वजह भारत का भी परमाणु शक्ति संपन्न होना है।

हालांकि परमाणु शक्ति के बारे में भारत के दो रुख बहुत स्पष्ट रहे हैं। जैसे, भारत परमाणु शक्ति का शांतिपूर्ण इस्तेमाल (मसलन बिजली बनाने में) के लिए प्रतिबद्ध है। और दूसरा यह कि वह इन हथियारों का इस्तेमाल जवाबी हमले के रूप में ही करेगा, यानी पहले हमला नहीं करेगा। हालांकि प्रथम प्रहार नहीं करने की नीति पर भारत में भी विचार होता रहा है।

पर मसला भारत-पाक-चीन से आगे का है। उत्तर कोरिया जैसा छोटा-सा देश बीते एक दशक से ज्यादा समय से लंबी दूरी की मिसाइलों और परमाणु परीक्षणों का सिलसिला जारी रखे हुए है। उत्तरी कोरिया के तानाशाह शासक किंग जोंग उन और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच टकराव से पूरी दुनिया इस संशय में पड़ी रही कि कहीं ये देश वास्तव में कोई परमाणु युद्ध शुरू न कर दें।

वैसे तो आज पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार अमेरिका और रूस के पास हैं। संख्यात्मक अनुपात के मुताबिक रूस और अमेरिका के पास दुनिया के कुल परमाणु हथियारों का बानवे फीसद हिस्सा मौजूद है। इसी अनुपात की वजह से भारत परमाणु परीक्षणों को प्रतिबंधित करने वाली संधि सीटीबीटी (कांप्रिहैंसिव टैस्ट बैन ट्रिटी) को भेदभावपूर्ण बताता रहा है। भारत ने हमेशा यह तर्क दिया है कि अपना परमाणु-एकाधिकार (न्यूक्लियर मोनोपोली) बनाए रखने के लिए विकसित देशों ने यह समझौता विकसित किया है। यही वजह है कि भारत ने सीटीबीटी के अलावा परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर भी दस्तखत नहीं किए।

तथ्यों में देखें तो अमेरिका परमाणु हथियारों के जखीरे के मामले में सिर्फ रूस से पीछे है। फिर भी आज उसके परमाणु हथियारों का जखीरा ब्रिटेन से इकतीस गुना और चीन से छब्बीस गुना ज्यादा बड़ा है। ये एटमी हथियार उसके पास दशकों से हैं। ऐसे में जब चाहे, अमेरिका धरती का कई बार विनाश कर सकता है। वाशिंगटन स्थित संस्था आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार रूस के पास पांच हजार नौ सौ सतहत्तर तो अमेरिका के पास पांच हजार दो सौ अड़तालीस परमाणु हथियार हैं।

इस सूची में फ्रांस तीसरे स्थान पर आता है। हालांकि अमेरिका-रूस अब इन हथियारों की संख्या बढ़ा नहीं सकते। ये दोनों देश 2010 में प्राग में हुए स्ट्रेटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रिटी से बंध चुके हैं, जिसके अंतर्गत दोनों को अपने परमाणु हथियारों के जखीरे को एक बराबर करना होगा। लेकिन यूक्रेन पर हुआ हमला बताता है कि ये देश कभी भी अपना परमाणु जखीरा बढ़ा सकते हैं और इनका इस्तेमाल कर सकते हैं।

परमाणु हथियारों का एक पक्ष यह भी है कि शीतयुद्ध काल खत्म होने के बाद इन हथियारों का ज्यादा बड़ा उद्देश्य एक दूसरे को गीदड़भभकी देना हो गया है। भारत अपने परमाणु हथियारों का जखीरा दिखा कर पड़ोसियों को शांत रखने की कोशिश करता है, तो पाकिस्तान इसकी अकड़ दिखाता है कि भारत यह न भूले कि वह भी अब एक परमाणु-संपन्न देश है। लेकिन ये हथियार अपने भीतर एक भयावह सच भी छिपाए रखते हैं।

वह यह कि अगर कभी ऐसी नौबत आ गई कि किसी मुल्क ने कहीं इनका इस्तेमाल कर लिया, तो आज के हथियार इतने संहारक हैं कि न केवल एक ही परमाणु बम से लाखों जिंदगियां चंद क्षणों में खत्म की जा सकती हैं, बल्कि पर्यावरण का भी भारी विनाश होगा। ऐसी स्थिति में इस्तेमाल नहीं किए जाने की सूरत में भी परमाणु हथियार पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा संहारक हैं और उनके इस्तेमाल का खतरा भी पहले से कई गुना ज्यादा है।


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