सम्पादकीय

प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध का चिंतित करने वाला मामला, संवैधानिक दायित्वों की भी अनदेखी

Gulabi
7 Jan 2022 6:02 AM GMT
प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध का चिंतित करने वाला मामला, संवैधानिक दायित्वों की भी अनदेखी
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पांच जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पंजाब के बठिंडा, हुसैनीवाला और फिरोजपुर में पूर्व निर्धारित कार्यक्रम था
विक्रम सिंह। पांच जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पंजाब के बठिंडा, हुसैनीवाला और फिरोजपुर में पूर्व निर्धारित कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम की रूपरेखा भी पहले ही तैयार हो चुकी थी। इसका अर्थ है कि प्रधानमंत्री के दौरे की व्यवस्था कम से कम कागजों पर तो तैयार कर ही दी गई थी। दिल्ली से बठिंडा प्रधानमंत्री वायुयान से पहुंचे। वहां से उन्हें हेलीकाप्टर द्वारा हुसैनीवाला जाना था। फिर उन्हें फिरोजपुर जनसभा में सम्मिलित होना था। इस बीच मौसम की खराबी के कारण फैसला किया गया कि प्रधानमंत्री हेलीकाप्टर के बजाय सड़क मार्ग से जाएंगे। बठिंडा से हुसैनीवाला की दूरी करीब 110 किमी है। इसी दौरान वह अप्रत्याशित घटना घटी, जिसमें लगभग 30 किमी आगे बढ़ने पर प्रधानमंत्री का काफिला एक फ्लाईओवर पर अटक गया। इस अटकाव का कारण वहां बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों का जमावड़ा था। इससे एक बड़ा जोखिम उत्पन्न हो गया। चिंतित करने वाला एक पहलू यह था कि उक्त स्थान पाकिस्तान सीमा से 15-20 किलोमीटर दूर है।
पंजाब सरकार का दावा है कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को देखते हुए उसने 10,000 सुरक्षाकर्मी तैनात किए थे, परंतु उपलब्ध साक्ष्य यही इंगित करते हैं कि न केवल मार्ग, बल्कि छतों पर भी ड्यूटी नगण्य थी। सुरक्षा का सारा दारोमदार एसपीजी पर डालने का भी प्रयास हो रहा है। इससे ज्यादा भ्रामक तो कुछ और हो ही नहीं सकता, क्योंकि एसपीजी पर समीप की सुरक्षा का जिम्मा होता है। वह स्थानीय पुलिस से समन्वय बनाकर विशिष्ट व्यक्ति के जीवन पर जोखिम का आकलन कर आवश्यक कार्रवाई करती है। पंजाब के पुलिसकर्मी अपने कर्तव्य की पूर्ति करते नहीं दिखे। खराब हालात का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि कई प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री के काफिले के सात-आठ फीट नजदीक तक पहुंच गए। उन्होंने रास्ता अवरुद्ध कर दिया।
ऐसे में तत्काल यू-टर्न संभव नहीं था। इस कारण पीएम का काफिला 20 मिनट फंसा रहा। यह बहुत लंबी अवधि है। एक ग्रेनेड 36 सेकंड में फट जाता है। स्नाइपर राइफल और क्लोज क्वार्टर वेपन का इस्तेमाल कर विशिष्ट व्यक्ति को क्षति पहुंचाई जा सकती थी। यह भी सर्वविदित है कि पाकिस्तान से ड्रोन के माध्यम से विस्फोटक और अन्य सामग्री यहां भेजी जाती रही है। कदाचित यही कारण था कि प्रधानमंत्री जब ब¨ठडा वापस आए तो उन्होंने एयरपोर्ट पर अधिकारियों से यह कहा कि अपने मुख्यमंत्री को धन्यवाद कहिएगा कि मैं यहां तक जीवित लौट सका।
प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध से ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक घटना हो ही नहीं सकती, लेकिन इस पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जोरों पर है और गैर-जिम्मेदाराना बयानों की भरमार है। पंजाब सरकार द्वारा अपने बचाव में यह तक कहा जा रहा कि वीआइपी की सकुशल यात्र सुनिश्चित कराने का दायित्व एसपीजी का था। इससे अधिक अनर्गल आरोप संभव नहीं है। ऐसे आरोप लगाने वाले पहले एसपीजी एक्ट, 1988 और एसपीजी एक्ट (संशोधन), 2019 का अध्ययन कर लें तो चीजें स्पष्ट हो जाएंगी। यह भी कहा गया कि हेलीकाप्टर से न जाकर सड़क मार्ग से जाने का निर्णय अचानक से लिया गया।
ऐसे निर्णय अचानक ही लिए जाते हैं। बेहतर होता कि इस संबंध में पुलिस महानिदेशक मुख्यालय द्वारा जो परिपत्र निर्गत किए गए थे, उनका अनुपालन सुनिश्चित किया जाता। वैकल्पिक मार्ग, जो पहले से ही सुनिश्चित था, पर प्रभावी पुलिस व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए थी। वे जो तथाकथित 10,000 पुलिसकर्मी तैनात थे, उनके बारे में आडिट होना चाहिए कि वे कहां पर तैनात थे और उनका मार्गदर्शन कौन कर रहा था? वे जिस भाव-भंगिमा में दिखाई पड़े और बेपरवाह तरीके से प्रदर्शनकारियों के साथ चाय पीते दिखे, वह कतई अस्वीकार्य है। पंजाब पुलिस देश की मानी हुई पुलिस है। उसकी प्रतिष्ठा है, पर अपरिपक्व मार्गदर्शन और नेतृत्व में जो घटना घटित हुई, वह निंदनीय होने के साथ-साथ दंडनीय भी है।
यह समझ से परे है कि राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक प्रधानमंत्री की अगवानी में क्यों नहीं गए? ऐसा व्यवहार अप्रत्याशित और असामान्य है। यह प्रकट हो रहा है कि प्रदर्शनकारियों को वैकल्पिक मार्ग का पता चल गया था और इसी कारण उन्होंने पीएम के काफिले को अवरुद्ध किया। प्रधानमंत्री के काफिले की सुरक्षा की जिम्मेदारी एसपीजी और बीएसएफ पर डालने की बात भी अनुचित है। विशिष्ट व्यक्ति की सुरक्षा में बीएसएफ का कोई योगदान नहीं होता। एसपीजी की भूमिका एसपीजी एक्ट और ब्लू बुक के अंतर्गत आती है।
एडवांस सिक्योरिटी संबंधी बैठकों में यह पहले ही स्पष्ट हो जाता है कि किसकी क्या भूमिका और उत्तरदायित्व रहने वाला है? अपनी जिम्मेदारियों से भागना और दोषारोपण करने से दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं। मैंने अपने 36 साल के सेवाकाल में अनेक विशिष्ट व्यक्तियों का आगमन सुनिश्चित कराया है, लेकिन ऐसी र्दुव्‍यवस्था कभी नहीं देखी। उन 15-20 मिनटों में प्रधानमंत्री के साथ किसी भी प्रकार की दुर्घटना हो सकती थी। यह समझा जाना चाहिए कि इस प्रकरण से देश के संवैधानिक ताने-बाने को भी क्षति पहुंची है। राज्य सरकार द्वारा अपने संवैधानिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करने के बजाय उलटे आरोप लगाए जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ का यह मामला सर्वोच्च न्यायालय की देहरी तक भी पहुंच गया है। इतने गंभीर प्रकरण की जांच या तो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो या फिर सीबीआइ यह जांच करे। यह घटना स्वस्थ संकेत नहीं। केंद्र सरकार को एक श्वेत पत्र निर्गत करना चाहिए कि कहां किस प्रकार की त्रुटियां हुईं? उसमें जवाबदेही भी तय की जाए। इसके साथ ही जो दोषी हैं उनके विरुद्ध कार्रवाई भी सुनिश्चित करनी होगी। हम एक लोकतंत्र हैं और संवैधानिक उत्तरदायित्वों से बंधे हुए हैं। स्वस्थ राजनीति में प्रतिद्वंद्विता होती ही है और राजनीतिक मतभेद भी, परंतु उनके चलते कर्तव्य की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। राजनीतिक महत्वाकांक्षा इतनी बेलगाम न हो कि वह संवैधानिक उत्तरदायित्व से ही विमुख कर दे।
प्रधानमंत्री की सुरक्षा से जो खिलवाड़ हुआ वह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इस पर गंभीर मंथन होना चाहिए कि जो हुआ, क्या वह होना चाहिए था और यदि नहीं तो इसकी पुनरावृत्ति रोकने के लिए क्या किया जाए? यह इसलिए आवश्यक है, क्योंकि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति किसी राज्य, किसी दल की नहीं, बल्कि देश का अहित करेगी।
(लेखक उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे हैं)
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